गीता जी के अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 16
द्वौ, इमौ, पुरुषौ, लोके, क्षरः, च, अक्षरः, एव, च, क्षरः, सर्वाणि, भूतानि,कूटस्थः, अक्षरः, उच्यते।।
अनुवाद : इस संसारमें दो प्रकारके भगवान हैं नाशवान और अविनाशी और ये
सम्पूर्ण भूतप्राणियोंके शरीर तो नाशवान और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है।
गीता जी के अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 17
उतमः, पुरुषः, तु, अन्यः, परमात्मा, इति, उदाहृतः, यः, लोकत्रायम् आविश्य,
बिभर्ति, अव्ययः, ईश्वरः।।
अनुवाद : उत्तम भगवान तो अन्य ही है जो तीनों लोकोंमें प्रवेश करके सबका
धारण-पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर परमात्मा इस प्रकार कहा गया है।
कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार।
तीनो देवा शाखा है, पात रूप संसार।
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