तमा + खू = तमाखू।
खू नाम खून का तमा नाम गाय। सौ बार सौगंध इसे न पीयें-खाय।।
भावार्थ :- भावार्थ है कि फारसी भाषा में ‘‘तमा’’ गाय को कहते हैं। खू =
खून यानि रक्त को कहते हैं। यह तमाखू गाय के रक्त से उपजा है। इसके ऊपर
गाय के बाल जैसे रूंग (रोम) जैसे होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंद है
कि इस तमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू का सेवन गाय का
खून पीने के समान पाप लगता है
मुसलमान धर्म के व्यक्तियों को हिन्दुओं से पता
चला कि तमाखू की उत्पत्ति ऐसे हुई है। उन्होंने गाय का खून समझकर खाना तथा
हुक्के में पीना शुरू कर दिया क्योंकि गलत ज्ञान के आधार से मुसलमान भाई गाय
के माँस को खाना धर्म का प्रसाद मानते हैं। वास्तव में हजरत मुहम्मद जो मुसलमान
धर्म के प्रवर्तक माने जाते हैं, उन्होंने कभी-भी जीव का माँस नहीं खाया था।
खू नाम खून का तमा नाम गाय। सौ बार सौगंध इसे न पीयें-खाय।।
भावार्थ :- भावार्थ है कि फारसी भाषा में ‘‘तमा’’ गाय को कहते हैं। खू =
खून यानि रक्त को कहते हैं। यह तमाखू गाय के रक्त से उपजा है। इसके ऊपर
गाय के बाल जैसे रूंग (रोम) जैसे होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंद है
कि इस तमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू का सेवन गाय का
खून पीने के समान पाप लगता है
मुसलमान धर्म के व्यक्तियों को हिन्दुओं से पता
चला कि तमाखू की उत्पत्ति ऐसे हुई है। उन्होंने गाय का खून समझकर खाना तथा
हुक्के में पीना शुरू कर दिया क्योंकि गलत ज्ञान के आधार से मुसलमान भाई गाय
के माँस को खाना धर्म का प्रसाद मानते हैं। वास्तव में हजरत मुहम्मद जो मुसलमान
धर्म के प्रवर्तक माने जाते हैं, उन्होंने कभी-भी जीव का माँस नहीं खाया था।
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