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Sunday 27 November 2022
Tuesday 16 November 2021
पवित्र मुसलमान धर्म का संक्षिप्त परिचय
Sunday 25 October 2020
कथा महर्षि सर्वानंद जी की
Tuesday 15 September 2020
तंम्बाकू सेवन करना महापाप है।
तंम्बाकू उत्पत्ति की कथा
एक ऋषि तथा एक राजा साढ़ू थे। एक दिन राजा की रानी ने अपनी बहनऋषि की पत्नी के पास संदेश भेजा कि पूरा परिवार हमारे घर भोजन के लिएआऐं। मैं आपसे मिलना भी चाहती हूँ, बहुत याद आ रही है। अपनी बहन का संदेशऋषि की पत्नी ने अपने पति से साझा किया तो ऋषि जी ने कहा कि साढ़ू सेदोस्ती अच्छी नहीं होती। तेरी बहन वैभव का जीवन जी रही है। राजा को धन तथाराज्य की शक्ति का अहंकार होता है। वे अपनी बेइज्जती करने को बुला रहे हैंक्योंकि फिर हमें भी कहना पड़ेगा कि आप भी हमारे घर भोजन के लिए आना।हम उन जैसी भोजन-व्यवस्था जंगल में नहीं कर पाऐंगे। यह सब साढ़ू जी का षड़यंत्र है। आपके सामने अपने को महान तथा मुझे गरीब सिद्ध करना चाहता है।आप यह विचार त्याग दें। हमारे न जाने में हित है। परंतु ऋषि की पत्नी नहींमानी। ऋषि तथा पत्नी व परिवार राजा का मेहमान बनकर चला गया। रानी नेबहुमूल्य आभूषण पहन रखे थे। बहुमूल्य वस्त्र पहने हुए थे। ऋषि की पत्नी के गलेमें राम नाम जपने वाली माला तथा सामान्य वस्त्र साध्वी वाले जिसे देखकर दरबारके कर्मचारी-अधिकारी मुस्कुरा रहे थे कि यह है राजा का साढ़ू। कहाँ राजा भोज,कहाँ गंगू तेली। यह चर्चा ऋषि परिवार सुन रहा था। भोजन करने के पश्चात् ऋषिकी पत्नी ने भी कहा कि आप हमारे यहाँ भी इस दिन भोजन करने आईएगा।निश्चित दिन को राजा हजारों सैनिक लेकर सपरिवार साढ़ू ऋषि जी कीकुटीया पर पहुँच गया। ऋषि जी ने स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र से निवेदन करके एककामधेनु (सर्व कामना यानि इच्छा पूर्ति करने वाली गाय, जिसकी उपस्थिति मेंखाने की किसी पदार्थ की कामना करने से मिल जाता है, यह पौराणिक मान्यताहै।) माँगी। उसके बदले में ऋषि जी ने अपने पुण्य कर्म संकल्प किए थे। इन्द्र देवने एक कामधेनु तथा एक लम्बा-चौड़ा तम्बू (ज्मदज) भेजा और कुछ सेवादार भीभेजे। टैण्ट के अंदर गाय को छोड़ दिया। ऋषि परिवार ने गऊ माता की आरतीउतारी। अपनी मनोकामना बताई। उसी समय छप्पन (56) प्रकार के भोग चांदीकी परातों, टोकनियों, कड़ाहों में स्वर्ग से आए और टैण्ट में रखे जाने लगे। लड्डू,जलेबी, कचौरी, दही बड़े, हलवा, खीर, दाल, रोटी (मांडे) तथा पूरी, बुंदी, बर्फी,रसगुल्ले आदि-आदि से आधा एकड़ का टैण्ट भर गया। ऋषि जी ने राजा से कहाकि भोजन जीमो। राजा ने बेइज्जती करने के लिए कहा कि मेरी सेना भी साथमें भोजन खाएगी। घोड़ों को भी चारा खिलाना है। ऋषि जी ने कहा कि प्रभु कृपासे सब व्यवस्था हो जाएगी। पहले आप तथा सेना भोजन करें। राजा उठकर भोजनकरने वाले स्थान पर गया। वहाँ भी सुंदर कपड़े बिछे थे। राजा देखकरआश्चर्यचकित रह गया। फिर चांदी की थालियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के भोजनला-लाकर सेवादार रखने लगे। अन्नदेव की स्तुति करके ऋषि जी ने भोजन करनेकी प्रार्थना की। राजा ने देखा कि इसके सामने तो मेरा भोजन-भण्डारा कुछ नहीं था।
मैंने तो केवल ऋषि-परिवार को ही भोजन कराया था। वह भी तीन-चारपदार्थ बनाए थे। राजा शर्म के मारे पानी-पानी हो गया। खाना खाते वक्त बहुतपरेशान था। ईर्ष्या की आग धधकने लगी, बेइज्जती मान ली। सर्व सैनिक खाऐंऔर सराहें। राजा का रक्त जल रहा था। अपने टैण्ट में जाकर ऋषि को बुलायाऔर पूछा कि यह भोजन जंगल में कैसे बनाया? न कोई कड़ाही चल रही है, नकोई चुल्हा जल रहा है। ऋषि जी ने बताया कि मैंने अपने पुण्य तथा भक्ति केबदले स्वर्ग से एक गाय उधारी माँगी है। उस गाय में विशेषता है कि हम जितनाभोजन चाहें, तुरंत उपलब्ध करा देती है। राजा ने कहा कि मेरे सामने उपलब्धकराओ तो मुझे विश्वास हो। ऋषि तथा राजा टैण्ट के द्वार पर खड़े हो गए। अन्दरकेवल गाय खड़ी थी। द्वार की ओर मुख था। टैण्ट खाली था क्योंकि सबने भोजनखा लिया था। शेष बचा सामान तथा सेवक ले जा चुके थे। गाय को ऋषि जी कीअनुमति का इंतजार था। राजा ने कहा कि ऋषि जी! यह गाय मुझे दे दो। मेरेपास बहुत बड़ी सेना है। उसका भोजन इससे बनवा लूंगा। तेरे किस काम की है?ऋषि ने कहा, राजन! मैंने यह गऊ माता उधारी ले रखी है। स्वर्ग से मँगवाई है।मैं इसका मालिक नहीं हूँ। मैं आपको नहीं दे सकता। राजा ने दूर खड़े सैनिकोंसे कहा कि इस गाय को ले चलो। ऋषि ने देखा कि साढ़ू की नीयत में खोट आगया है। उसी समय ऋषि जी ने गऊ माता से कहा कि गऊ माता! आप अपने लोकअपने धनी स्वर्ग राज इन्द्र के पास शीघ्र लौट जाऐं। उसी समय कामधेनु टैण्ट को फाड़कर सीधी ऊपर को उड़ चली। राजा ने गाय को गिराने के लिए गाय के पैरमें तीर मारा। गाय के पैर से खून बहने लगा और पृथ्वी पर गिरने लगा। गायघायल अवस्था में स्वर्ग में चली गई। जहाँ-जहाँ गाय का रक्त गिरा था, वहीं-वहींतम्बाकू उग गया। फिर बीज बनकर अनेकों पौधे बनने लगे। संत गरीबदास जीने कहा है कि :-तमा $ खू = तमाखू।खू नाम खून का तमा नाम गाय। सौ बार सौगंध इसे न पीयें-खाय।।भावार्थ :- भावार्थ है कि फारसी भाषा में ‘‘तमा’’ गाय को कहते हैं। खू =खून यानि रक्त को कहते हैं। यह तमाखू गाय के रक्त से उपजा है। इसके ऊपरगाय के बाल जैसे रूंग (रोम) जैसे होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंद हैकि इस तमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू का सेवन गाय काखून पीने के समान पाप लगता है। मुसलमान धर्म के व्यक्तियों को हिन्दुओं से पताचला कि तमाखू की उत्पत्ति ऐसे हुई है। उन्होंने गाय का खून समझकर खाना तथाहुक्के में पीना शुरू कर दिया क्योंकि गलत ज्ञान के आधार से मुसलमान भाई गायके माँस को खाना धर्म का प्रसाद मानते हैं। वास्तव में हजरत मुहम्मद जो मुसलमानधर्म के प्रवर्तक माने जाते हैं, उन्होंने कभी-भी जीव का माँस नहीं खाया था।
गरीब, नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।एक लाख अस्सी कू सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।
गरीब, अर्स कुर्श पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।वै पैगंबर पाक पुरूष थे, साहेब के अबदाली।।
भावार्थ :- नबी मुहम्मद तो आदरणीय महापुरूष थे जो परमात्मा केसंदेश वाहक थे। ऐसे-ऐसे एक लाख अस्सी हजार पैगंबर मुसलमान धर्म में (बाबाआदम से लेकर मुहम्मद तक) माने गए हैं। वे सब पाक (पवित्र) व्यक्ति थे जिन्होंनेकभी किसी पशु-पक्षी पर करद यानि तलवार नहीं चलाई। वे तो परमात्मा से डरनेवाले थे। परमात्मा के कृपा पात्र थे। बाद में कुछ मुल्ला-काजियों ने माँस खाने कीपरम्परा शुरू कर दी जो आगे चलकर धार्मिकता का अपवाद (बिगड़ा रूप) बनगई। उसी आधार से सर्व मुसलमान भाई पाप को खा रहे हैं। फिर भ्रमितमुसलमानों ने तम्बाकू का सेवन (खाना, हुक्का बनाकर पीना) प्रारम्भ कर दिया।भोले हिन्दु धर्म के व्यक्तियों ने उनकी चाल नहीं समझी। उनके कहने से तमाखूका सेवन जोर-शोर से शुरू कर दिया। वर्तमान में तो यह पंचायत का प्याला बनगया है जो भारी भूल है। अज्ञानता का पर्दा है। इसे भूलकर भी सेवन नहीं करनाचाहिए। संत गरीबदास जी ने फिर बताया है कि हे भक्त हरलाल जी! और सुनतमाखू सेवन के पाप :-गरीब, परद्वारा स्त्रा का खोलै। सत्तर जन्म अंधा हो डोलै।।1मदिरा पीवै कड़वा पानी। सत्तर जन्म श्वान के जानी।।2मांस आहारी मानवा, प्रत्यक्ष राक्षस जान।मुख देखो न तास का, वो फिरै चौरासी खान।।3सुरापान मद्य मांसाहारी। गमन करै भोगै पर नारी।।4सत्तर जन्म कटत है शीशं। साक्षी साहेब है जगदीशं।।5सौ नारी जारी करै, सुरापान सौ बार।एक चिलम हुक्का भरै, डूबै काली धार।।6हुक्का हरदम पीवते, लाल मिलांवे धूर।इसमें संशय है नहीं, जन्म पीछले सूअर।।7वांणियो का भावार्थ :-वाणी सँख्या 1 में कहा है कि जो व्यक्ति अन्य स्त्री से अवैध सम्बन्ध बनाताहै, उस पाप के कारण वह सत्तर जन्म अंधे के प्राप्त करता है। अंधा गधा-गधी, अंधाबैल, अंधा मनुष्य या अंधी स्त्री के लगातार सत्तर जन्मों में कष्ट भोगता है।वाणी सँख्या 2 :- कड़वी शराब रूपी पानी जो पीता है, वह उस पाप केकारण सत्तर जन्म तक कुत्ते के जन्म प्राप्त करके कष्ट उठाता है। गंदी नालियोंका पानी पीता है। रोटी ने मिलने पर गुह (टट्टी) खाता है।वाणी सँख्या 3 :- जो व्यक्ति माँस खाते हैं, वे तो स्पष्ट राक्षस हैं। उनकातो मुख भी नहीं देखना चाहिए यानि उनके साथ रहने से अन्य भी माँस खाने काआदी हो सकता है। इसलिए उनसे बचें। वह तो चौरासी लाख योनियों में भटकेगा।वाणी सँख्या 4.5 :- (सुरा) शराब (पान) पीने वाले तथा पर स्त्री को भोगने वाले,
माँस खाने वालों को अन्य पाप कर्म भी भोगना होता है। उनके सत्तर जन्मतक मानव या बकरा-बकरी, भैंस या मुर्गे आदि के जीवनों में सिर कटते हैं। इसबात को मैं परमात्मा को साक्षी रखकर कह रहा हूँ, सत्य मानना।वाणी सँख्या 6 :- एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने से भरने वालेको जो पाप लगता है, वह सुनो। एक बार परस्त्री गमन करने वाला, एक बारशराब पीने वाला, एक बार माँस खाने वाला पाप के कारण उपरोक्त कष्ट भोगताहै। सौ स्त्रियों से भोग करे और सौ बार शराब पीऐ, उसे जो पाप लगता है, वहपाप एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने वाले को लगता है। विचार करोतम्बाकू सेवन (हुक्के में, बीड़ी-सिगरेट में पीने वाले, खाने वाले) करने वाले कोकितना पाप लगेगा? इसलिए उपरोक्त सर्व पदार्थों का सेवन कभी न करो।वाणी सँख्या 7 :- समाज के व्यक्तियों को देखकर कुछ व्यक्ति हुक्का या अन्यनशीली वस्तुऐं सेवन करने लग जाते हैं। यदि सत्संग सुनकर बुराई त्याग देते हैंतो वे जीव पिछले जन्म में भी मनुष्य थे। उनके अंदर नशे की गहरी लत नहींबनती। परंतु जो बार-बार सत्संग सुनकर भी तम्बाकू आदि नशे का त्याग नहीं करपाते, वे पिछले जन्म में सूअर के शरीर में थे। सूअर के शरीर में बदबू सूंघने से तम्बाकू की बदबू पीने-सूंघने की गहरी आदत होती है। वे शीघ्र हुक्का वअन्य नशा नहीं त्याग पाते। वे अपने अनमोल मानव शरीर रूपी लाल को मिट्टीमें मिला रहे हैं। उनको अधिक सत्संग सुनने की राय दी जाती है। निराश न हों।सच्चे मन से परमात्मा कबीर जी से नशा छुड़वाने की पुकार प्रार्थना करने से सबनशा छूट जाता है।‘‘
मानव शरीर को ऑक्सीजनकी आवश्यकता है। उसके स्थान पर तम्बाकू का धुँआ (कार्बनडाईऑक्साइड) प्रवेशकरता है तो उनको खाँसी रोग हो जाता है। पित्त तथा बाई (बाय) का रोग होजाता है। हुक्का पीने वाले का बैठने का स्टाईल बताया है कि हुक्का पीने वालेएक-दो तो हुक्के के निकट बैठेंगे। एक कुछ दूरी पर बैठेगा और कहेगा किसरकाइये थोड़ा-सा। दूसरे उसकी ओर हुक्का देंगे। फिर नै (नली जिससे धुँआखींचते हैं) गुरड़-गुरड़ बाजैगी। आप तो हुक्का पीकर डूबे हैं और छोटे बच्चे भीउनको देखकर वही पाप करके नरक की काली धार में डूबेंगे, जो तम्बाकू पीते हैं,उनके तो भाग फूटे ही हैं। अन्य को तम्बाकू पीने के लिए उत्प्रेरक बनकर डुबोतेहैं। उपरोक्त बुराई करने वाले तो अपना जीवन ऐसे व्यर्थ कर जाते हैं जैसे भड़भूजाबालु रेत को आग से खूब गर्म करके चने भूनता है। फिर सारा कार्य करके रेत कोगली में फैंक देता है। इसी प्रकार जो मानव उपरोक्त बुराई करता है, वह भी अपनेमानव जीवन को इसी प्रकार व्यर्थ करके चला जाता है। उस जीव को नरक तथाअन्य प्राणियों के जीवन रूपी गली में फैंक दिया जाता है। जो व्यक्ति उपरोक्त पापकरते हैं, वे भगवान के दरबार में क्या जवाब देंगे यानि बोलने योग्य नहीं रहेंगे।फिर कहा है कि गाय अपनी माता के तुल्य है जिसका सब धर्म-जाति वालेदूध-घी पीते-खाते हैं। इसलिए गाय को मत मारो। विषय तम्बाकू का चल रहा हैः-भक्ति मार्ग में तम्बाकू सबसे अधिक बाधा करता है। जैसे अपने दोनों नाकोंके मध्य में एक तीसरा रास्ता है जो छोटी सूई के नाके जितना है। जो तम्बाकू काधुँआ नाकों से छोड़ते हैं, वह उस रास्ते को बंद कर देता है। वही रास्ता ऊपर कोत्रिकुटी की ओर जाता है जहाँ परमात्मा का निवास है। जिस रास्ते से हमनेपरमात्मा से मिलना है, उसी को तम्बाकू का धुँआ बंद कर देता है। हुक्का पीनेवालों को देखा है, प्रतिदिन हुक्के की नै (नली) में लोहे की गज (एक पतला-सासरिया) घुमाते हैं जिनमें से धुँए का जमा हुआ मैल निकलता है। वह नै रूक जातीहै। मानव जीवन परमात्मा प्राप्ति के लिए ही मिला है। परमात्मा को प्राप्त करनेवाले मार्ग को तम्बाकू का धुँआ बंद कर देता है। इसलिए भी तम्बाकू भक्त के लिएमहान शत्र है। वैसे भी हुक्का पीने वाले भी मानते हैं कि तम्बाकू अच्छी चीज नहींहै। जब कोई छोटा बच्चा अपने दादा-ताऊ, पिता-चाचा को हुक्का पीते देखता हैतो वह भी नकल करता है। हुक्के को पीने लगता है तो बड़े व्यक्ति जो स्वयं हुक्कापीते हैं, उस बच्चे को धमकाते हैं कि खबरदार! अगर हुक्का पीया तो। यह अच्छानहीं है। यदि आप जी इसे अच्छा पदार्थ मानते हैं तो बच्चों को भी पीने दो।
आप मना करते हैं तो मानते हो कि यह अच्छा नहीं है, हानिकारक है। सर्दियों में एकमकान में छोटे बच्चे भी सो रहे होते हैं। उसी में हुक्का पीने वाला हुक्का पी रहाहोता है। वह स्वयं तो पाप कर ही रहा है, अपने परिवार को धुँआ पिलाकर पापका भागी बना रहा है। छोटे बेटा-बेटी को दादा-पिताजी अपने हिस्से के दूध सेपिलाने की कोशिश करता है कि ले, थोड़ा ओर पी ले, देख तेरी चोटी बढ़ रहीहै, और पी जा। इस प्रकार उसे दूध का गिलास पिलाकर दम लेता है क्योंकि दूधबच्चे के लिए लाभदायक है। हुक्का-बीड़ी पीने से मना करता है तो दिल तो कहता है कि तम्बाकू पीना बुरा है, परंतु समाज में यह बुराई आम हो चुकी है। इसलिए पाप नहीं लगता। जैसे कई कबीले माँस खाते हैं, उनके बच्चों के लिए वह पाप आमबात है। इसी प्रकार तम्बाकू पीना भी महापाप है, परंतु परम्परा पड़ गई है, पाप नहींलगता। इसे त्याग देना चाहिए। भक्त हरलाल जी ने उसी दिन हुक्का तोड़ दिया।चिलम फोड़ दी। सर्व परिवार को वे सब बातें सुनाई। नाम-दीक्षा दिलाई। कई पीढ़ीतक बेरी के उन परिवारों में हुक्का नहीं था।
अधिक जानकारी के लिए साधना टीवी देखे शाम 7:30 से 8:30 तक
Wednesday 5 August 2020
रोग मुक्ति, असाध्य रोग निवारण
Wednesday 15 July 2020
बकरा ईद का कितना सबाब मिलता है।
आयत 58 :- व तवक्कल् अलल् - हरिल्लजी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिही व कफाबिही बिजुनूबि िअबादिही खबीरा (कबीरा)।।58।
भावार्थ कि हजरत मुहम्मद जी जिसे अपना प्रभु मानते हैं वह अल्लाह (प्रभु)किसी और पूर्ण प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है कि ऐ पैगम्बर उस कबीर परमात्मा परविश्वास रख जो तुझे जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिला था। वह कभी मरने वालानहीं है अर्थात् वास्तव में अविनाशी है। तारीफ के साथ उसकी पाकी (पवित्र महिमा)का गुणगान किए जा, वह कबीर अल्लाह (कविर्देव) पूजा के योग्य है तथा अपने उपासकों का सर्व पापों का विनाश करने वाला है।
भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कहरहा है कि वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भीविद्यमान है सर्व सृष्टी की रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपनेसत्यलोक में सिंहासन पर विराजमान हो (बैठ) गया। उसके विषय में जानकारी किसी(बाखबर) तत्वदर्शी संत से पूछोउस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति कैसे होगी तथा वास्तविक ज्ञान तो किसी तत्वदर्शीसंत (बाखबर) से पूछो, मैं नहीं जानता।उपरोक्त दोनों पवित्र धर्मों (ईसाई तथा मुसलमान) के पवित्र शास्त्रों ने भीमिल-जुल कर प्रमाणित कर दिया कि सर्व सृष्टी रचनहार, सर्व पाप विनाशक, सर्वशक्तिमान, अविनाशी परमात्मा मानव सदृश शरीर में आकार में है तथा सत्यलोक मेंरहता है। उसका नाम कबीर है, उसी को अल्लाहु अकबिरू भी कहते हैं।आदरणीय धर्मदास जी ने पूज्य कबीर प्रभु से पूछा कि हे सर्वशक्तिमान ! आजतक यह तत्वज्ञान किसी ने नहीं बताया, वेदों के मर्मज्ञ ज्ञानियों ने भी नहीं बताया।इससे सिद्ध है कि चारों पवित्र वेद तथा चारों पवित्र कतेब (कुरान शरीफ आदि)झूठे हैं। पूर्ण परमात्मा ने कहा :-कबीर, बेद कतेब झूठे नहीं भाई, झूठे हैं जो समझे नाहिं।भावार्थ है कि चारों पवित्र वेद (ऋग्वेद - अथर्ववेद - यजुर्वेद - सामवेद) तथापवित्र चारों कतेब (कुरान शरीफ - जबूर - तौरात - इंजिल) गलत नहीं हैं। परन्तुजो इनको नहीं समझ पाए वे नादान हैं।
Wednesday 8 July 2020
नशा करना तेजी से क्यों फैलता है।
तम्बाकू सेवन करना महापाप है"।
नशा ऐसी बीमारी है जो हमें हमारे समाज को हमारे देश को तेजी से निगलते जा रही है
आज शहर और गावों में पढ़ने खेलने की उम्र में स्कूल और कॉलेज के बच्चे एवं युवा वर्ग मादक पदार्थों के बाहुपाश में जकड़ते जा रहे हैं ।
इस बुराई के कुछ हद तक जिम्मेदार हम लोग भी हैं हम अपने काम धंधों में इतना उलझ गए हैं कि हमें फुर्सत ही नहीं है ये जानने की कि हमारा बच्चा कहाँ जा रहा है । क्या कर रहा है कोई परवाह नहीं, बस बच्चों की मांगे पूरी करना ही अपनी जिम्मेदारी समझ बैठे हैं ।
क्यों करते हैं लोग नशा
कभी शौक के नाम पर तो कभी दोस्ती की आड़ में , कभी दुनियाँ के दुखों का बहाना करके तो कभी कोई मज़बूरी बताकर, कभी टेंशन तो कभी बोरियत दूर करनेके लिए लोग शराब , सिगरेट, तम्बाकू आदि अनेक प्रकार के मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं लेकिन नशा कब उनकी जिंदगी का हिस्सा बन जाता है उन्हें पता ही नहीं चलताए जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ।
नशे से शरीर को हानी
हिंसा, बलात्कार, चोरी, आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे नशा एक बहुत बड़ी वजह है । शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए एक्सीडेंट करनाए शादी शुदा व्यक्तियों द्वारा नशे में अपनी पत्नी से मारपीट करना आम बात है। मुँह , गले व फेफड़ों का कैंसर, ब्लड प्रैशर, अल्सर, यकृत रोग, अवसाद एवं अन्य अनेक रोगों का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार का नशा है ।
‘तम्बाकू सेवन करना महापाप है’’संत गरीबदास जी ने भक्त हरलाल जी से कहा कि आप (जो भी दीक्षा लेताहै) तम्बाकू का (हुक्का, बीड़ी, सिगरेट, चिलम आदि में डालकर भी) कभी सेवननहीं करना और अन्य नशीली वस्तुओं का प्रयोग न करना। भक्त ने कहा कि हेमहाराज जी! तम्बाकू तो लगभग सब किसान पीते हैं। इसमें क्या हानि है?उत्तर :- संत गरीबदास जी ने बताया कि आपने रामायण तथा महाभारत कीकथा तो सुनी होंगी। उसमें हुक्का सेवन का कहीं वर्णन नहीं है। तम्बाकू की उत्पत्तिबताऊँ कैसे हुई है, सुन!
एक ऋषि तथा एक राजा साढ़ू थे। एक दिन राजा की रानी ने अपनी बहनऋषि की पत्नी के पास संदेश भेजा कि पूरा परिवार हमारे घर भोजन के लिएआऐं। मैं आपसे मिलना भी चाहती हूँ, बहुत याद आ रही है। अपनी बहन का संदेशऋषि की पत्नी ने अपने पति से साझा किया तो ऋषि जी ने कहा कि साढ़ू सेदोस्ती अच्छी नहीं होती। तेरी बहन वैभव का जीवन जी रही है। राजा को धन तथाराज्य की शक्ति का अहंकार होता है। वे अपनी बेइज्जती करने को बुला रहे हैंक्योंकि फिर हमें भी कहना पड़ेगा कि आप भी हमारे घर भोजन के लिए आना।हम उन जैसी भोजन-व्यवस्था जंगल में नहीं कर पाऐंगे। यह सब साढ़ू जी काषड़यंत्र है। आपके सामने अपने को महान तथा मुझे गरीब सिद्ध करना चाहता है।आप यह विचार त्याग दें। हमारे न जाने में हित है। परंतु ऋषि की पत्नी नहींमानी। ऋषि तथा पत्नी व परिवार राजा का मेहमान बनकर चला गया। रानी नेबहुमूल्य आभूषण पहन रखे थे। बहुमूल्य वस्त्र पहने हुए थे। ऋषि की पत्नी के गलेमें राम नाम जपने वाली माला तथा सामान्य वस्त्र साध्वी वाले जिसे देखकर दरबारके कर्मचारी-अधिकारी मुस्कुरा रहे थे कि यह है राजा का साढ़ू। कहाँ राजा भोज,कहाँ गंगू तेली। यह चर्चा ऋषि परिवार सुन रहा था। भोजन करने के पश्चात् ऋषिकी पत्नी ने भी कहा कि आप हमारे यहाँ भी इस दिन भोजन करने आईएगा।निश्चित दिन को राजा हजारों सैनिक लेकर सपरिवार साढ़ू ऋषि जी कीकुटीया पर पहुँच गया। ऋषि जी ने स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र से निवेदन करके एककामधेनु (सर्व कामना यानि इच्छा पूर्ति करने वाली गाय, जिसकी उपस्थिति मेंखाने की किसी पदार्थ की कामना करने से मिल जाता है, यह पौराणिक मान्यताहै।) माँगी। उसके बदले में ऋषि जी ने अपने पुण्य कर्म संकल्प किए थे। इन्द्र देवने एक कामधेनु तथा एक लम्बा-चौड़ा तम्बू (ज्मदज) भेजा और कुछ सेवादार भीभेजे। टैण्ट के अंदर गाय को छोड़ दिया। ऋषि परिवार ने गऊ माता की आरतीउतारी। अपनी मनोकामना बताई। उसी समय छप्पन (56) प्रकार के भोग चांदीकी परातों, टोकनियों, कड़ाहों में स्वर्ग से आए और टैण्ट में रखे जाने लगे। लड्डू,जलेबी, कचौरी, दही बड़े, हलवा, खीर, दाल, रोटी (मांडे) तथा पूरी, बुंदी, बर्फी,रसगुल्ले आदि-आदि से आधा एकड़ का टैण्ट भर गया। ऋषि जी ने राजा से कहाकि भोजन जीमो। राजा ने बेइज्जती करने के लिए कहा कि मेरी सेना भी साथमें भोजन खाएगी। घोड़ों को भी चारा खिलाना है। ऋषि जी ने कहा कि प्रभु कृपासे सब व्यवस्था हो जाएगी। पहले आप तथा सेना भोजन करें। राजा उठकर भोजनकरने वाले स्थान पर गया। वहाँ भी सुंदर कपड़े बिछे थे। राजा देखकरआश्चर्यचकित रह गया। फिर चांदी की थालियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के भोजनला-लाकर सेवादार रखने लगे। अन्नदेव की स्तुति करके ऋषि जी ने भोजन करनेकी प्रार्थना की। राजा ने देखा कि इसके सामने तो मेरा भोजन-भण्डारा कुछ भी
नहीं था। मैंने तो केवल ऋषि-परिवार को ही भोजन कराया था। वह भी तीन-चारपदार्थ बनाए थे। राजा शर्म के मारे पानी-पानी हो गया। खाना खाते वक्त बहुतपरेशान था। ईर्ष्या की आग धधकने लगी, बेइज्जती मान ली। सर्व सैनिक खाऐंऔर सराहें। राजा का रक्त जल रहा था। अपने टैण्ट में जाकर ऋषि को बुलायाऔर पूछा कि यह भोजन जंगल में कैसे बनाया? न कोई कड़ाही चल रही है, नकोई चुल्हा जल रहा है। ऋषि जी ने बताया कि मैंने अपने पुण्य तथा भक्ति केबदले स्वर्ग से एक गाय उधारी माँगी है। उस गाय में विशेषता है कि हम जितनाभोजन चाहें, तुरंत उपलब्ध करा देती है। राजा ने कहा कि मेरे सामने उपलब्धकराओ तो मुझे विश्वास हो। ऋषि तथा राजा टैण्ट के द्वार पर खड़े हो गए। अन्दरकेवल गाय खड़ी थी। द्वार की ओर मुख था। टैण्ट खाली था क्योंकि सबने भोजनखा लिया था। शेष बचा सामान तथा सेवक ले जा चुके थे। गाय को ऋषि जी कीअनुमति का इंतजार था। राजा ने कहा कि ऋषि जी! यह गाय मुझे दे दो। मेरेपास बहुत बड़ी सेना है। उसका भोजन इससे बनवा लूंगा। तेरे किस काम की है?ऋषि ने कहा, राजन! मैंने यह गऊ माता उधारी ले रखी है। स्वर्ग से मँगवाई है।मैं इसका मालिक नहीं हूँ। मैं आपको नहीं दे सकता। राजा ने दूर खड़े सैनिकोंसे कहा कि इस गाय को ले चलो। ऋषि ने देखा कि साढ़ू की नीयत में खोट आगया है। उसी समय ऋषि जी ने गऊ माता से कहा कि गऊ माता! आप अपने लोकअपने धनी स्वर्गराज इन्द्र के पास शीघ्र लौट जाऐं। उसी समय कामधेनु टैण्ट कोफाड़कर सीधी ऊपर को उड़ चली। राजा ने गाय को गिराने के लिए गाय के पैरमें तीर मारा। गाय के पैर से खून बहने लगा और पृथ्वी पर गिरने लगा। गायघायल अवस्था में स्वर्ग में चली गई। जहाँ-जहाँ गाय का रक्त गिरा था, वहीं-वहींतम्बाकू उग गया। फिर बीज बनकर अनेकों पौधे बनने लगे। संत गरीबदास जीने कहा है कि :-तमा $ खू = तमाखू।खू नाम खून का तमा नाम गाय। सौ बार सौगंध इसे न पीयें-खाय।।भावार्थ :- भावार्थ है कि फारसी भाषा में ‘‘तमा’’ गाय को कहते हैं। खू =खून यानि रक्त को कहते हैं। यह तमाखू गाय के रक्त से उपजा है। इसके ऊपरगाय के बाल जैसे रूंग (रोम) जैसे होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंद हैकि इस तमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू का सेवन गाय काखून पीने के समान पाप लगता है।
अगर आप को नशे की लत से छुटकारा पाना है"! अपने जीवन को स्वछ रखना है। आप नशे को अलविदा करना चाहते हो तो
आज के समय में। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेवे और उनका ज्ञान सुने संत रामपाल जी महाराज की दी गई भक्ति से सब प्रकार के नशे छूट जाते हैं।
अधिक जानकारी के लिए साधना टीवी देखें शाम 7:30 से 8:30 तक
Wednesday 1 July 2020
दहेज प्रथा एक सामाजिक कुरीति हैं।
दहेज प्रथा एक सामाजिक कुरीति हैं।
विवाह में प्रचलित वर्तमान परंपरा का त्याग :-
हमारे देश भारत में धीरे धीरे दहेज प्रथा बढ़ते ही चले जा रहा है। आज के इस आधुनिक युग में भी दहेज प्रथा देश में एक अभिशाप के रूप में फैल चुका है। आज भी इस 21वीं सदी में बेटी के जन्म लेते ही ज्यादातर माता-पिता के सिर पर चिंता सवार हो जाता है।
चिंता इस बात की नहीं होती है की लड़की की पढ़ाई कैसे करवाएंगे? चिंता तो इस बात की होती है की विवाह कैसे करवाएंगे, विवाह के लिए दहेज कैसे इकट्ठा करेंगे? यही सोच दहेज़ प्रथा जैसी सामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
विवाह में व्यर्थ का खर्च त्यागना पड़ेगा। जैसे बेटी के विवाह में बड़ी बारातका आना, दहेज देना, यह व्यर्थ परंपरा है। जिस कारण से बेटी परिवार पर भारमानी जाने लगी है और उसको गर्भ में ही मारने का सिलसिला शुरू है जोमाता-पिता के लिए महापाप का कारण बनता है। बेटी देवी का स्वरूप है। हमारीकुपरम्पराओं ने बेटी को दुश्मन बना दिया। श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाणहै कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथाश्री शिव जी) का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोईबाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे
बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्माजी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दीजाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्रश्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहाकि ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनोंअपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व काविस्तार हुआ।
Wednesday 24 June 2020
Vade
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“पवित्र ऋग्वेद में सृष्टी रचना का प्रमाण”
मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्रा 1सहòशीर्षा पुरूषः सहòाक्षः सहòपात्।स भूमिं विश्वतों वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।। 1।। सहòशिर्षाµपुरूषःµसहòाक्षःµसहòपात्µसµभूमिम्µविश्वतःµवृत्वाµअत्यातिष्ठत्µदशंगुलम्।अनुवाद :- (पुरूषः) विराट रूप काल भगवान अर्थात् क्षर पुरूष (सहस्रशिर्षा) हजारसिरों वाला (सहस्राक्षः) हजार आँखों वाला (सहस्रपात्) हजार पैरों वाला है (स) वह काल(भूमिम्) पृथ्वी वाले इक्कीस ब्रह्मण्डां को (विश्वतः) सब ओर से (दशंगुलम्) दसों अंगुलियोंसे अर्थात् पूर्ण रूप से काबू किए हुए (वृत्वा) गोलाकार घेरे में घेर कर (अत्यातिष्ठत्) इस सेबढ़कर अर्थात् अपने काल लोक में सबसे न्यारा भी इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में ठहरा है अर्थात्रहता है।भावार्थ :- इस मंत्र में विराट (काल/ब्रह्म) का वर्णन है। (गीता अध्याय 10-11में भी इसी काल/ब्रह्म का ऐसा ही वर्णन है अध्याय 11 मंत्रा नं. 46 में अर्जुन ने कहाहै कि हे सहस्राबाहु अर्थात् हजार भुजा वाले आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शनदीजिए)जिसके हजारों हाथ, पैर, हजारों आँखे, कान आदि हैं वह विराट रूप कालप्रभु अपने आधीन सर्व प्राणियों को पूर्ण काबू करके अर्थात् 20 ब्रह्मण्डों को गोलाकारपरिधि में रोककर स्वयं इनसे ऊपर (अलग) इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में बैठा है।
भवार्थ ऊपर के मंत्र 2 में वर्णित अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की तो इतनीही महिमा है तथा वह पूर्ण पुरुष कविर्देव तो इससे भी बड़ा है अर्थात् सर्वशक्तिमानहै तथा सर्व ब्रह्मण्ड उसी के अंश मात्रा पर ठहरे हैं। इस मंत्रा में तीन लोकों का वर्णनइसलिए है क्योंकि चौथा अनामी (अनामय) लोक अन्य रचना से पहले का है। यहीतीन प्रभुओं (क्षर पुरूष-अक्षर पुरूष तथा इन दोनों से अन्य परम अक्षर पुरूष) काविवरण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक संख्या 16.17 में है {इसी का प्रमाणआदरणीय गरीबदास साहेब जी कहते हैं कि :- गरीब, जाके अर्ध रूम पर सकलपसारा, ऐसा पूर्ण ब्रह्म हमारा।।
गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।।
इसी का प्रमाण आदरणीय दादू साहेब जी कह रहे हैं
जिन मोकुं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोए नहीं, कबीर सृजनहार।।
Tuesday 23 June 2020
क्या गीता जी का नित्य पाठ करने का कोई लाभ नहीं ?
धार्मिक सद्ग्रन्थों के पठन-पाठन से ज्ञान यज्ञ का फल मिलता है। यज्ञ का फल कुछ समय स्वर्ग या जिस उद्देश्य से किया उसका फल मिल जाता है, परन्तु मोक्ष नहीं। नित्य पाठ करने का मुख्य कारण यह होता है कि सद्ग्रन्थों में जो साधना करने का निर्देश है तथा जो न करने का निर्देश है उसकी याद ताजा रहे। कभी कोई गलती न हो जाए। जिस से हम वास्तविक उद्देश्य त्याग कर गफलत करके शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) न करने लग जाऐं तथा मनुष्य जीवन के मुख्य उद्देश्य की याद बनी रहे कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य आत्म कल्याण ही है जो शास्त्र अनुकूल साधना से ही संभव है।
जैसे एक जमींदार को वृद्धावस्था में पुत्र की प्राप्ति हुई। किसान ने सोचा जब तक बच्चा जवान होगा, अपने खेती-बाड़ी के कार्य को संभालने योग्य होगा, कहीं मेरी मृत्यु न हो जाए। इसलिए किसान ने अपना अनुभव लिख कर छोड़ दिया तथा अपने पुत्र से कहा कि पुत्र जब तू जवान हो, तब अपने खेती-बाड़ी के कार्य को समझने के लिए इस मेरे अनुभव के लेख को प्रतिदिन पढ़ लेना तथा अपनी कृषि करना। पिता जी की मृत्यु के उपरान्त किसान का पुत्र प्रतिदिन पिता जी के द्वारा लिखे अनुभव के लेख को पढ़ता। परन्तु जैसा उसमें लिखा है वैसा कर नहीं रहा है। वह किसान का पुत्र क्या धनी हो सकता है ? कभी नहीं। वैसे ही करना चाहिए जो पिता जी ने अपना अनुभव लेख में लिखा है। ठीक इसी प्रकार पवित्र गीता जी के पाठ को तो श्रद्धालु नित्य कर रहे हैं परन्तु साधना सद्ग्रन्थ के विपरीत कर रहे हैं। इसलिए गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 के अनुसार व्यर्थ साधना है।
जैसे तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की पूजा गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में मना है तथा श्राद्ध निकालना अर्थात् पितर पूजा, पिण्ड भरवाना, फूल (अस्थियां) उठा कर गंगा में क्रिया करवाना, तेरहवीं, सतरहवीं, महीना, छःमाही, वर्षी आदि करना गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में मना है। व्रत रखना गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में मना है। लिखा है कि हे अर्जुन ! योग (भक्ति) न तो बिल्कुल न खाने वाले (व्रत रखने वाले) का सिद्ध होता है, ... अर्थात् व्रत रखना मना है।
भूखों को भोजन देना, कुत्तों आदि जीव-जन्तुओं व पशुओं को आहार कराना आदि बुरा नहीं है, परन्तु पूर्ण संत के माध्यम से उनकी आज्ञा अनुसार दान तथा यज्ञ आदि करना ही पूर्ण लाभदायक है।
जैसे एक कुत्ता कार के अंदर मालिक वाली सीट पर बैठकर यात्रा करता है। कुत्ते का ड्राईवर मनुष्य होता है। उस पशु को आम मनुष्य से भी अधिक सुविधाऐं प्राप्त होती हैं। अलग से कमरा, पंखा तथा कुलर लगा होता है आदि-आदि।
जब वह नादान प्राणी मनुष्य शरीर में था, दान भी किया परन्तु मनमाना आचरण (पूजा) के माध्यम से किया जो शास्त्र विधि के विपरीत होने के कारण लाभदायक नहीं हुआ। प्रभु का विधान है कि जैसा भी कर्म प्राणी करेगा उसका फल अवश्य मिलेगा। यह विधान तब तक लागू है जब तक तत्वदर्शी संत पूर्ण परमात्मा का मार्ग दर्शक नहीं मिलता।
जैसा कर्म प्राणी करता है वैसा ही फल प्राप्त होता है। इस विद्यान के अनुसार वह तीर्थों तथा धामों पर या अन्य स्थानों पर भण्डारे द्वारा तथा कुत्ते आदि को रोटी डालने के कर्म के आधार पर कुत्ते की योनी में चला गया। वहाँ पर भी किया कर्म मिला। कुत्ते के जीवन में अपनी पूर्व जन्म की शुभ कर्म की कमाई को समाप्त करके गधे की योनी में चला जाएगा। उस गधे के जीवन में सर्व सुविधाऐं छीन ली जायेंगी। सारा दिन मिट्टी, कच्ची-पक्की ईंटे ढोएगा। तत्पश्चात् अन्य प्राणियों के शरीर में कष्ट उठाएगा तथा नरक भी भोगना पड़ेगा। चैरासी लाख योनियों का कष्ट भोग कर फिर मनुष्य शरीर प्राप्त करता है। फिर क्या जाने भक्ति बने या न बने। जैसे धाम तथा तीर्थ पर जाने वाले के पैरों नीचे या जिस सवारी द्वारा जाता है उसके पहियों के नीचे जितने भी जीव जंतु मरते हैं उनका पाप भी तीर्थ व धाम यात्री को भोगना पड़ता है। जब तक पूर्ण संत जो पूर्ण परमात्मा की सत साधना बताने वाला नहीं मिले तब तक पाप नाश (क्षमा) नहीं हो सकते, क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, ब्रह्म (क्षर पुरुष/काल) तथा परब्रह्म (अक्षर पुरुष) की साधना से पाप नाश (क्षमा) नहीं होते, पाप तथा पुण्य दोनों का फल भोगना पड़ता है। यदि वह प्राणी गीता ज्ञान अनुसार पूर्ण संत की शरण प्राप्त करके पूर्ण परमात्मा की साधना करता तो या तो सतलोक चला जाता या दोबारा मनुष्य शरीर प्राप्त करता। पूर्व पुण्यों के आधार से फिर कोई संत मिल जाता है। वह प्राणी फिर शुभ कर्म करके पार हो जाता है।
इसलिए उपरोक्त मनमाना आचरण लाभदायक नहीं है।
Thursday 18 June 2020
Thursday 4 June 2020
Kabir prakat Diva's
Monday 1 June 2020
कबीर साहेब के चमत्कार
परमेश्वर कबीर साहेब द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे मुर्दे को जीवित करना यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त भैंसों से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना तथा काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना इसके अतिरिक्त भी कई प्रमाणिक जानकारियां हमें मिलती है।
1. कबीर साहेब द्वारा सिकंदर राजा का जलन का रोग ठीक करना
कबीर साहेब जब 600 वर्ष पूर्व आए तब उन्होंने अनेको करिश्में दिखाऐ, उनमें से एक है दिल्ली के राजा सिकंदर लोदी की जलन का रोग आशिर्वाद मात्र से ठीक करना। राजा जलन जैसे आसाध्य रोग से पीड़ित था और सब तरफ से ईलाज आदि करवाकर थक चुका था लेकिन कोई आराम नहीं था। तब बादशाह को किसी ने कबीर साहेब के बारे में बताया कि वे महापुरुष ही ये रोग ठीक कर सकते हैं तभी सिकंदर को भी याद आया कि यह तो वही हैं जिन्होंने मरी हुई गाय को जीवित कर दिया था। जब खुद पर आपदा आती है तो कोई जाति व अमीरी गरीबी नहीं देखता उसे सिर्फ अपनी जान बचाने की सूझती है। इसी प्रकार दिल्ली नरेश भी काशी पहुंचा औऱ वहाँ के राजा वीरदेव सिंह बघेल तो कबीर जी को पूर्ण परमात्मा के रूप में पहचान चुके थे। सिकंदर लोदी ने सब व्यथा वीरदेव सिंह बघेल को बताई तो उन्होंने भी कहा कि कबीर जी ही उन्हें रोग मुक्त कर सकते है और वे आश्रम की ओर चल पड़े। वहां राजा सिकंदर लोदी ने अहंकार वश रामानंद जी (जो कबीर साहेब को परमात्मा रूप में पहचान चुके थे लेकिन सबके सामने कबीर जी के गुरू का अभिनय कर रहे थे) का किसी बात की कहासुनी पर वध कर दिया राजा बहुत घबरा गया कि एक पाप का बोझ तो उतरा भी नहीं कि एक बडा़ पाप और इकट्ठा कर लिया। राजा को डर था कि कबीर जी उन्हें माफ करेंगे भी या नहीं लेकिन फिर भी कबीर परमात्मा ने राजा को सांत्वना देते हुए आशिर्वाद दिया जिससे पल भर में ही उनका जलन का रोग गायब हो गया तथा कबीर साहेब जी ने अपने गुरुदेव स्वामी रामानंद जी को भी वापस जीवित कर दिया। उसके पश्चात् रामानंद जी ने कभी हिंदू-मुसलमान मे भेदभाव नही किया तथा सिकंदर लोदी ने कहा की:-
कबीर दर्शन दीन्हा जबै, तपन भई सब दूर ।
शाह कहा तुम साँच हो, औ अल्लाहका नूर ।।