Thursday 4 June 2020

Kabir prakat Diva's

(सुक्ष्म वेद से निष्कर्ष रूप सृष्टी रचना का वर्णन)प्रभु प्रेमी आत्माऐं प्रथम बार निम्न सृष्टी की रचना को पढेंगे तो ऐसे लगेगाजैसे दन्त कथा हो, परन्तु सर्व पवित्रा सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़कर दाँतों तलेउँगली दबाऐंगे कि यह वास्तविक अमृत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथपढ़ते रहिए तथा इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखिए। आप की एक सौ एक पीढ़ीतक काम आएगा। पवित्रात्माऐं कृप्या सत्यनारायण (अविनाशी प्रभु/सतपुरुष) द्वारारची सृष्टी रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़ें।1. पूर्ण ब्रह्म :- इस सृष्टी रचना में सतपुरुष-सतलोक का स्वामी (प्रभु), अलखपुरुष-अलख लोक का स्वामी (प्रभु), अगम पुरुष-अगम लोक का स्वामी (प्रभु) तथाअनामी पुरुष-अनामी अकह लोक का स्वामी (प्रभु) तो एक ही पूर्ण ब्रह्म है, जोवास्तव में अविनाशी प्रभु है जो भिन्न-2 रूप धारण करके अपने चारों लोकों में रहताहै। जिसके अन्तर्गत असंख्य ब्रह्मण्ड आते हैं।2. परब्रह्म :- यह केवल सात संख ब्रह्मण्ड का स्वामी (प्रभु) है

। यह अक्षर पुरुषभी कहलाता है। परन्तु यह तथा इसके ब्रह्मण्ड भी वास्तव में अविनाशी नहीं है।3. ब्रह्म :- यह केवल इक्कीस ब्रह्मण्ड का स्वामी (प्रभु) है। इसे क्षर पुरुष,ज्योति निरंजन, काल आदि उपमा से जाना जाता है। यह तथा इसके सर्व ब्रह्मण्डनाशवान हैं।(उपरोक्त तीनों पुरूषों (प्रभुओं) का प्रमाण पवित्रा श्री मद्भगवत गीता अध्याय15 श्लोक 16.17 में भी है।)4. ब्रह्मा :- ब्रह्मा इसी ब्रह्म का ज्येष्ठ पुत्रा है, विष्णु मध्य वाला पुत्रा है तथा शिवअंतिम तीसरा पुत्रा है। ये तीनों ब्रह्म के पुत्रा केवल एक ब्रह्मण्ड में एक विभाग (गुण)के स्वामी (प्रभु) हैं तथा नाशवान हैं। विस्तृत विवरण के लिए कृप्या पढ़ें निम्नलिखित सृष्टी रचना :- {कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने सुक्ष्म वेद अर्थात् कबिर्बाणी में अपने द्वारा रचीसृष्टी का ज्ञान स्वयं ही बताया है जो निम्नलिखित है}सर्व प्रथम केवल एक स्थान ‘अनामी (अनामय) लोक‘ था। जिसे अकह लोकभी कहा जाता है, पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था। उसपरमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है। सभी आत्माऐं उसपूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी। इसी कविर्देव का उपमात्मक (पदवी का) नामअनामी पुरुष है (पुरुष का अर्थ प्रभु होता है। प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरूपमें बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है।) अनामी पुरूष के एकरोम कूप का प्रकाश संख सूर्यों की रोशनी से भी अधिक है।विशेष :- जैसे किसी देश के आदरणीय प्रधान मंत्रा जी का शरीर का नाम तोअन्य होता है तथा पद का उपमात्मक (पदवी का) नाम प्रधानमंत्रा होता ह

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