Wednesday 24 June 2020

Vade

                        Vade       

   “पवित्र ऋग्वेद में सृष्टी रचना का प्रमाण”

मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्रा 1सहòशीर्षा पुरूषः सहòाक्षः सहòपात्।स भूमिं विश्वतों वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।। 1।। सहòशिर्षाµपुरूषःµसहòाक्षःµसहòपात्µसµभूमिम्µविश्वतःµवृत्वाµअत्यातिष्ठत्µदशंगुलम्।अनुवाद :- (पुरूषः) विराट रूप काल भगवान अर्थात् क्षर पुरूष (सहस्रशिर्षा) हजारसिरों वाला (सहस्राक्षः) हजार आँखों वाला (सहस्रपात्) हजार पैरों वाला है (स) वह काल(भूमिम्) पृथ्वी वाले इक्कीस ब्रह्मण्डां को (विश्वतः) सब ओर से (दशंगुलम्) दसों अंगुलियोंसे अर्थात् पूर्ण रूप से काबू किए हुए (वृत्वा) गोलाकार घेरे में घेर कर (अत्यातिष्ठत्) इस सेबढ़कर अर्थात् अपने काल लोक में सबसे न्यारा भी इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में ठहरा है अर्थात्रहता है।भावार्थ :- इस मंत्र में विराट (काल/ब्रह्म) का वर्णन है। (गीता अध्याय 10-11में भी इसी काल/ब्रह्म का ऐसा ही वर्णन है अध्याय 11 मंत्रा नं. 46 में अर्जुन ने कहाहै कि हे सहस्राबाहु अर्थात् हजार भुजा वाले आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शनदीजिए)जिसके हजारों हाथ, पैर, हजारों आँखे, कान आदि हैं वह विराट रूप कालप्रभु अपने आधीन सर्व प्राणियों को पूर्ण काबू करके अर्थात् 20 ब्रह्मण्डों को गोलाकारपरिधि में रोककर स्वयं इनसे ऊपर (अलग) इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में बैठा है।


मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्रा 2पुरूष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम्।उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति।। 2।।पुरूषµएवµइदम्µसर्वम्µयत्µभूतम्µयत्µचµभाव्यम्µउतµअमृतत्वस्यµइशानःµयत्µअन्नेनµअतिरोहतिअनुवाद :- (एव) इसी प्रकार कुछ सही तौर पर (पुरूष) भगवान है वह अक्षर पुरूषअर्थात् परब्रह्म है (च) और (इदम्) यह (यत्) जो (भूतम्) उत्पन्न हुआ है (यत्) जो (भाव्यम्)भविष्य में होगा (सर्वम्) सब (यत्) प्रयत्न से अर्थात् मेहनत द्वारा (अन्नेन) अन्न से(अतिरोहति) विकसित होता है। यह अक्षर पुरूष भी (उत) सन्देह युक्त (अमृतत्वस्य) मोक्षका (इशानः) स्वामी है अर्थात् भगवान तो अक्षर पुरूष भी कुछ सही है परन्तु पूर्ण मोक्ष दायकनहीं है।भावार्थ :- इस मंत्र में परब्रह्म (अक्षर पुरुष) का विवरण है जो कुछ भगवान वालेलक्षणों से युक्त है, परन्तु इसकी भक्ति से भी पूर्ण मोक्ष नहीं है, इसलिए इसेसंदेहयुक्त मुक्ति दाता कहा है। इसे कुछ प्रभु के गुणों युक्त इसलिए कहा है कियह काल की तरह तप्तशिला पर भून कर नहीं खाता। परन्तु इस परब्रह्म के लोकमें भी प्राणियों को परिश्रम करके कर्माधार पर ही फल प्राप्त होता है तथा अन्न सेही सर्व प्राणियों के शरीर विकसित होते हैं, जन्म तथा मृत्यु का समय भले ही काल(क्षर पुरुष) से अधिक है, परन्तु फिर भी उत्पत्ति प्रलय तथा चौरासी लाख योनियोंमें यातना बनी रहती है।मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र3एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पुरूषः।पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।। 3।।एतावान्µअस्यµमहिमाµअतःµज्यायान्µचµपुरूषःµपादःµअस्यµविश्वाµभूतानिµत्रिµपाद्µअस्यµअमृतम्µदिविअनुवाद :- (अस्य) इस अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म की तो (एतावान्) इतनी ही(महिमा) प्रभुता है। (च) तथा (पुरूषः) वह परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर तो(अतः) इससे भी (ज्यायान्) बड़ा है (विश्वा) समस्त (भूतानि) क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूषतथा इनके लोकों में तथा सत्यलोक तथा इन लोकों में जितने भी प्राणी हैं (अस्य) इस पूर्णपरमात्मा परम अक्षर पुरूष का (पादः) एक पैर है अर्थात् एक अंश मात्रा है। (अस्य) इसपरमेश्वर के (त्रि) तीन (दिवि) दिव्य लोक जैसे सत्यलोक-अलख लोक-अगम लोक(अमृतम्) अविनाशी (पाद्) दूसरा पैर है अर्थात् जो भी सर्व ब्रह्मण्डों में उत्पन्न है वहसत्यपुरूष पूर्ण परमात्मा का ही अंश या अंग है।

भवार्थ ऊपर के मंत्र 2 में वर्णित अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की तो इतनीही महिमा है तथा वह पूर्ण पुरुष कविर्देव तो इससे भी बड़ा है अर्थात् सर्वशक्तिमानहै तथा सर्व ब्रह्मण्ड उसी के अंश मात्रा पर ठहरे हैं। इस मंत्रा में तीन लोकों का वर्णनइसलिए है क्योंकि चौथा अनामी (अनामय) लोक अन्य रचना से पहले का है। यहीतीन प्रभुओं (क्षर पुरूष-अक्षर पुरूष तथा इन दोनों से अन्य परम अक्षर पुरूष) काविवरण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक संख्या 16.17 में है {इसी का प्रमाणआदरणीय गरीबदास साहेब जी कहते हैं कि :- गरीब, जाके अर्ध रूम पर सकलपसारा, ऐसा पूर्ण ब्रह्म हमारा।।

गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।।

इसी का प्रमाण आदरणीय दादू साहेब जी कह रहे हैं 

जिन मोकुं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोए नहीं, कबीर सृजनहार।।


 


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