Wednesday 15 July 2020

बकरा ईद का कितना सबाब मिलता है।

                           बकरा ईद


इस्लाम मज़हब में दो ईदें त्योहार के रूप में मनाई जाती हैं। ईदुलब फ़ित्र जिसे मीठी ईद भी कहा जाता है और दूसरी ईद है बक़र ईद। इस ईद को आम आदमी बकरा ईद भी कहता है। शायद इसलिए कि इस ईद पर बकरे की क़ुर्बानी की जाती है। वैसे इस ईद को ईदुज़्ज़ोहा औए ईदे-अज़हा भी कहा जाता है। इस ईद का गहरा संबंध क़ुर्बानी से है।

पैग़म्बर हज़रत इब्राहीम को ख़ुदा की तरफ़ से हुक्म हुआ कि क़ुर्बानी करो, अपनी सबसे ज़्यादा प्यारी चीज़ की क़ुर्बानी करो। हज़रत इब्राहीम के लिए सबसे प्यारी चीज़ थी उनका इकलौता बेटा इस्माईल। ‍लिहाज़ा हज़रत इब्राहीम अपने बेटे को क़ुर्बानी करने के लिए तैयार हो गए। इधर बेटा इस्माईल भी ख़ुशी-ख़ुशी अल्लाह की राह में क़ुर्बान होने को तैयार हो गया।

मुख़्तसर ये कि ऐन क़ुर्बानी के वक़्त हज़रत इस्माईल की जगह एक दुम्बा क़ुर्बान हो गया। ख़ुदा ने हज़रत इस्माईल को बचा लिया और हज़रत इब्राहीम की क़ुर्बानी क़ुबूल कर ली। तभी से हर साल उसी दिन उस क़ुर्बानी की याद में बक़र ईद मनाई जाती है और क़ुर्बानी की जाती है।

इस दिन आमतौर से बकरे की क़ुर्बानी की जाती है। बकरा तन्दुरुस्त और बग़ैर किसी ऐब का होना चाहिए। यानी उसके बदन के सारे हिस्से वैसे ही होना चाहिए जैसे ख़ुदा ने बनाए हैं। सींग, दुम, पाँव, आँख, कान वग़ैरा सब ठीक हों, पूरे हों और जानवर में किसी तरह की बीमारी भी न हो। क़ुर्बानी के जानवर की उम्र कम से कम एक साल हो।

अपना मज़हबी फ़रीज़ा समझकर क़ुर्बानी करना चाहिए। जो ज़रूरी बातें ऊपर बताई गई हैं उनका ख़्याल रखना चाहिए। लेकिन आजकल देखने में आ रहा है कि इसमें झूठी शान और दिखावा भी शामिल हो गया है। 15-20 हज़ार से लेकर लाख, दो लाख का बकरा ख़रीदा जाता है, उसे समाज में घुमाया जाता है ता‍कि लोग उसे देखें और उसके मालिक की तारीफ़ करें। इस दिखावे का क़ुर्बानी से कोई तआल्लुक़ नहीं है। क़ुर्बानी से जो सवाब एक मामूली बकरे की क़ुर्बानी से मिलता है वही किसी महँगे बकरे की क़ुर्बानी से मिलता है। अगर आप बहुत पैसे वाले हैं तो ऐसे काम करें जिससे ग़रीबों को ज़्यादा फ़ायदा हो।

अल्लाह का नाम लेकर जानवर को क़ुर्बान किया जाता है। इसी क़ुर्बानी और गोश्त को हलाल कहा जाता है। इस गोश्त के तीन बराबर हिस्से किए जाते हैं, एक हिस्सा ख़ुद के लिए, एक दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा ग़रीबों और मिस्कीनों के लिए। मीठी ईद पर सद्क़ा और ज़कात दी जाती है तो इस ईद पर क़ुर्बानी के गोश्त का एक हिस्सा ग़रीबों में तक़सीम किया जाता है। हर त्योहार पर ग़रीबों का ख़्याल ज़रूर रखा जाता है ताक‍ि उनमें कमतरी का एहसास पैदा न हो।

इस तरह यह ईद जहाँ सबको साथ लेकर चलने का पैग़ाम देती है वहीं यह भी बताती है के इंसान को ख़ुदा का कहा मानने में, सच्चाई की राह में अपना सब कुछ क़ुर्बान करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। आज जो हमारे मुल्क के हालात हैं उनको देखते हुए किसी ने क्या ख़ूब कहा है,

इसी का प्रमाण पवित्र बाईबल में तथा पवित्र कुरान शरीफ में भी है।कुरान शरीफ में पवित्र बाईबल का भी ज्ञान है, इसलिए इन दोनों पवित्र सद्ग्रन्थोंने मिल-जुल कर प्रमाणित किया है कि कौन तथा कैसा है सृष्टी रचनहार तथा उसकावास्तविक नाम क्या है।पवित्र बाईबल (उत्पत्ति ग्रन्थ पृष्ठ नं. 2 पर, अ. 1ः20 - 2ः5 पर)छटवां दिन :- प्राणी और मनुष्य :अन्य प्राणियों की रचना करके 26. फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूपके अनुसार अपनी समानता में बनाएं, जो सर्व प्राणियों को काबू रखेगा। 27. तब परमेश्वर नेमनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर नेउसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टी की।29. प्रभु ने मनुष्यों के खाने के लिए जितने बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीजवाले फल होते हैं वे भोजन के लिए प्रदान किए हैं, (माँस खाना नहीं कहा है।)सातवां दिन :- विश्राम का दिन :परमेश्वर ने छः दिन में सर्व सृष्टी की उत्पत्ति की तथा सातवें दिन विश्राम किया।पवित्र बाईबल ने सिद्ध कर दिया कि परमात्मा मानव सदृश शरीर में है, जिसनेछः दिन में सर्व सृष्टी की रचना की तथा फिर विश्राम किया।पवित्र कुरान शरीफ (सुरत फुर्कानि 25, आयत नं. 52, 58, 59)आयत 52 :- फला तुतिअल् - काफिरन् व जहिद्हुम बिही जिहादन् कबीरा(कबीरन्)।।52।इसका भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी का खुदा (प्रभु) कह रहा है कि हे पैगम्बर !आप काफिरों (जो एक प्रभु की भक्ति त्याग कर अन्य देवी-देवताओं तथा मूर्ति आदि कीपूजा करते हैं) उस का कहा मत मानना, क्योंकि वे लोग कबीर को पूर्ण परमात्मा नहीं मानते।आप मेरे द्वारा दिए इस कुरान के ज्ञान के आधार पर अटल रहना कि कबीर ही पूर्ण प्रभु हैतथा कबीर अल्लाह के लिए संघर्ष करना (लड़ना नहीं) अर्थात् अडिग रहना।

आयत 58 :- व तवक्कल् अलल् - हरिल्लजी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिही व कफाबिही बिजुनूबि िअबादिही खबीरा (कबीरा)।।58।

 भावार्थ कि हजरत मुहम्मद जी जिसे अपना प्रभु मानते हैं वह अल्लाह (प्रभु)किसी और पूर्ण प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है कि ऐ पैगम्बर उस कबीर परमात्मा परविश्वास रख जो तुझे जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिला था। वह कभी मरने वालानहीं है अर्थात् वास्तव में अविनाशी है। तारीफ के साथ उसकी पाकी (पवित्र महिमा)का गुणगान किए जा, वह कबीर अल्लाह (कविर्देव) पूजा के योग्य है तथा अपने उपासकों का सर्व पापों का विनाश करने वाला है।

आयत 59 :- अल्ल्जी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन्सुम्मस्तवा अलल्अर्शि अर्रह्मानु फस्अल् बिही खबीरन्(कबीरन्)।।59
।।
भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कहरहा है कि वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भीविद्यमान है सर्व सृष्टी की रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपनेसत्यलोक में सिंहासन पर विराजमान हो (बैठ) गया। उसके विषय में जानकारी किसी(बाखबर) तत्वदर्शी संत से पूछोउस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति कैसे होगी तथा वास्तविक ज्ञान तो किसी तत्वदर्शीसंत (बाखबर) से पूछो, मैं नहीं जानता।उपरोक्त दोनों पवित्र धर्मों (ईसाई तथा मुसलमान) के पवित्र शास्त्रों ने भीमिल-जुल कर प्रमाणित कर दिया कि सर्व सृष्टी रचनहार, सर्व पाप विनाशक, सर्वशक्तिमान, अविनाशी परमात्मा मानव सदृश शरीर में आकार में है तथा सत्यलोक मेंरहता है। उसका नाम कबीर है, उसी को अल्लाहु अकबिरू भी कहते हैं।आदरणीय धर्मदास जी ने पूज्य कबीर प्रभु से पूछा कि हे सर्वशक्तिमान ! आजतक यह तत्वज्ञान किसी ने नहीं बताया, वेदों के मर्मज्ञ ज्ञानियों ने भी नहीं बताया।इससे सिद्ध है कि चारों पवित्र वेद तथा चारों पवित्र कतेब (कुरान शरीफ आदि)झूठे हैं। पूर्ण परमात्मा ने कहा :-कबीर, बेद कतेब झूठे नहीं भाई, झूठे हैं जो समझे नाहिं।भावार्थ है कि चारों पवित्र वेद (ऋग्वेद - अथर्ववेद - यजुर्वेद - सामवेद) तथापवित्र चारों कतेब (कुरान शरीफ - जबूर - तौरात - इंजिल) गलत नहीं हैं। परन्तुजो इनको नहीं समझ पाए वे नादान हैं।

Wednesday 8 July 2020

नशा करना तेजी से क्यों फैलता है।

   
            तम्बाकू सेवन करना महापाप है"।

नशा ऐसी बीमारी है जो हमें हमारे समाज को हमारे देश को तेजी से निगलते जा रही है
आज शहर और गावों में पढ़ने खेलने की उम्र में स्कूल और कॉलेज के बच्चे एवं युवा वर्ग मादक पदार्थों के बाहुपाश में जकड़ते जा रहे हैं ।

इस बुराई के कुछ हद तक जिम्मेदार हम लोग भी हैं हम अपने काम धंधों में इतना उलझ गए हैं कि हमें फुर्सत ही नहीं है ये जानने की कि हमारा बच्चा कहाँ जा रहा है । क्या कर रहा है कोई परवाह नहीं, बस बच्चों की मांगे पूरी करना ही अपनी जिम्मेदारी समझ बैठे हैं ।

क्यों करते हैं लोग नशा
कभी शौक के नाम पर तो कभी दोस्ती की आड़ में , कभी दुनियाँ के दुखों का बहाना करके तो कभी कोई मज़बूरी बताकर, कभी टेंशन तो कभी बोरियत दूर करनेके लिए लोग शराब , सिगरेट, तम्बाकू आदि अनेक प्रकार के मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं लेकिन नशा कब उनकी जिंदगी का हिस्सा बन जाता है उन्हें पता ही नहीं चलताए जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ।

नशे से शरीर को हानी
हिंसा, बलात्कार, चोरी, आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे नशा एक बहुत बड़ी वजह है । शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए एक्सीडेंट करनाए शादी शुदा व्यक्तियों द्वारा नशे में अपनी पत्नी से मारपीट करना आम बात है। मुँह , गले व फेफड़ों का कैंसर, ब्लड प्रैशर, अल्सर, यकृत रोग, अवसाद एवं अन्य अनेक रोगों का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार का नशा है ।


‘तम्बाकू सेवन करना महापाप है’’संत गरीबदास जी ने भक्त हरलाल जी से कहा कि आप (जो भी दीक्षा लेताहै) तम्बाकू का (हुक्का, बीड़ी, सिगरेट, चिलम आदि में डालकर भी) कभी सेवननहीं करना और अन्य नशीली वस्तुओं का प्रयोग न करना। भक्त ने कहा कि हेमहाराज जी! तम्बाकू तो लगभग सब किसान पीते हैं। इसमें क्या हानि है?उत्तर :- संत गरीबदास जी ने बताया कि आपने रामायण तथा महाभारत कीकथा तो सुनी होंगी। उसमें हुक्का सेवन का कहीं वर्णन नहीं है। तम्बाकू की उत्पत्तिबताऊँ कैसे हुई है, सुन!
एक ऋषि तथा एक राजा साढ़ू थे। एक दिन राजा की रानी ने अपनी बहनऋषि की पत्नी के पास संदेश भेजा कि पूरा परिवार हमारे घर भोजन के लिएआऐं। मैं आपसे मिलना भी चाहती हूँ, बहुत याद आ रही है। अपनी बहन का संदेशऋषि की पत्नी ने अपने पति से साझा किया तो ऋषि जी ने कहा कि साढ़ू सेदोस्ती अच्छी नहीं होती। तेरी बहन वैभव का जीवन जी रही है। राजा को धन तथाराज्य की शक्ति का अहंकार होता है। वे अपनी बेइज्जती करने को बुला रहे हैंक्योंकि फिर हमें भी कहना पड़ेगा कि आप भी हमारे घर भोजन के लिए आना।हम उन जैसी भोजन-व्यवस्था जंगल में नहीं कर पाऐंगे। यह सब साढ़ू जी काषड़यंत्र है। आपके सामने अपने को महान तथा मुझे गरीब सिद्ध करना चाहता है।आप यह विचार त्याग दें। हमारे न जाने में हित है। परंतु ऋषि की पत्नी नहींमानी। ऋषि तथा पत्नी व परिवार राजा का मेहमान बनकर चला गया। रानी नेबहुमूल्य आभूषण पहन रखे थे। बहुमूल्य वस्त्र पहने हुए थे। ऋषि की पत्नी के गलेमें राम नाम जपने वाली माला तथा सामान्य वस्त्र साध्वी वाले जिसे देखकर दरबारके कर्मचारी-अधिकारी मुस्कुरा रहे थे कि यह है राजा का साढ़ू। कहाँ राजा भोज,कहाँ गंगू तेली। यह चर्चा ऋषि परिवार सुन रहा था। भोजन करने के पश्चात् ऋषिकी पत्नी ने भी कहा कि आप हमारे यहाँ भी इस दिन भोजन करने आईएगा।निश्चित दिन को राजा हजारों सैनिक लेकर सपरिवार साढ़ू ऋषि जी कीकुटीया पर पहुँच गया। ऋषि जी ने स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र से निवेदन करके एककामधेनु (सर्व कामना यानि इच्छा पूर्ति करने वाली गाय, जिसकी उपस्थिति मेंखाने की किसी पदार्थ की कामना करने से मिल जाता है, यह पौराणिक मान्यताहै।) माँगी। उसके बदले में ऋषि जी ने अपने पुण्य कर्म संकल्प किए थे। इन्द्र देवने एक कामधेनु तथा एक लम्बा-चौड़ा तम्बू (ज्मदज) भेजा और कुछ सेवादार भीभेजे। टैण्ट के अंदर गाय को छोड़ दिया। ऋषि परिवार ने गऊ माता की आरतीउतारी। अपनी मनोकामना बताई। उसी समय छप्पन (56) प्रकार के भोग चांदीकी परातों, टोकनियों, कड़ाहों में स्वर्ग से आए और टैण्ट में रखे जाने लगे। लड्डू,जलेबी, कचौरी, दही बड़े, हलवा, खीर, दाल, रोटी (मांडे) तथा पूरी, बुंदी, बर्फी,रसगुल्ले आदि-आदि से आधा एकड़ का टैण्ट भर गया। ऋषि जी ने राजा से कहाकि भोजन जीमो। राजा ने बेइज्जती करने के लिए कहा कि मेरी सेना भी साथमें भोजन खाएगी। घोड़ों को भी चारा खिलाना है। ऋषि जी ने कहा कि प्रभु कृपासे सब व्यवस्था हो जाएगी। पहले आप तथा सेना भोजन करें। राजा उठकर भोजनकरने वाले स्थान पर गया। वहाँ भी सुंदर कपड़े बिछे थे। राजा देखकरआश्चर्यचकित रह गया। फिर चांदी की थालियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के भोजनला-लाकर सेवादार रखने लगे। अन्नदेव की स्तुति करके ऋषि जी ने भोजन करनेकी प्रार्थना की। राजा ने देखा कि इसके सामने तो मेरा भोजन-भण्डारा कुछ भी
नहीं था। मैंने तो केवल ऋषि-परिवार को ही भोजन कराया था। वह भी तीन-चारपदार्थ बनाए थे। राजा शर्म के मारे पानी-पानी हो गया। खाना खाते वक्त बहुतपरेशान था। ईर्ष्या की आग धधकने लगी, बेइज्जती मान ली। सर्व सैनिक खाऐंऔर सराहें। राजा का रक्त जल रहा था। अपने टैण्ट में जाकर ऋषि को बुलायाऔर पूछा कि यह भोजन जंगल में कैसे बनाया? न कोई कड़ाही चल रही है, नकोई चुल्हा जल रहा है। ऋषि जी ने बताया कि मैंने अपने पुण्य तथा भक्ति केबदले स्वर्ग से एक गाय उधारी माँगी है। उस गाय में विशेषता है कि हम जितनाभोजन चाहें, तुरंत उपलब्ध करा देती है। राजा ने कहा कि मेरे सामने उपलब्धकराओ तो मुझे विश्वास हो। ऋषि तथा राजा टैण्ट के द्वार पर खड़े हो गए। अन्दरकेवल गाय खड़ी थी। द्वार की ओर मुख था। टैण्ट खाली था क्योंकि सबने भोजनखा लिया था। शेष बचा सामान तथा सेवक ले जा चुके थे। गाय को ऋषि जी कीअनुमति का इंतजार था। राजा ने कहा कि ऋषि जी! यह गाय मुझे दे दो। मेरेपास बहुत बड़ी सेना है। उसका भोजन इससे बनवा लूंगा। तेरे किस काम की है?ऋषि ने कहा, राजन! मैंने यह गऊ माता उधारी ले रखी है। स्वर्ग से मँगवाई है।मैं इसका मालिक नहीं हूँ। मैं आपको नहीं दे सकता। राजा ने दूर खड़े सैनिकोंसे कहा कि इस गाय को ले चलो। ऋषि ने देखा कि साढ़ू की नीयत में खोट आगया है। उसी समय ऋषि जी ने गऊ माता से कहा कि गऊ माता! आप अपने लोकअपने धनी स्वर्गराज इन्द्र के पास शीघ्र लौट जाऐं। उसी समय कामधेनु टैण्ट कोफाड़कर सीधी ऊपर को उड़ चली। राजा ने गाय को गिराने के लिए गाय के पैरमें तीर मारा। गाय के पैर से खून बहने लगा और पृथ्वी पर गिरने लगा। गायघायल अवस्था में स्वर्ग में चली गई। जहाँ-जहाँ गाय का रक्त गिरा था, वहीं-वहींतम्बाकू उग गया। फिर बीज बनकर अनेकों पौधे बनने लगे। संत गरीबदास जीने कहा है कि :-तमा $ खू = तमाखू।खू नाम खून का तमा नाम गाय। सौ बार सौगंध इसे न पीयें-खाय।।भावार्थ :- भावार्थ है कि फारसी भाषा में ‘‘तमा’’ गाय को कहते हैं। खू =खून यानि रक्त को कहते हैं। यह तमाखू गाय के रक्त से उपजा है। इसके ऊपरगाय के बाल जैसे रूंग (रोम) जैसे होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंद हैकि इस तमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू का सेवन गाय काखून पीने के समान पाप लगता है।

अगर आप को नशे की लत से छुटकारा पाना है"! अपने जीवन को स्वछ रखना है। आप नशे को अलविदा करना चाहते हो तो
आज के समय में। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेवे और उनका ज्ञान सुने संत रामपाल जी महाराज की दी गई भक्ति से सब प्रकार के नशे छूट जाते हैं।

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Wednesday 1 July 2020

दहेज प्रथा एक सामाजिक कुरीति हैं।

दहेज प्रथा एक सामाजिक कुरीति हैं।

दहेज प्रथा विवाह के समय दुल्हन के माता-पिता द्वारा दूल्हे के परिवार को भारी मात्रा में नकद, गहने और अन्य उपहार देने की अनुमति देती है। यह व्यवस्था भारत में एक कारण के कारण रखी गई थी और वह यह थी कि कुछ दशक पहले तक बालिकाओं को पैतृक संपत्ति और अन्य अचल संपत्तियों पर कोई अधिकार नहीं था और उन्हें नकदी, आभूषण और अन्य सामान जैसे तरल संपत्ति दी गई थी उसे उचित हिस्सा देने के लिए। हालांकि, यह वर्षों में एक बुरी सामाजिक व्यवस्था में बदल गया है।

माता-पिता अपनी बेटी को दहेज के रूप में देने का इरादा रखते हैं, ताकि वह नई जगह पर आत्मनिर्भर बन सकें। दुर्भाग्य से, ज्यादातर मामलों में, सभी मामलों में दूल्हे के परिवार द्वारा लिया जाता है। इसके अलावा, जबकि पहले यह दुल्हन के माता-पिता का एक स्वैच्छिक निर्णय था, यह इन दिनों उनके लिए एक दायित्व बन गया है।

पर्याप्त दहेज नहीं लाने के लिए शारीरिक और भावनात्मक रूप से प्रताड़ित होने वाली दुल्हनों के कई मामले सामने आए हैं। कई मामलों में, दुल्हन अपने परिवार से अपने ससुराल वालों की मांगों को पूरा करने के लिए मुड़ जाती है, जबकि अन्य लोग यातना को समाप्त करने के लिए अपनी जान दे देते हैं। समय आ गया है कि भारत सरकार को इस कुप्रथा को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए।

सवाल यह है कि दहेज को दंडनीय अपराध बनाने और कई अभियानों के माध्यम से इस प्रणाली के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के बाद भी लोग अभी भी इसका अभ्यास क्यों करते हैं? यहाँ कुछ मुख्य कारण हैं कि दहेज प्रणाली जनता द्वारा निंदा किए जाने के बावजूद बरकरार है:
ससुराल वाले अक्सर अपनी बहू द्वारा लाए गए उपहारों की तुलना अन्य लड़कियों द्वारा अपने आसपास के क्षेत्र में लाए जाते हैं और व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हैं, जिससे उन्हें पीड़ा होती है। लड़कियां अक्सर इसके कारण भावनात्मक रूप से तनाव महसूस करती हैं और कुछ अवसाद से भी गुजरती हैं।


एक बालिका को परिवार के लिए बोझ के रूप में देखा जाता है। यह दहेज प्रथा है जिसने कन्या भ्रूण हत्या को जन्म दिया है। कई जोड़ों द्वारा महिला भ्रूण का गर्भपात कराया जाता है। बालिकाओं को छोड़ दिए जाने के मामले भारत में भी आम हैं।

विवाह में प्रचलित वर्तमान परंपरा का त्याग :-

हमारे देश भारत में धीरे धीरे दहेज प्रथा बढ़ते ही चले जा रहा है। आज के इस आधुनिक युग में भी दहेज प्रथा देश में एक अभिशाप के रूप में फैल चुका है। आज भी इस 21वीं सदी में बेटी के जन्म लेते ही ज्यादातर माता-पिता के सिर पर चिंता सवार हो जाता है।


चिंता इस बात की नहीं होती है की लड़की की पढ़ाई कैसे करवाएंगे? चिंता तो इस बात की होती है की विवाह कैसे करवाएंगे, विवाह के लिए दहेज कैसे इकट्ठा करेंगे? यही सोच दहेज़ प्रथा जैसी सामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।


पुराने जमाने में है दहेज की प्रथा नहीं थी

विवाह में व्यर्थ का खर्च त्यागना पड़ेगा। जैसे बेटी के विवाह में बड़ी बारातका आना, दहेज देना, यह व्यर्थ परंपरा है। जिस कारण से बेटी परिवार पर भारमानी जाने लगी है और उसको गर्भ में ही मारने का सिलसिला शुरू है जोमाता-पिता के लिए महापाप का कारण बनता है। बेटी देवी का स्वरूप है। हमारीकुपरम्पराओं ने बेटी को दुश्मन बना दिया। श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाणहै कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथाश्री शिव जी) का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोईबाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे
बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्माजी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दीजाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्रश्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहाकि ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनोंअपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व काविस्तार हुआ।