Wednesday 15 July 2020

बकरा ईद का कितना सबाब मिलता है।

                           बकरा ईद


इस्लाम मज़हब में दो ईदें त्योहार के रूप में मनाई जाती हैं। ईदुलब फ़ित्र जिसे मीठी ईद भी कहा जाता है और दूसरी ईद है बक़र ईद। इस ईद को आम आदमी बकरा ईद भी कहता है। शायद इसलिए कि इस ईद पर बकरे की क़ुर्बानी की जाती है। वैसे इस ईद को ईदुज़्ज़ोहा औए ईदे-अज़हा भी कहा जाता है। इस ईद का गहरा संबंध क़ुर्बानी से है।

पैग़म्बर हज़रत इब्राहीम को ख़ुदा की तरफ़ से हुक्म हुआ कि क़ुर्बानी करो, अपनी सबसे ज़्यादा प्यारी चीज़ की क़ुर्बानी करो। हज़रत इब्राहीम के लिए सबसे प्यारी चीज़ थी उनका इकलौता बेटा इस्माईल। ‍लिहाज़ा हज़रत इब्राहीम अपने बेटे को क़ुर्बानी करने के लिए तैयार हो गए। इधर बेटा इस्माईल भी ख़ुशी-ख़ुशी अल्लाह की राह में क़ुर्बान होने को तैयार हो गया।

मुख़्तसर ये कि ऐन क़ुर्बानी के वक़्त हज़रत इस्माईल की जगह एक दुम्बा क़ुर्बान हो गया। ख़ुदा ने हज़रत इस्माईल को बचा लिया और हज़रत इब्राहीम की क़ुर्बानी क़ुबूल कर ली। तभी से हर साल उसी दिन उस क़ुर्बानी की याद में बक़र ईद मनाई जाती है और क़ुर्बानी की जाती है।

इस दिन आमतौर से बकरे की क़ुर्बानी की जाती है। बकरा तन्दुरुस्त और बग़ैर किसी ऐब का होना चाहिए। यानी उसके बदन के सारे हिस्से वैसे ही होना चाहिए जैसे ख़ुदा ने बनाए हैं। सींग, दुम, पाँव, आँख, कान वग़ैरा सब ठीक हों, पूरे हों और जानवर में किसी तरह की बीमारी भी न हो। क़ुर्बानी के जानवर की उम्र कम से कम एक साल हो।

अपना मज़हबी फ़रीज़ा समझकर क़ुर्बानी करना चाहिए। जो ज़रूरी बातें ऊपर बताई गई हैं उनका ख़्याल रखना चाहिए। लेकिन आजकल देखने में आ रहा है कि इसमें झूठी शान और दिखावा भी शामिल हो गया है। 15-20 हज़ार से लेकर लाख, दो लाख का बकरा ख़रीदा जाता है, उसे समाज में घुमाया जाता है ता‍कि लोग उसे देखें और उसके मालिक की तारीफ़ करें। इस दिखावे का क़ुर्बानी से कोई तआल्लुक़ नहीं है। क़ुर्बानी से जो सवाब एक मामूली बकरे की क़ुर्बानी से मिलता है वही किसी महँगे बकरे की क़ुर्बानी से मिलता है। अगर आप बहुत पैसे वाले हैं तो ऐसे काम करें जिससे ग़रीबों को ज़्यादा फ़ायदा हो।

अल्लाह का नाम लेकर जानवर को क़ुर्बान किया जाता है। इसी क़ुर्बानी और गोश्त को हलाल कहा जाता है। इस गोश्त के तीन बराबर हिस्से किए जाते हैं, एक हिस्सा ख़ुद के लिए, एक दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा ग़रीबों और मिस्कीनों के लिए। मीठी ईद पर सद्क़ा और ज़कात दी जाती है तो इस ईद पर क़ुर्बानी के गोश्त का एक हिस्सा ग़रीबों में तक़सीम किया जाता है। हर त्योहार पर ग़रीबों का ख़्याल ज़रूर रखा जाता है ताक‍ि उनमें कमतरी का एहसास पैदा न हो।

इस तरह यह ईद जहाँ सबको साथ लेकर चलने का पैग़ाम देती है वहीं यह भी बताती है के इंसान को ख़ुदा का कहा मानने में, सच्चाई की राह में अपना सब कुछ क़ुर्बान करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। आज जो हमारे मुल्क के हालात हैं उनको देखते हुए किसी ने क्या ख़ूब कहा है,

इसी का प्रमाण पवित्र बाईबल में तथा पवित्र कुरान शरीफ में भी है।कुरान शरीफ में पवित्र बाईबल का भी ज्ञान है, इसलिए इन दोनों पवित्र सद्ग्रन्थोंने मिल-जुल कर प्रमाणित किया है कि कौन तथा कैसा है सृष्टी रचनहार तथा उसकावास्तविक नाम क्या है।पवित्र बाईबल (उत्पत्ति ग्रन्थ पृष्ठ नं. 2 पर, अ. 1ः20 - 2ः5 पर)छटवां दिन :- प्राणी और मनुष्य :अन्य प्राणियों की रचना करके 26. फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूपके अनुसार अपनी समानता में बनाएं, जो सर्व प्राणियों को काबू रखेगा। 27. तब परमेश्वर नेमनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर नेउसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टी की।29. प्रभु ने मनुष्यों के खाने के लिए जितने बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीजवाले फल होते हैं वे भोजन के लिए प्रदान किए हैं, (माँस खाना नहीं कहा है।)सातवां दिन :- विश्राम का दिन :परमेश्वर ने छः दिन में सर्व सृष्टी की उत्पत्ति की तथा सातवें दिन विश्राम किया।पवित्र बाईबल ने सिद्ध कर दिया कि परमात्मा मानव सदृश शरीर में है, जिसनेछः दिन में सर्व सृष्टी की रचना की तथा फिर विश्राम किया।पवित्र कुरान शरीफ (सुरत फुर्कानि 25, आयत नं. 52, 58, 59)आयत 52 :- फला तुतिअल् - काफिरन् व जहिद्हुम बिही जिहादन् कबीरा(कबीरन्)।।52।इसका भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी का खुदा (प्रभु) कह रहा है कि हे पैगम्बर !आप काफिरों (जो एक प्रभु की भक्ति त्याग कर अन्य देवी-देवताओं तथा मूर्ति आदि कीपूजा करते हैं) उस का कहा मत मानना, क्योंकि वे लोग कबीर को पूर्ण परमात्मा नहीं मानते।आप मेरे द्वारा दिए इस कुरान के ज्ञान के आधार पर अटल रहना कि कबीर ही पूर्ण प्रभु हैतथा कबीर अल्लाह के लिए संघर्ष करना (लड़ना नहीं) अर्थात् अडिग रहना।

आयत 58 :- व तवक्कल् अलल् - हरिल्लजी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिही व कफाबिही बिजुनूबि िअबादिही खबीरा (कबीरा)।।58।

 भावार्थ कि हजरत मुहम्मद जी जिसे अपना प्रभु मानते हैं वह अल्लाह (प्रभु)किसी और पूर्ण प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है कि ऐ पैगम्बर उस कबीर परमात्मा परविश्वास रख जो तुझे जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिला था। वह कभी मरने वालानहीं है अर्थात् वास्तव में अविनाशी है। तारीफ के साथ उसकी पाकी (पवित्र महिमा)का गुणगान किए जा, वह कबीर अल्लाह (कविर्देव) पूजा के योग्य है तथा अपने उपासकों का सर्व पापों का विनाश करने वाला है।

आयत 59 :- अल्ल्जी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन्सुम्मस्तवा अलल्अर्शि अर्रह्मानु फस्अल् बिही खबीरन्(कबीरन्)।।59
।।
भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कहरहा है कि वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भीविद्यमान है सर्व सृष्टी की रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपनेसत्यलोक में सिंहासन पर विराजमान हो (बैठ) गया। उसके विषय में जानकारी किसी(बाखबर) तत्वदर्शी संत से पूछोउस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति कैसे होगी तथा वास्तविक ज्ञान तो किसी तत्वदर्शीसंत (बाखबर) से पूछो, मैं नहीं जानता।उपरोक्त दोनों पवित्र धर्मों (ईसाई तथा मुसलमान) के पवित्र शास्त्रों ने भीमिल-जुल कर प्रमाणित कर दिया कि सर्व सृष्टी रचनहार, सर्व पाप विनाशक, सर्वशक्तिमान, अविनाशी परमात्मा मानव सदृश शरीर में आकार में है तथा सत्यलोक मेंरहता है। उसका नाम कबीर है, उसी को अल्लाहु अकबिरू भी कहते हैं।आदरणीय धर्मदास जी ने पूज्य कबीर प्रभु से पूछा कि हे सर्वशक्तिमान ! आजतक यह तत्वज्ञान किसी ने नहीं बताया, वेदों के मर्मज्ञ ज्ञानियों ने भी नहीं बताया।इससे सिद्ध है कि चारों पवित्र वेद तथा चारों पवित्र कतेब (कुरान शरीफ आदि)झूठे हैं। पूर्ण परमात्मा ने कहा :-कबीर, बेद कतेब झूठे नहीं भाई, झूठे हैं जो समझे नाहिं।भावार्थ है कि चारों पवित्र वेद (ऋग्वेद - अथर्ववेद - यजुर्वेद - सामवेद) तथापवित्र चारों कतेब (कुरान शरीफ - जबूर - तौरात - इंजिल) गलत नहीं हैं। परन्तुजो इनको नहीं समझ पाए वे नादान हैं।

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