Tuesday 15 September 2020

तंम्बाकू सेवन करना महापाप है।

                 तंम्बाकू उत्पत्ति की कथा

एक ऋषि तथा एक राजा साढ़ू थे। एक दिन राजा की रानी ने अपनी बहनऋषि की पत्नी के पास संदेश भेजा कि पूरा परिवार हमारे घर भोजन के लिएआऐं। मैं आपसे मिलना भी चाहती हूँ, बहुत याद आ रही है। अपनी बहन का संदेशऋषि की पत्नी ने अपने पति से साझा किया तो ऋषि जी ने कहा कि साढ़ू सेदोस्ती अच्छी नहीं होती। तेरी बहन वैभव का जीवन जी रही है। राजा को धन तथाराज्य की शक्ति का अहंकार होता है। वे अपनी बेइज्जती करने को बुला रहे हैंक्योंकि फिर हमें भी कहना पड़ेगा कि आप भी हमारे घर भोजन के लिए आना।हम उन जैसी भोजन-व्यवस्था जंगल में नहीं कर पाऐंगे। यह सब साढ़ू जी का षड़यंत्र है। आपके सामने अपने को महान तथा मुझे गरीब सिद्ध करना चाहता है।आप यह विचार त्याग दें। हमारे न जाने में हित है। परंतु ऋषि की पत्नी नहींमानी। ऋषि तथा पत्नी व परिवार राजा का मेहमान बनकर चला गया। रानी नेबहुमूल्य आभूषण पहन रखे थे। बहुमूल्य वस्त्र पहने हुए थे। ऋषि की पत्नी के गलेमें राम नाम जपने वाली माला तथा सामान्य वस्त्र साध्वी वाले जिसे देखकर दरबारके कर्मचारी-अधिकारी मुस्कुरा रहे थे कि यह है राजा का साढ़ू। कहाँ राजा भोज,कहाँ गंगू तेली। यह चर्चा ऋषि परिवार सुन रहा था। भोजन करने के पश्चात् ऋषिकी पत्नी ने भी कहा कि आप हमारे यहाँ भी इस दिन भोजन करने आईएगा।निश्चित दिन को राजा हजारों सैनिक लेकर सपरिवार साढ़ू ऋषि जी कीकुटीया पर पहुँच गया। ऋषि जी ने स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र से निवेदन करके एककामधेनु (सर्व कामना यानि इच्छा पूर्ति करने वाली गाय, जिसकी उपस्थिति मेंखाने की किसी पदार्थ की कामना करने से मिल जाता है, यह पौराणिक मान्यताहै।) माँगी। उसके बदले में ऋषि जी ने अपने पुण्य कर्म संकल्प किए थे। इन्द्र देवने एक कामधेनु तथा एक लम्बा-चौड़ा तम्बू (ज्मदज) भेजा और कुछ सेवादार भीभेजे। टैण्ट के अंदर गाय को छोड़ दिया। ऋषि परिवार ने गऊ माता की आरतीउतारी। अपनी मनोकामना बताई। उसी समय छप्पन (56) प्रकार के भोग चांदीकी परातों, टोकनियों, कड़ाहों में स्वर्ग से आए और टैण्ट में रखे जाने लगे। लड्डू,जलेबी, कचौरी, दही बड़े, हलवा, खीर, दाल, रोटी (मांडे) तथा पूरी, बुंदी, बर्फी,रसगुल्ले आदि-आदि से आधा एकड़ का टैण्ट भर गया। ऋषि जी ने राजा से कहाकि भोजन जीमो। राजा ने बेइज्जती करने के लिए कहा कि मेरी सेना भी साथमें भोजन खाएगी। घोड़ों को भी चारा खिलाना है। ऋषि जी ने कहा कि प्रभु कृपासे सब व्यवस्था हो जाएगी। पहले आप तथा सेना भोजन करें। राजा उठकर भोजनकरने वाले स्थान पर गया। वहाँ भी सुंदर कपड़े बिछे थे। राजा देखकरआश्चर्यचकित रह गया। फिर चांदी की थालियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के भोजनला-लाकर सेवादार रखने लगे। अन्नदेव की स्तुति करके ऋषि जी ने भोजन करनेकी प्रार्थना की। राजा ने देखा कि इसके सामने तो मेरा भोजन-भण्डारा कुछ नहीं था।



 मैंने तो केवल ऋषि-परिवार को ही भोजन कराया था। वह भी तीन-चारपदार्थ बनाए थे। राजा शर्म के मारे पानी-पानी हो गया। खाना खाते वक्त बहुतपरेशान था। ईर्ष्या की आग धधकने लगी, बेइज्जती मान ली। सर्व सैनिक खाऐंऔर सराहें। राजा का रक्त जल रहा था। अपने टैण्ट में जाकर ऋषि को बुलायाऔर पूछा कि यह भोजन जंगल में कैसे बनाया? न कोई कड़ाही चल रही है, नकोई चुल्हा जल रहा है। ऋषि जी ने बताया कि मैंने अपने पुण्य तथा भक्ति केबदले स्वर्ग से एक गाय उधारी माँगी है। उस गाय में विशेषता है कि हम जितनाभोजन चाहें, तुरंत उपलब्ध करा देती है। राजा ने कहा कि मेरे सामने उपलब्धकराओ तो मुझे विश्वास हो। ऋषि तथा राजा टैण्ट के द्वार पर खड़े हो गए। अन्दरकेवल गाय खड़ी थी। द्वार की ओर मुख था। टैण्ट खाली था क्योंकि सबने भोजनखा लिया था। शेष बचा सामान तथा सेवक ले जा चुके थे। गाय को ऋषि जी कीअनुमति का इंतजार था। राजा ने कहा कि ऋषि जी! यह गाय मुझे दे दो। मेरेपास बहुत बड़ी सेना है। उसका भोजन इससे बनवा लूंगा। तेरे किस काम की है?ऋषि ने कहा, राजन! मैंने यह गऊ माता उधारी ले रखी है। स्वर्ग से मँगवाई है।मैं इसका मालिक नहीं हूँ। मैं आपको नहीं दे सकता। राजा ने दूर खड़े सैनिकोंसे कहा कि इस गाय को ले चलो। ऋषि ने देखा कि साढ़ू की नीयत में खोट आगया है। उसी समय ऋषि जी ने गऊ माता से कहा कि गऊ माता! आप अपने लोकअपने धनी स्वर्ग राज इन्द्र के पास शीघ्र लौट जाऐं। उसी समय कामधेनु टैण्ट को फाड़कर सीधी ऊपर को उड़ चली। राजा ने गाय को गिराने के लिए गाय के पैरमें तीर मारा। गाय के पैर से खून बहने लगा और पृथ्वी पर गिरने लगा। गायघायल अवस्था में स्वर्ग में चली गई। जहाँ-जहाँ गाय का रक्त गिरा था, वहीं-वहींतम्बाकू उग गया। फिर बीज बनकर अनेकों पौधे बनने लगे। संत गरीबदास जीने कहा है कि :-तमा $ खू = तमाखू।खू नाम खून का तमा नाम गाय। सौ बार सौगंध इसे न पीयें-खाय।।भावार्थ :- भावार्थ है कि फारसी भाषा में ‘‘तमा’’ गाय को कहते हैं। खू =खून यानि रक्त को कहते हैं। यह तमाखू गाय के रक्त से उपजा है। इसके ऊपरगाय के बाल जैसे रूंग (रोम) जैसे होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंद हैकि इस तमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू का सेवन गाय काखून पीने के समान पाप लगता है। मुसलमान धर्म के व्यक्तियों को हिन्दुओं से पताचला कि तमाखू की उत्पत्ति ऐसे हुई है। उन्होंने गाय का खून समझकर खाना तथाहुक्के में पीना शुरू कर दिया क्योंकि गलत ज्ञान के आधार से मुसलमान भाई गायके माँस को खाना धर्म का प्रसाद मानते हैं। वास्तव में हजरत मुहम्मद जो मुसलमानधर्म के प्रवर्तक माने जाते हैं, उन्होंने कभी-भी जीव का माँस नहीं खाया था।

गरीब, नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।एक लाख अस्सी कू सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।

गरीब, अर्स कुर्श पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।वै पैगंबर पाक पुरूष थे, साहेब के अबदाली।।

भावार्थ :- नबी मुहम्मद तो आदरणीय महापुरूष थे जो परमात्मा केसंदेश वाहक थे। ऐसे-ऐसे एक लाख अस्सी हजार पैगंबर मुसलमान धर्म में (बाबाआदम से लेकर मुहम्मद तक) माने गए हैं। वे सब पाक (पवित्र) व्यक्ति थे जिन्होंनेकभी किसी पशु-पक्षी पर करद यानि तलवार नहीं चलाई। वे तो परमात्मा से डरनेवाले थे। परमात्मा के कृपा पात्र थे। बाद में कुछ मुल्ला-काजियों ने माँस खाने कीपरम्परा शुरू कर दी जो आगे चलकर धार्मिकता का अपवाद (बिगड़ा रूप) बनगई। उसी आधार से सर्व मुसलमान भाई पाप को खा रहे हैं। फिर भ्रमितमुसलमानों ने तम्बाकू का सेवन (खाना, हुक्का बनाकर पीना) प्रारम्भ कर दिया।भोले हिन्दु धर्म के व्यक्तियों ने उनकी चाल नहीं समझी। उनके कहने से तमाखूका सेवन जोर-शोर से शुरू कर दिया। वर्तमान में तो यह पंचायत का प्याला बनगया है जो भारी भूल है। अज्ञानता का पर्दा है। इसे भूलकर भी सेवन नहीं करनाचाहिए। संत गरीबदास जी ने फिर बताया है कि हे भक्त हरलाल जी! और सुनतमाखू सेवन के पाप :-गरीब, परद्वारा स्त्रा का खोलै। सत्तर जन्म अंधा हो डोलै।।1मदिरा पीवै कड़वा पानी। सत्तर जन्म श्वान के जानी।।2मांस आहारी मानवा, प्रत्यक्ष राक्षस जान।मुख देखो न तास का, वो फिरै चौरासी खान।।3सुरापान मद्य मांसाहारी। गमन करै भोगै पर नारी।।4सत्तर जन्म कटत है शीशं। साक्षी साहेब है जगदीशं।।5सौ नारी जारी करै, सुरापान सौ बार।एक चिलम हुक्का भरै, डूबै काली धार।।6हुक्का हरदम पीवते, लाल मिलांवे धूर।इसमें संशय है नहीं, जन्म पीछले सूअर।।7वांणियो का भावार्थ :-वाणी सँख्या 1 में कहा है कि जो व्यक्ति अन्य स्त्री से अवैध सम्बन्ध बनाताहै, उस पाप के कारण वह सत्तर जन्म अंधे के प्राप्त करता है। अंधा गधा-गधी, अंधाबैल, अंधा मनुष्य या अंधी स्त्री के लगातार सत्तर जन्मों में कष्ट भोगता है।वाणी सँख्या 2 :- कड़वी शराब रूपी पानी जो पीता है, वह उस पाप केकारण सत्तर जन्म तक कुत्ते के जन्म प्राप्त करके कष्ट उठाता है। गंदी नालियोंका पानी पीता है। रोटी ने मिलने पर गुह (टट्टी) खाता है।वाणी सँख्या 3 :- जो व्यक्ति माँस खाते हैं, वे तो स्पष्ट राक्षस हैं। उनकातो मुख भी नहीं देखना चाहिए यानि उनके साथ रहने से अन्य भी माँस खाने काआदी हो सकता है। इसलिए उनसे बचें। वह तो चौरासी लाख योनियों में भटकेगा।वाणी सँख्या 4.5 :- (सुरा) शराब (पान) पीने वाले तथा पर स्त्री को भोगने वाले,

माँस खाने वालों को अन्य पाप कर्म भी भोगना होता है। उनके सत्तर जन्मतक मानव या बकरा-बकरी, भैंस या मुर्गे आदि के जीवनों में सिर कटते हैं। इसबात को मैं परमात्मा को साक्षी रखकर कह रहा हूँ, सत्य मानना।वाणी सँख्या 6 :- एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने से भरने वालेको जो पाप लगता है, वह सुनो। एक बार परस्त्री गमन करने वाला, एक बारशराब पीने वाला, एक बार माँस खाने वाला पाप के कारण उपरोक्त कष्ट भोगताहै। सौ स्त्रियों से भोग करे और सौ बार शराब पीऐ, उसे जो पाप लगता है, वहपाप एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने वाले को लगता है। विचार करोतम्बाकू सेवन (हुक्के में, बीड़ी-सिगरेट में पीने वाले, खाने वाले) करने वाले कोकितना पाप लगेगा? इसलिए उपरोक्त सर्व पदार्थों का सेवन कभी न करो।वाणी सँख्या 7 :- समाज के व्यक्तियों को देखकर कुछ व्यक्ति हुक्का या अन्यनशीली वस्तुऐं सेवन करने लग जाते हैं। यदि सत्संग सुनकर बुराई त्याग देते हैंतो वे जीव पिछले जन्म में भी मनुष्य थे। उनके अंदर नशे की गहरी लत नहींबनती। परंतु जो बार-बार सत्संग सुनकर भी तम्बाकू आदि नशे का त्याग नहीं करपाते, वे पिछले जन्म में सूअर के शरीर में थे। सूअर के शरीर में बदबू  सूंघने से तम्बाकू की बदबू पीने-सूंघने की गहरी आदत होती है। वे शीघ्र हुक्का वअन्य नशा नहीं त्याग पाते। वे अपने अनमोल मानव शरीर रूपी लाल को मिट्टीमें मिला रहे हैं। उनको अधिक सत्संग सुनने की राय दी जाती है। निराश न हों।सच्चे मन से परमात्मा कबीर जी से नशा छुड़वाने की पुकार प्रार्थना करने से सबनशा छूट जाता है।‘‘

मानव शरीर को ऑक्सीजनकी आवश्यकता है। उसके स्थान पर तम्बाकू का धुँआ (कार्बनडाईऑक्साइड) प्रवेशकरता है तो उनको खाँसी रोग हो जाता है। पित्त तथा बाई (बाय) का रोग होजाता है। हुक्का पीने वाले का बैठने का स्टाईल बताया है कि हुक्का पीने वालेएक-दो तो हुक्के के निकट बैठेंगे। एक कुछ दूरी पर बैठेगा और कहेगा किसरकाइये थोड़ा-सा। दूसरे उसकी ओर हुक्का देंगे। फिर नै (नली जिससे धुँआखींचते हैं) गुरड़-गुरड़ बाजैगी। आप तो हुक्का पीकर डूबे हैं और छोटे बच्चे भीउनको देखकर वही पाप करके नरक की काली धार में डूबेंगे, जो तम्बाकू पीते हैं,उनके तो भाग फूटे ही हैं। अन्य को तम्बाकू पीने के लिए उत्प्रेरक बनकर डुबोतेहैं। उपरोक्त बुराई करने वाले तो अपना जीवन ऐसे व्यर्थ कर जाते हैं जैसे भड़भूजाबालु रेत को आग से खूब गर्म करके चने भूनता है। फिर सारा कार्य करके रेत कोगली में फैंक देता है। इसी प्रकार जो मानव उपरोक्त बुराई करता है, वह भी अपनेमानव जीवन को इसी प्रकार व्यर्थ करके चला जाता है। उस जीव को नरक तथाअन्य प्राणियों के जीवन रूपी गली में फैंक दिया जाता है। जो व्यक्ति उपरोक्त पापकरते हैं, वे भगवान के दरबार में क्या जवाब देंगे यानि बोलने योग्य नहीं रहेंगे।फिर कहा है कि गाय अपनी माता के तुल्य है जिसका सब धर्म-जाति वालेदूध-घी पीते-खाते हैं। इसलिए गाय को मत मारो। विषय तम्बाकू का चल रहा हैः-भक्ति मार्ग में तम्बाकू सबसे अधिक बाधा करता है। जैसे अपने दोनों नाकोंके मध्य में एक तीसरा रास्ता है जो छोटी सूई के नाके जितना है। जो तम्बाकू काधुँआ नाकों से छोड़ते हैं, वह उस रास्ते को बंद कर देता है। वही रास्ता ऊपर कोत्रिकुटी की ओर जाता है जहाँ परमात्मा का निवास है। जिस रास्ते से हमनेपरमात्मा से मिलना है, उसी को तम्बाकू का धुँआ बंद कर देता है। हुक्का पीनेवालों को देखा है, प्रतिदिन हुक्के की नै (नली) में लोहे की गज (एक पतला-सासरिया) घुमाते हैं जिनमें से धुँए का जमा हुआ मैल निकलता है। वह नै रूक जातीहै। मानव जीवन परमात्मा प्राप्ति के लिए ही मिला है। परमात्मा को प्राप्त करनेवाले मार्ग को तम्बाकू का धुँआ बंद कर देता है। इसलिए भी तम्बाकू भक्त के लिएमहान शत्र है। वैसे भी हुक्का पीने वाले भी मानते हैं कि तम्बाकू अच्छी चीज नहींहै। जब कोई छोटा बच्चा अपने दादा-ताऊ, पिता-चाचा को हुक्का पीते देखता हैतो वह भी नकल करता है। हुक्के को पीने लगता है तो बड़े व्यक्ति जो स्वयं हुक्कापीते हैं, उस बच्चे को धमकाते हैं कि खबरदार! अगर हुक्का पीया तो। यह अच्छानहीं है। यदि आप जी इसे अच्छा पदार्थ मानते हैं तो बच्चों को भी पीने दो।

आप मना करते हैं तो मानते हो कि यह अच्छा नहीं है, हानिकारक है। सर्दियों में एकमकान में छोटे बच्चे भी सो रहे होते हैं। उसी में हुक्का पीने वाला हुक्का पी रहाहोता है। वह स्वयं तो पाप कर ही रहा है, अपने परिवार को धुँआ पिलाकर पापका भागी बना रहा है। छोटे बेटा-बेटी को दादा-पिताजी अपने हिस्से के दूध सेपिलाने की कोशिश करता है कि ले, थोड़ा ओर पी ले, देख तेरी चोटी बढ़ रहीहै, और पी जा। इस प्रकार उसे दूध का गिलास पिलाकर दम लेता है क्योंकि दूधबच्चे के लिए लाभदायक है। हुक्का-बीड़ी पीने से मना करता है तो दिल तो कहता है कि तम्बाकू पीना बुरा है, परंतु समाज में यह बुराई आम हो चुकी है। इसलिए पाप नहीं लगता। जैसे कई कबीले माँस खाते हैं, उनके बच्चों के लिए वह पाप आमबात है। इसी प्रकार तम्बाकू पीना भी महापाप है, परंतु परम्परा पड़ गई है, पाप नहींलगता। इसे त्याग देना चाहिए। भक्त हरलाल जी ने उसी दिन हुक्का तोड़ दिया।चिलम फोड़ दी। सर्व परिवार को वे सब बातें सुनाई। नाम-दीक्षा दिलाई। कई पीढ़ीतक बेरी के उन परिवारों में हुक्का नहीं था।

अधिक जानकारी के लिए साधना टीवी देखे शाम 7:30 से 8:30 तक