Sunday 27 November 2022

मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरान

भूत-प्रेत की बाधा से मिली निजात

मैं शाहिना गर्ग, शिमला (हिमाचल प्रदेश) की रहने वाली हूँ। मैंने पोस्ट ग्रेजुएट किया है। एक मुस्लिम परिवार से संबंध होने के नाते मैं रोजे रखना, नमाज करना ये सब करती थी क्योंकि मुझे भी अल्लाह की तलाश थी। मुझे प्रेत बाधा की समस्या हो गई थी। मैंने बहुत सारे पीर, फकीरों, मजारों पर दिखाया। लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। मेरी शादी एक हिन्दू परिवार में हुई। मैंने हिन्दू रीति-रिवाज के हिसाब से भी भक्ति साधना की। लेकिन कोई लाभ
नहीं हुई। मेरे ससुराल वालों ने भी मुझे बहुत जगह दिखाया। लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। मानसिक और आर्थिक 
 परेशानी सम्पूर्ण परिवार की बढ़ गई थी। फिर हमारे एक रिश्तेदार हैं जो शिमला में ही रहते हैं। उन्होंने हमें बताया 
 कि आप संत रामपाल जी महाराज की शरण में चले जाओ। वहाँ सब ठीक हो जाएगा। लेकिन हमें भरोसा नहीं हुआ और हम वापिस घर आ गए। उन्होंने हमें एक किताब ज्ञान गंगा भी दी। लेकिन हमने उसे भी 3.4 महीने तक ऐसे
ही रखे रखा। फिर हम बहुत ज्यादा परेशान होते गए तो हमने संत रामपाल जी महाराज से जून 2014 में नाम दीक्षा ली। जब संत रामपाल जी महाराज जी ने मुझे आशीर्वाद दिया तो ऐसे लगा कि मन से पता नहीं कितना भार उतर गया और संत जी ने कहा कि सब ठीक हो जाएगा। फिर हम घर आ गए और मेरी प्रेत बाधा भी समाप्त हो गई। मैं एकदम ठीक हो गई। मेरी बीमारी की वजह से हमारा तालाक भी होने वाला था जो संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेने के बाद में टल गया। आज हम अच्छे से रह रहे हैं। मेरे पति के पास में जॉब नहीं थी। संत रामपाल जी महाराज की दया से आज उनकी जॉब भी लग गई है। संत रामपाल जी महाराज पवित्रा शास्त्रों के अनुसार भक्ति विधि बताते हैं। भगत समाज से मेरा यही निवेदन है कि आप संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में आएँ।
वही पूर्ण संत हैं जो सही भक्ति विधि बताते हैं। 
भक्तमति शाहिना गर्ग
शिमला, हिमाचल प्रदेश
सम्पर्क सूत्र:- 8307744506
   

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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है 

Tuesday 16 November 2021

पवित्र मुसलमान धर्म का संक्षिप्त परिचय


पवित्र र्कुआन शरीफ ने प्रभु के विषय में क्या बताया है ?

परम पूज्य कबीर परमेश्वर ने कहना प्रारम्भ किया। पवित्र र्कुआन शरीफ सुरत फुर्कानि संख्या 25 आयत 52 से 59 में जिस कबीर अल्लाह का विवरण है वह पूर्ण परमात्मा है। जिसे अल्लाहु अकबर(अकबीरू) कहते हो। र्कुआन शरीफ का ज्ञान दाता अल्लाह किसी अन्य कबीर नामक अल्लाह की महिमा का गुणगान कर रहा है। आयत सं. 52 से 58 तथा 59 में हजरत मुहम्मद जी को र्कुआन शरीफ के ज्ञान दाता प्रभु ने कहा है कि हे नबी मुहम्मद ! जो कबीर नामक अल्लाह है उसने सर्व ब्रह्मण्डो की रचना की है। वही सर्व पाप नाश (क्षमा) करने वाला है तथा सर्व के पूजा करने योग्य है(इबादही कबीरा अर्थात् पूजा के योग्य कबीर)। उसी ने जमीन तथा आसमान के मध्य जो कुछ भी है सर्व की रचना छः दिन में की है तथा सातवें दिन आसमान में तख्त पर जा विराजा। काफिर लोग उस कबीर प्रभु (अल्लाहु अकबर) को सर्व शक्तिमान प्रभु नहीं मानते। आप उनकी बातों में मत आना। उनका कहा मत मानना। मेरे द्वारा दिए र्कुआन शरीफ की दलीलों पर विश्वास रखना तथा अहिंसा के साथ कबीर अल्लाह के लिए संघर्ष (जिहाद) करना, लड़ाई नहीं करना (सूरत फुर्कानि आयत 52)। उस परमात्मा कबीर (अल्लाहु अकबर) की भक्ति विधि तथा उसके विषय में पूर्ण ज्ञान मुझे नहीं है। उस सर्व शक्तिमान, सर्व ब्रह्मण्डों के रचनहार, सर्व पाप नाशक, सर्व के पूजा योग्य कबीर अल्लाह की पूजा के विषय में किसी तत्त्वदर्शी (बाखबर) संत से पूछो।

कबीर परमेश्वर ने कहा शेखतकी जी आपके अल्लाह को ही ज्ञान नहीं है तो आप के हजरत मुहम्मद साहेब जी को कैसे पूर्ण ज्ञान हो सकता है? तथा अन्य काजी, मुल्ला तथा पीर भी सत्य साधना तथा
तत्त्वज्ञान से वंचित हैं। जिस कारण से साधक के कष्ट का निवारण नहीं होता। अन्य साधना जैसे पाँच समय निमाज, बंग आदि देने से मोक्ष तथा कष्ट निवारण नहीं होता। जन्म-मृत्यु तथा स्वर्ग-नरक तथा अन्य प्राणियों के शरीरों में भी किए कर्म के आधार से कष्ट भोगना पड़ता है। उपरोक्त वार्ता सुनकर शेखतकी ने तुरन्त र्कुआन शरीफ को खोला तथा सूरत फुर्कानि संख्या 25 आयत 52 से 59 को पढ़ा जिसमें उपरोक्त विवरण सही था। वास्तविकता को आँखों देखकर भी मान हानि के भय से कहा कि ऐसा कहीं नही ंलिखा है। यह काफिर झूठ बोल रहा है। उस समय शिक्षा का अभाव था। मुसलमान समाज अरबी भाषा से परिचित नहीं था। र्कुआन शरीफ अरबी भाषा में लिखी थी। बादशाह सिकंदर को भी शंका हो गई कि परमेश्वर कबीर साहेब जी भले ही शक्ति युक्त हैं परन्तु अशिक्षित होने के कारण र्कुआन शरीफ के विषय में नहीं जान सकते। शेखतकी ने जले-भुने वचन बोले क्या तूही है वह बाखबर ? फिर बता दे वह अल्लाहु अकबर कैसा है? यदि परमात्मा को साकार कहता है तो कौन है? कहाँ रहता है?

परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा:- वह कबीर अल्लाह जिसे आप अल्लाहू अकबर कहते हो मैं ही हूँ। मैं ऊपर सतलोक में रहता हूँ। मैंने ही सर्व ब्रह्मण्डों की रचना की है। मैं हजरत मुहम्मद जी को भी जिन्दा संत का रूप धारण करके मिला था तथा उस प्यारी आत्मा को सतलोक दिखाकर वापिस छोड़ा था। हजरत मुहम्मद से कहा था कि आप अब मेरी महिमा सर्व अनुयाईयों को सुनाओ। परन्तु जिबराईल फरिश्ते के भय के कारण तत्त्व ज्ञान का प्रचार नहीं किया तथा न मेरी बातों पर विश्वास किया। क्योंकि उससे पूर्व जिबराईल देवता हजरत मुहम्मद जी को पितर लोक में घुमा लाया था। जहाँ पर हजरत मुहम्मद जी ने अपने पूर्वज बाबा आदम को देखा जो दांई ओर मुंह करके हंस रहा था तथा बांई ओर मुंह करके रो रहा था। हजरत जिबराईल से हजरत मुहम्मद जी ने पूछा कि यह व्यक्ति कौन है, जो एक बार हंस रहा है एक बार रो रहा है ? जिबराईल ने बताया यह बाबा आदम है। दांई ओर स्वर्ग में इनकी पुण्य कर्मी संतान है तथा बांई ओर नरक में बुरी संतान कष्ट उठा रही है। इसलिए जब नेक संतान को स्वर्ग में सुखी देखता है तो हंसत्ता है। जब बांई ओर बुरी संतान को महा कष्ट से नरक में पीड़ित देखता है तो बुरी तरह रोता है। इसी लोक में अन्य स्थान पर हजरत मूसा तथा हजरत ईसा जी आदि को भी देखा। वहाँ पर नबियों की मण्डली देखी। उनसे हजरत मुहम्मद जी की वार्ता हुई। इस कारण से हजरत मुहम्मद काल के जाल को न समझकर उसी स्थान को वास्तविक ठिकाना मान चुका था क्योंकि वहाँ पितर लोक में पवित्र ईसाई तथा पवित्र मुसलमान धर्म के पूज्य बाबा आदम भी थे तथा अन्य नबी भी विराजमान थे।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।


Sunday 25 October 2020

कथा महर्षि सर्वानंद जी की



परमेश्वर कबीर (कविर्देव) द्वारा महर्षि सर्वानन्द को शरण में लेना

एक सर्वानन्द नाम के महर्षि थे। उसकी पूज्य माता श्रीमति शारदा देवी पाप कर्म फल से पीडि़त थी। उसने सर्व पुजाऐं व जन्त्र-मन्त्र कष्ट निवारण के लिए वर्षों किए। शारीरिक पीड़ा निवारण के लिए वैद्यों की दवाईयाँ भी खाई, परन्तु कोई राहत नहीं मिली। उस समय के महर्षियों से उपदेश भी प्राप्त किया, परन्तु सर्व महर्षियों ने कहा कि बेटी शारदा यह आप का पाप कर्म दण्ड प्रारब्ध कर्म का है, यह क्षमा नहीं हो सकता, यह भोगना ही पड़ता है। भगवान श्री राम ने बाली का वध किया था, उस पाप कर्म का दण्ड श्री राम (विष्णु) वाली आत्मा ने श्री कृष्ण बन कर भोगा। श्री बाली वाली आत्मा शिकारी बनी। जिसने श्री कृष्ण जी के पैर में विषाक्त तीर मार कर वध किया। इस प्रकार गुरु जी व महन्तांे व संतों - ऋषियों के विचार सुनकर दुःखी मन से भक्तमति शारदा अपना प्रारब्ध पापकर्म का कष्ट रो-रो कर भोग रही थी। एक दिन किसी निजी रिश्तेदार के कहने पर काशी में (स्वयंभू) स्वयं सशरीर प्रकट हुए (कविर्देव) कविर परमेश्वर अर्थात् कबीर प्रभु से उपदेश प्राप्त किया तथा उसी दिन कष्ट मुक्त हो गई। क्योंकि पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में लिखा है कि ‘‘कविरंघारिरसि‘‘ अर्थात् (कविर्) कबीर (अंघारि) पाप का शत्रु (असि) है। फिर इसी पवित्र यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में लिखा है कि परमात्मा (एनसः एनसः) अधर्म के अधर्म अर्थात् पापों के भी पाप घोर पाप को भी समाप्त कर देता है। प्रभु कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने कहा बेटी शारदा यह सुख आप के भाग्य में नहीं था, मैंने अपने कोष से प्रदान किया है तथा पाप विना दोशक होने का प्रमाण दिया है। आप का पुत्र महर्षि सर्वानन्द जी कहा करता है कि प्रभु पाप क्षमा (विनाश)नहीं कर सकता तथा आप मेरे से उपदेश प्राप्त करके आत्म कल्याण करो। भक्तमति शारदा जी ने स्वयं आए परमेश्वर कबीर प्रभु (कविर्देव)से उपदेश लेकर अपना कल्याण करवाया। महर्षि सर्वानन्द जी को जो भक्तमति शारदा का पुत्र था, शास्त्रार्थ का बहुत चाव था। उसने अपने समकालीन सर्व विद्वानों को शास्त्रार्थ करके पराजित कर दिया। फिर सोचा कि जन - जन को कहना पड़ता है कि मैंने सर्व विद्वानों पर विजय प्राप्त कर ली है। क्यों न अपनी माता जी से अपना नाम सर्वाजीत रखवा लूं। यह सोच कर अपनी माता श्रीमति शारदा जी के पास जाकर प्रार्थना की। कहा कि माता जी मेरा नाम बदल कर सर्वाजीत रख दो। माता ने कहा कि बेटा सर्वानन्द क्या बुरा नाम है ? महर्षि सर्वानन्द जी ने कहा माता जी मैंने सर्व विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया है। इसलिए मेरा नाम सर्वाजीत रख दो। माता जी ने कहा कि बेटा एक विद्वान मेरे गुरु महाराज कविर्देव (कबीर प्रभु)को भी पराजित कर दे, फिर अपने पुत्र का नाम आते ही सर्वाजीत रख दूंगी। माता के ये वचन सुन कर श्री सर्वानन्द पहले तो हँसा, फिर कहा माता जी आप भी भोली हो। वह जुलाहा (धाणक)कबीर तो अशिक्षित है। उसको क्या पराजित करना? अभी गया, अभी आया।

महर्षि सर्वानन्द जी सर्व शास्त्रों को एक बैल पर रख कर कविर्देव (कबीर परमेश्वर)की झौंपड़ी के सामने गया। परमेश्वर कबीर जी की धर्म की बेटी कमाली पहले कूएँ पर मिली, फिर द्वार पर आकर कहा आओ महर्षि जी यही है परमपिता कबीर का घर। श्री सर्वानन्द जी ने लड़की कमाली से अपना लोटा पानी से इतना भरवाया कि यदि जरा-सा जल और डाले तो बाहर निकल जाए तथा कहा कि बेटी यह लोटा धीरे-धीरे ले जाकर कबीर को दे तथा जो उत्तर वह देवें वह मुझे बताना। लड़की कमाली द्वारा लाए लोटे में परमेश्वर कबीर (कविर्देव)जी ने एक कपड़े सीने वाली बड़ी सुई डाल दी, कुछ जल लोटे से बाहर निकल कर पृथ्वी पर गिर गया तथा कहा पुत्री यह लोटा श्री सर्वानन्द जी को लौटा दो। लोटा वापिस लेकर आई लड़की कमाली से सर्वानन्द जी ने पूछा कि क्या उत्तर दिया कबीर ने? कमाली ने प्रभु द्वारा सुई डालने का वृतांत सुनाया। तब महर्षि सर्वानन्द जी ने परम पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव)से पूछा कि आपने मेरे प्रश्न का क्या उत्तर दिया? प्रभु कबीर जी ने पूछा कि क्या प्रश्न था आपका?

श्री सर्वानन्द महर्षि जी ने कहा ‘‘मैंने सर्व विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया है। मैंने अपनी माता जी से प्रार्थना की थी कि मेरा नाम सर्वाजीत रख दो। मेरी माता जी ने आपको पराजीत करने के पश्चात् मेरा नाम परिवर्तन करने को कहा है। आपके पास लोटे को पूर्ण रूपेण जल से भर कर भेजने का तात्पर्य है कि मैं ज्ञान से ऐसे परिपूर्ण हूँ जैसे लोटा जल से। इसमें और जल नहीं समाएगा, वह बाहर ही गिरेगा अर्थात् मेरे साथ ज्ञान चर्चा करने से कोई लाभ नहीं होगा। आपका ज्ञान मेरे अन्दर नहीं समाएगा, व्यर्थ ही थूक मथोगे। इसलिए हार लिख दो, इसी में आपका हित है।

पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव) ने कहा कि आपके जल से परिपूर्ण लोटे में लोहे की सूई डालने का अभिप्राय है कि मेरा ज्ञान (तत्वज्ञान) इतना भारी (सत्य) है कि जैसे सुई लोटे के जल को बाहर निकालती हुई नीचे जाकर रूकी है। इसी प्रकार मेरा तत्वज्ञान आपके असत्य ज्ञान (लोक वेद) को निकाल कर आपके हृदय में समा जाएगा।

महर्षि सर्वानन्द जी ने कहा प्रश्न करो। एक बहु चर्चित विद्वान को जुलाहों (धाणकों) के मौहल्ले (काॅलोनी) में आया देखकर आस-पास के भोले-भाले अशिक्षित जुलाहे शास्त्रार्थ सुनने के लिए एकत्रित हो गए।

पूज्य कविर्देव ने प्रश्न किया:

कौन ब्रह्मा का पिता है, कौन विष्णु की माँ।
शंकर का दादा कौन है, सर्वानन्द दे बताए।।

उत्तर महर्षि सर्वानन्द जी का: - श्री ब्रह्मा जी रजोगुण हैं तथा श्री विष्णु जी सतगुण युक्त हैं तथा श्री शिव जी तमोगुण युक्त हैं। यह तीनों अजर-अमर अर्थात् अविनाशी हैं, सर्वेश्वर - महेश्वर - मृत्युुंजय हैं। इनके माता-पिता कोई नहीं। आप अज्ञानी हो। आपने शास्त्रों का ज्ञान नहीं है। ऐसे ही उट-पटांग प्रश्न किया है। सर्व उपस्थित श्रोताओं ने ताली बजाई तथा महर्षि सर्वानन्द जी का समर्थन किया।

पूज्य कबीर प्रभु (कविर्देव) जी ने कहा कि महर्षि जी आप श्रीमद्देवी भागवत पुराण के तीसरे स्कंद तथा श्री शिव पुराण का छटा तथा सातवां रूद्र संहिता अध्याय प्रभु को साक्षी रखकर गीता जी पर हाथ रख कर पढ़ें तथा अनुवाद सुनाऐं। महर्षि सर्वानन्द जी ने पवित्र गीता जी पर हाथ रख कर शपथ ली कि सही-सही सुनाऊँगा।

पवित्र पुराणों को प्रभु कबीर (कविर्देव) जी के कहने के पश्चात् ध्यान पूर्वक पढ़ा। श्री शिव पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, जिसके अनुवादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार) में पृष्ठ नं. 100 से 103 पर लिखा है कि सदाशिव अर्थात् काल रूपी ब्रह्म तथा प्रकृति (दुर्गा) के संयोग (पति-पत्नी व्यवहार) से सतगुण श्री विष्णु जी, रजगुण श्री ब्रह्मा जी तथा तमगुण श्री शिवजी का जन्म हुआ। यही प्रकृति (दुर्गा) जो अष्टंगी कहलाती है, त्रिदेव जननी (तीनों ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी) की माता कहलाती है।

पवित्र श्री मद्देवी पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार तथा चिमन लाल गोस्वामी) तीसरे स्कंध में पृष्ठ नं. 114 से 123 तक में स्पष्ट वर्णन है कि भगवान विष्णु जी कह रहे हैं कि यह प्रकृति (दुर्गा) हम तीनों की जननी है। मैंने इसे उस समय देखा था जब मैं छोटा-सा बच्चा था। माता की स्तुति करते हुए श्री विष्णु जी ने कहा कि हे माता मैं (विष्णु), ब्रह्मा तथा शिव तो नाशवान हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होती है।

आप प्रकृति देवी हो। भगवान शंकर ने कहा कि हे माता यदि ब्रह्मा व विष्णु आप से उत्पन्न हुए हैं तो मैं शंकर भी आप से ही उत्पन्न हुआ हूँ अर्थात् आप मेरी भी माता हो।

महर्षि सर्वानन्द जी पहले सुने सुनाए अधूरे शास्त्र विरुद्ध ज्ञान (लोकवेद)के आधार पर तीनों (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव)को अविनाशी व अजन्मा कहा करता था। पुराणों को पढ़ता भी था फिर भी अज्ञानी ही था। क्योंकि ब्रह्म (काल)पवित्र गीता जी में कहता है कि मैं सर्व प्राणियों (जो मेरे इक्कीस ब्रह्मण्डों में मेरे अधीन हैं)की बुद्धि हूँ। जब चाहूँ ज्ञान प्रदान कर दूं तथा जब चाहूँ अज्ञान भर दूं। उस समय पूर्ण परमात्मा के कहने के बाद काल (ब्रह्म)का दबाव हट गया तथा सर्वानन्द जी को स्पष्ट ज्ञान हुआ। वास्तव में ऐसा ही लिखा है। परन्तु मान हानि के भय से कहा मैंने सर्व पढ़ लिया ऐसा कहीं नहीं लिखा है। कविर्देव (कबीर परमेश्वर)से कहा तू झूठा है। तू क्या जाने शास्त्रों के विषय में। हम प्रतिदिन पढ़ते हैं। फिर क्या था, सर्वानन्द जी ने धारा प्रवाहिक संस्कृत बोलना प्रारम्भ कर दिया। बीस मिनट तक कण्ठस्थ की हुई कोई और ही वेदवाणी बोलता रहा, पुराण नहीं सुनाया।

सर्व उपस्थित भोले-भाले श्रोतागण जो उस संस्कृत को समझ भी नहीं रहे थे, प्रभावित होकर सर्वानन्द महर्षि जी के समर्थन में वाह-वाह महाज्ञानी कहने लगे। भावार्थ है कि परमेश्वर कबीर (कविर्देव)जी को पराजीत कर दिया तथा महर्षि सर्वानन्द जी को विजयी घोषित कर दिया। परम पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव)जी ने कहा कि सर्वानन्द जी आपने पवित्र गीता जी की कसम खाई थी, वह भी भूल गए। जब आप सामने लिखी शास्त्रों की सच्चाई को भी नहीं मानते हो तो मैं हारा तुम जीते।

एक जमींदार का पुत्र सातवीं कक्षा में पढ़ता था। उसने कुछ अंग्रेजी भाषा को जान लिया था। एक दिन दोनों पिता पुत्र खेतों में बैल गाड़ी लेकर जा रहे थे। सामने से एक अंग्रेज आ गया। उसने बैलगाड़ी वालों से अंग्रेजी भाषा में रास्त्ता जानना चाहा। पिता ने पुत्र से कहा बेटा यह अंग्रेज अपने आप को ज्यादा ही शिक्षित सिद्ध करना चाहता है। आप भी तो अंग्रेजी भाषा जानते हो। निकाल दे इसकी मरोड़। सुना दे अंग्रेजी बोल कर। किसान के लड़के ने अंग्रेजी भाषा में बीमारी की छुट्टी के लिए प्रार्थना-पत्र पूरी सुना दी। अंग्रेज उस नादान बच्चे की नादानी पर कि पूछ रहा हूँ रास्त्ता सुना रहा है बीमारी की छुट्टी की प्रार्थना - पत्र। अपनी कार लेकर माथे में हाथ मार कर चल पड़ा। किसान ने अपने विजेता पुत्र की कमर थप-थपाई तथा कहा वाह पुत्र मेरा तो जीवन सफल कर दिया। आज तुने अंग्रेज को अंग्रेजी भाषा में पराजीत कर दिया। तब पुत्र ने कहा पिता जी माई बैस्ट फ्रेंड (मेरा खास दोस्त नामक प्रस्त्ताव)भी याद है। वह सुना देता तो अंग्रेज कार छोड़ कर भाग जाता। इसी प्रकार कविर्देव जी पूछ कुछ रहें हैं और सर्वानन्द जी उत्तर कुछ दे रहे हैं।

परम पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव)ने कहा कि सर्वानन्द जी आप जीते मैं हारा। महर्षि सर्वानन्द जी ने कहा लिख कर दे दो, मैं कच्चा कार्य नहीं करता। परमात्मा कबीर (कविर्देव)जी ने कहा कि यह कृपा भी आप कर दो। लिख लो जो लिखना है, मैं अंगूठा लगा दूंगा। महर्षि सर्वानन्द जी ने लिख लिया कि शास्त्रार्थ में सर्वानन्द विजयी हुआ तथा कबीर साहेब पराजीत हुआ तथा कबीर परमेश्वर से अंगूठा लगवा लिया। अपनी माता जी के पास जाकर सर्वानन्द जी ने कहा कि माता जी लो आपके गुरुदेव को पराजीत करने का प्रमाण। भक्तमति शारदा जी ने कहा पुत्र पढ़ कर सुनाओ। जब सर्वानन्द जी ने पढ़ा उसमें लिखा था कि शास्त्रार्थ में सर्वानन्द पराजीत हुआ तथा कबीर परमेश्वर (कविर्देव)विजयी हुआ। सर्वानन्द जी की माता जी ने कहा पुत्र आप तो कह रहे थे कि मैं विजयी हुआ हूँ, तुम तो हार कर आये हो। महर्षि सर्वानन्द जी ने कहा माता जी मैं कई दिनों से लगातार शास्त्रार्थ में व्यस्त था, इसलिए निंद्रा वश होकर मुझ से लिखने में गलती लगी है। फिर जाता हूँ तथा सही लिख कर लाऊँगा। माता जी ने शर्त रखी थी कि विजयी होने का कोई लिखित प्रमाण देगा तो मैं मानुँगी, मौखिक नहीं। महर्षि सर्वानन्द जी दोबारा गए तथा कहा कि कबीर साहेब मेरे लिखने में कुछ त्राुटि रह गई है, दोबारा लिखना पड़ेगा। साहेब कबीर जी ने कहा कि फिर लिख लो। सर्वानन्द जी ने फिर लिख कर अंगूठा लगवा कर माता जी के पास आया तो फिर विपरीत ही पाया। कहा माता जी फिर जाता हूँ। तीसरी बार लिखकर लाया तथा मकान में प्रवेश करने से पहले पढ़ा ठीक लिखा था। सर्वानन्द जी ने उस लेख से दृष्टि नहीं हटाई तथा चलकर अपने मकान में प्रवेश करता हुआ कहने लगा कि माता जी सुनाऊँ, यह कह कर पढ़ने लगा तो उसकी आँखों के सामने अक्षर बदल गए। तीसरी बार फिर यही प्रमाण लिखा गया कि शास्त्रार्थ में सर्वानन्द पराजीत हुए तथा कबीर साहेब विजयी हुए। सर्वानन्द बोल नहीं पाया। तब माता जी ने कहा पुत्र बोलता क्यों नहीं? पढ़कर सुना क्या लिखा है। माता जानती थी कि नादान पुत्र पहाड़ से टकराने जा रहा है। माता जी ने सर्वानन्द जी से कहा कि पुत्र परमेश्वर आए हैं, जाकर चरणों में गिर कर अपनी गलती की क्षमा याचना कर ले तथा उपदेश ले कर अपना जीवन सफल कर ले। सर्वानन्द जी अपनी माता जी के चरणों में गिर कर रोने लगा तथा कहा माता जी यह तो स्वयं प्रभु आए हैं। आप मेरे साथ चलो, मुझे शर्म लगती है। सर्वानन्द जी की माता अपने पुत्र को साथ लेकर प्रभु कबीर के पास गई तथा सर्वानन्द जी को भी कबीर परमेश्वर से उपदेश दिलाया। तब उस महर्षि कहलाने वाले नादान प्राणी का पूर्ण परमात्मा के चरणों में आने से ही उद्धार हुआ। पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर (कविर्देव)ने कहा सर्वानन्द आपने अक्षर ज्ञान के आधार पर भी शास्त्रों को नहीं समझा। क्योंकि मेरी शरण में आए बिना ब्रह्म (काल)किसी की बुद्धि को पूर्ण विकसित नहीं होने देता। अब फिर पढ़ो इन्हीं पवित्र वेदों व पवित्र गीता जी तथा पवित्र पुराणों को। अब आप ब्राह्मण हो गए हो। ‘‘ब्राह्मण सोई ब्रह्म पहचाने‘‘ विद्वान वही है जो पूर्ण परमात्मा को पहचान ले। फिर अपना कल्याण करवाए।

विशेष:- आज से 550 वर्ष पूर्व यही पवित्र वेदों, पवित्र गीता जी व पवित्र पुराणों में लिखा ज्ञान कबीर परमेश्वर (कविर्देव) जी ने अपनी साधारण वाणी में भी दिया था। जो उस समय से तथा आज तक के महर्षियों ने व्याकरण त्रुटि युक्त भाषा कह कर पढ़ना भी आवश्यक नहीं समझा तथा कहा कि कबीर तो अज्ञानी है, इसे अक्षर ज्ञान तो है ही नहीं। यह क्या जाने संस्कृत भाषा में लिखे शास्त्रों में छूपे गूढ़ रहस्य को। हम विद्वान हैं जो हम कहते हैं वह सब शास्त्रों में लिखा है तथा श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी व श्री शिव जी के कोई माता-पिता नहीं हैं। ये तो अजन्मा-अजर-अमर-अविनाशी तथा सर्वेश्वर, महेश्वर, मृत्युंजय हैं। सर्व सृष्टी रचन हार हैं, तीनों गुण युक्त हैं। आदि आदि व्याख्या ठोक कर अभी तक कहते रहे। आज वे ही पवित्र शास्त्रा अपने पास हैं। जिनमें तीनों प्रभुओं (श्री ब्रह्मा जी रजगुण, श्री विष्णु जी सतगुण, श्री शिव जी तमगुण) के माता-पिता का स्पष्ट विवरण है। उस समय अपने पूर्वज अशिक्षित थे तथा शिक्षित वर्ग को शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान नहीं था। फिर भी कबीर परमेश्वर (कविर्देव) के द्वारा बताए सत्यज्ञान को जान बूझ कर झुठला दिया कि कबीर झूठ कह रहा है किसी शास्त्रा में नहीं लिखा है कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी व श्री शिव जी के कोई माता-पिता हैं। जब कि पवित्र पुराण साक्षी हैं कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी का जन्म-मृत्यु होती है। ये अविनाशी नहीं हैं तथा इन तीनों देवताओं की माता प्रकृति (दुर्गा) है तथा पिता ज्योति निरंजन काल रूपी ब्रह्म है।
आज सर्व मानव समाज बहन-भाई, बालक व जवान तथा बुजुर्ग, बेटे तथा बेटी शिक्षित हैं। आज कोई यह नहीं बहका सकता कि शास्त्रों में ऐसा नहीं लिखा जैसा कबीर परमेश्वर (कविर्देव) साहेब जी की अमृत वाणी में लिखा है।

अमृतवाणी पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव) की:-

धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रियदेवन की उत्पति भाई।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।

माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछेसे माया उपजाई।।

धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।

तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।

अलख निरंजन सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।

ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव करत हैं सेवा।।

तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।

गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरें पार।।

उपरोक्त अमृतवाणी में परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने निजी सेवक श्री धर्मदास साहेब जी को कह रहे हैं कि धर्मदास यह सर्व संसार तत्वज्ञान के अभाव से विचलित है। किसी को पूर्ण मोक्ष मार्ग तथा पूर्ण सृष्टी रचना का ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं आपको मेरे द्वारा रची सृष्टी की कथा सुनाता हूँ। बुद्धिमान व्यक्ति तो तुरंत समझ जायेंगे। परन्तु जो सर्व प्रमाणों को देखकर भी नहीं मानंगे तो वे नादान प्राणी काल प्रभाव से प्रभावित हैं, वे भक्ति योग्य नहीं। अब मैं बताता हूँ तीनों भगवानों (ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी) की उत्पत्ति कैसे हुई? इनकी माता जी तो अष्टंगी (दुर्गा) है तथा पिता ज्योति निरंजन (ब्रह्म, काल)है। पहले ब्रह्म की उत्पत्ति अण्डे से हुई। फिर दुर्गा की उत्पत्ति हुई। दुर्गा के रूप पर आसक्त होकर काल (ब्रह्म) ने गलती (छेड़-छाड़) की, तब दुर्गा (प्रकृति) ने इसके पेट में शरण ली। मैं वहाँ गया जहाँ ज्योति निरंजन काल था। तब भवानी को ब्रह्म के उदर से निकाल कर इक्कीस ब्रह्मण्ड समेत 16 संख कोस की दूरी पर भेज दिया। ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी (दुर्गा)के साथ भोग-विलास किया। इन दोनों के संयोग से तीनों गुणों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की उत्पत्ति हुई। इन्हीं तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की ही साधना करके सर्व प्राणी काल जाल में फंसे हैं। जब तक वास्तविक मंत्र नहीं मिलेगा, पूर्ण मोक्ष कैसे होगा ?

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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30 से 8.30 बजे।

Tuesday 15 September 2020

तंम्बाकू सेवन करना महापाप है।

                 तंम्बाकू उत्पत्ति की कथा

एक ऋषि तथा एक राजा साढ़ू थे। एक दिन राजा की रानी ने अपनी बहनऋषि की पत्नी के पास संदेश भेजा कि पूरा परिवार हमारे घर भोजन के लिएआऐं। मैं आपसे मिलना भी चाहती हूँ, बहुत याद आ रही है। अपनी बहन का संदेशऋषि की पत्नी ने अपने पति से साझा किया तो ऋषि जी ने कहा कि साढ़ू सेदोस्ती अच्छी नहीं होती। तेरी बहन वैभव का जीवन जी रही है। राजा को धन तथाराज्य की शक्ति का अहंकार होता है। वे अपनी बेइज्जती करने को बुला रहे हैंक्योंकि फिर हमें भी कहना पड़ेगा कि आप भी हमारे घर भोजन के लिए आना।हम उन जैसी भोजन-व्यवस्था जंगल में नहीं कर पाऐंगे। यह सब साढ़ू जी का षड़यंत्र है। आपके सामने अपने को महान तथा मुझे गरीब सिद्ध करना चाहता है।आप यह विचार त्याग दें। हमारे न जाने में हित है। परंतु ऋषि की पत्नी नहींमानी। ऋषि तथा पत्नी व परिवार राजा का मेहमान बनकर चला गया। रानी नेबहुमूल्य आभूषण पहन रखे थे। बहुमूल्य वस्त्र पहने हुए थे। ऋषि की पत्नी के गलेमें राम नाम जपने वाली माला तथा सामान्य वस्त्र साध्वी वाले जिसे देखकर दरबारके कर्मचारी-अधिकारी मुस्कुरा रहे थे कि यह है राजा का साढ़ू। कहाँ राजा भोज,कहाँ गंगू तेली। यह चर्चा ऋषि परिवार सुन रहा था। भोजन करने के पश्चात् ऋषिकी पत्नी ने भी कहा कि आप हमारे यहाँ भी इस दिन भोजन करने आईएगा।निश्चित दिन को राजा हजारों सैनिक लेकर सपरिवार साढ़ू ऋषि जी कीकुटीया पर पहुँच गया। ऋषि जी ने स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र से निवेदन करके एककामधेनु (सर्व कामना यानि इच्छा पूर्ति करने वाली गाय, जिसकी उपस्थिति मेंखाने की किसी पदार्थ की कामना करने से मिल जाता है, यह पौराणिक मान्यताहै।) माँगी। उसके बदले में ऋषि जी ने अपने पुण्य कर्म संकल्प किए थे। इन्द्र देवने एक कामधेनु तथा एक लम्बा-चौड़ा तम्बू (ज्मदज) भेजा और कुछ सेवादार भीभेजे। टैण्ट के अंदर गाय को छोड़ दिया। ऋषि परिवार ने गऊ माता की आरतीउतारी। अपनी मनोकामना बताई। उसी समय छप्पन (56) प्रकार के भोग चांदीकी परातों, टोकनियों, कड़ाहों में स्वर्ग से आए और टैण्ट में रखे जाने लगे। लड्डू,जलेबी, कचौरी, दही बड़े, हलवा, खीर, दाल, रोटी (मांडे) तथा पूरी, बुंदी, बर्फी,रसगुल्ले आदि-आदि से आधा एकड़ का टैण्ट भर गया। ऋषि जी ने राजा से कहाकि भोजन जीमो। राजा ने बेइज्जती करने के लिए कहा कि मेरी सेना भी साथमें भोजन खाएगी। घोड़ों को भी चारा खिलाना है। ऋषि जी ने कहा कि प्रभु कृपासे सब व्यवस्था हो जाएगी। पहले आप तथा सेना भोजन करें। राजा उठकर भोजनकरने वाले स्थान पर गया। वहाँ भी सुंदर कपड़े बिछे थे। राजा देखकरआश्चर्यचकित रह गया। फिर चांदी की थालियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के भोजनला-लाकर सेवादार रखने लगे। अन्नदेव की स्तुति करके ऋषि जी ने भोजन करनेकी प्रार्थना की। राजा ने देखा कि इसके सामने तो मेरा भोजन-भण्डारा कुछ नहीं था।



 मैंने तो केवल ऋषि-परिवार को ही भोजन कराया था। वह भी तीन-चारपदार्थ बनाए थे। राजा शर्म के मारे पानी-पानी हो गया। खाना खाते वक्त बहुतपरेशान था। ईर्ष्या की आग धधकने लगी, बेइज्जती मान ली। सर्व सैनिक खाऐंऔर सराहें। राजा का रक्त जल रहा था। अपने टैण्ट में जाकर ऋषि को बुलायाऔर पूछा कि यह भोजन जंगल में कैसे बनाया? न कोई कड़ाही चल रही है, नकोई चुल्हा जल रहा है। ऋषि जी ने बताया कि मैंने अपने पुण्य तथा भक्ति केबदले स्वर्ग से एक गाय उधारी माँगी है। उस गाय में विशेषता है कि हम जितनाभोजन चाहें, तुरंत उपलब्ध करा देती है। राजा ने कहा कि मेरे सामने उपलब्धकराओ तो मुझे विश्वास हो। ऋषि तथा राजा टैण्ट के द्वार पर खड़े हो गए। अन्दरकेवल गाय खड़ी थी। द्वार की ओर मुख था। टैण्ट खाली था क्योंकि सबने भोजनखा लिया था। शेष बचा सामान तथा सेवक ले जा चुके थे। गाय को ऋषि जी कीअनुमति का इंतजार था। राजा ने कहा कि ऋषि जी! यह गाय मुझे दे दो। मेरेपास बहुत बड़ी सेना है। उसका भोजन इससे बनवा लूंगा। तेरे किस काम की है?ऋषि ने कहा, राजन! मैंने यह गऊ माता उधारी ले रखी है। स्वर्ग से मँगवाई है।मैं इसका मालिक नहीं हूँ। मैं आपको नहीं दे सकता। राजा ने दूर खड़े सैनिकोंसे कहा कि इस गाय को ले चलो। ऋषि ने देखा कि साढ़ू की नीयत में खोट आगया है। उसी समय ऋषि जी ने गऊ माता से कहा कि गऊ माता! आप अपने लोकअपने धनी स्वर्ग राज इन्द्र के पास शीघ्र लौट जाऐं। उसी समय कामधेनु टैण्ट को फाड़कर सीधी ऊपर को उड़ चली। राजा ने गाय को गिराने के लिए गाय के पैरमें तीर मारा। गाय के पैर से खून बहने लगा और पृथ्वी पर गिरने लगा। गायघायल अवस्था में स्वर्ग में चली गई। जहाँ-जहाँ गाय का रक्त गिरा था, वहीं-वहींतम्बाकू उग गया। फिर बीज बनकर अनेकों पौधे बनने लगे। संत गरीबदास जीने कहा है कि :-तमा $ खू = तमाखू।खू नाम खून का तमा नाम गाय। सौ बार सौगंध इसे न पीयें-खाय।।भावार्थ :- भावार्थ है कि फारसी भाषा में ‘‘तमा’’ गाय को कहते हैं। खू =खून यानि रक्त को कहते हैं। यह तमाखू गाय के रक्त से उपजा है। इसके ऊपरगाय के बाल जैसे रूंग (रोम) जैसे होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंद हैकि इस तमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू का सेवन गाय काखून पीने के समान पाप लगता है। मुसलमान धर्म के व्यक्तियों को हिन्दुओं से पताचला कि तमाखू की उत्पत्ति ऐसे हुई है। उन्होंने गाय का खून समझकर खाना तथाहुक्के में पीना शुरू कर दिया क्योंकि गलत ज्ञान के आधार से मुसलमान भाई गायके माँस को खाना धर्म का प्रसाद मानते हैं। वास्तव में हजरत मुहम्मद जो मुसलमानधर्म के प्रवर्तक माने जाते हैं, उन्होंने कभी-भी जीव का माँस नहीं खाया था।

गरीब, नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।एक लाख अस्सी कू सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।

गरीब, अर्स कुर्श पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।वै पैगंबर पाक पुरूष थे, साहेब के अबदाली।।

भावार्थ :- नबी मुहम्मद तो आदरणीय महापुरूष थे जो परमात्मा केसंदेश वाहक थे। ऐसे-ऐसे एक लाख अस्सी हजार पैगंबर मुसलमान धर्म में (बाबाआदम से लेकर मुहम्मद तक) माने गए हैं। वे सब पाक (पवित्र) व्यक्ति थे जिन्होंनेकभी किसी पशु-पक्षी पर करद यानि तलवार नहीं चलाई। वे तो परमात्मा से डरनेवाले थे। परमात्मा के कृपा पात्र थे। बाद में कुछ मुल्ला-काजियों ने माँस खाने कीपरम्परा शुरू कर दी जो आगे चलकर धार्मिकता का अपवाद (बिगड़ा रूप) बनगई। उसी आधार से सर्व मुसलमान भाई पाप को खा रहे हैं। फिर भ्रमितमुसलमानों ने तम्बाकू का सेवन (खाना, हुक्का बनाकर पीना) प्रारम्भ कर दिया।भोले हिन्दु धर्म के व्यक्तियों ने उनकी चाल नहीं समझी। उनके कहने से तमाखूका सेवन जोर-शोर से शुरू कर दिया। वर्तमान में तो यह पंचायत का प्याला बनगया है जो भारी भूल है। अज्ञानता का पर्दा है। इसे भूलकर भी सेवन नहीं करनाचाहिए। संत गरीबदास जी ने फिर बताया है कि हे भक्त हरलाल जी! और सुनतमाखू सेवन के पाप :-गरीब, परद्वारा स्त्रा का खोलै। सत्तर जन्म अंधा हो डोलै।।1मदिरा पीवै कड़वा पानी। सत्तर जन्म श्वान के जानी।।2मांस आहारी मानवा, प्रत्यक्ष राक्षस जान।मुख देखो न तास का, वो फिरै चौरासी खान।।3सुरापान मद्य मांसाहारी। गमन करै भोगै पर नारी।।4सत्तर जन्म कटत है शीशं। साक्षी साहेब है जगदीशं।।5सौ नारी जारी करै, सुरापान सौ बार।एक चिलम हुक्का भरै, डूबै काली धार।।6हुक्का हरदम पीवते, लाल मिलांवे धूर।इसमें संशय है नहीं, जन्म पीछले सूअर।।7वांणियो का भावार्थ :-वाणी सँख्या 1 में कहा है कि जो व्यक्ति अन्य स्त्री से अवैध सम्बन्ध बनाताहै, उस पाप के कारण वह सत्तर जन्म अंधे के प्राप्त करता है। अंधा गधा-गधी, अंधाबैल, अंधा मनुष्य या अंधी स्त्री के लगातार सत्तर जन्मों में कष्ट भोगता है।वाणी सँख्या 2 :- कड़वी शराब रूपी पानी जो पीता है, वह उस पाप केकारण सत्तर जन्म तक कुत्ते के जन्म प्राप्त करके कष्ट उठाता है। गंदी नालियोंका पानी पीता है। रोटी ने मिलने पर गुह (टट्टी) खाता है।वाणी सँख्या 3 :- जो व्यक्ति माँस खाते हैं, वे तो स्पष्ट राक्षस हैं। उनकातो मुख भी नहीं देखना चाहिए यानि उनके साथ रहने से अन्य भी माँस खाने काआदी हो सकता है। इसलिए उनसे बचें। वह तो चौरासी लाख योनियों में भटकेगा।वाणी सँख्या 4.5 :- (सुरा) शराब (पान) पीने वाले तथा पर स्त्री को भोगने वाले,

माँस खाने वालों को अन्य पाप कर्म भी भोगना होता है। उनके सत्तर जन्मतक मानव या बकरा-बकरी, भैंस या मुर्गे आदि के जीवनों में सिर कटते हैं। इसबात को मैं परमात्मा को साक्षी रखकर कह रहा हूँ, सत्य मानना।वाणी सँख्या 6 :- एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने से भरने वालेको जो पाप लगता है, वह सुनो। एक बार परस्त्री गमन करने वाला, एक बारशराब पीने वाला, एक बार माँस खाने वाला पाप के कारण उपरोक्त कष्ट भोगताहै। सौ स्त्रियों से भोग करे और सौ बार शराब पीऐ, उसे जो पाप लगता है, वहपाप एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने वाले को लगता है। विचार करोतम्बाकू सेवन (हुक्के में, बीड़ी-सिगरेट में पीने वाले, खाने वाले) करने वाले कोकितना पाप लगेगा? इसलिए उपरोक्त सर्व पदार्थों का सेवन कभी न करो।वाणी सँख्या 7 :- समाज के व्यक्तियों को देखकर कुछ व्यक्ति हुक्का या अन्यनशीली वस्तुऐं सेवन करने लग जाते हैं। यदि सत्संग सुनकर बुराई त्याग देते हैंतो वे जीव पिछले जन्म में भी मनुष्य थे। उनके अंदर नशे की गहरी लत नहींबनती। परंतु जो बार-बार सत्संग सुनकर भी तम्बाकू आदि नशे का त्याग नहीं करपाते, वे पिछले जन्म में सूअर के शरीर में थे। सूअर के शरीर में बदबू  सूंघने से तम्बाकू की बदबू पीने-सूंघने की गहरी आदत होती है। वे शीघ्र हुक्का वअन्य नशा नहीं त्याग पाते। वे अपने अनमोल मानव शरीर रूपी लाल को मिट्टीमें मिला रहे हैं। उनको अधिक सत्संग सुनने की राय दी जाती है। निराश न हों।सच्चे मन से परमात्मा कबीर जी से नशा छुड़वाने की पुकार प्रार्थना करने से सबनशा छूट जाता है।‘‘

मानव शरीर को ऑक्सीजनकी आवश्यकता है। उसके स्थान पर तम्बाकू का धुँआ (कार्बनडाईऑक्साइड) प्रवेशकरता है तो उनको खाँसी रोग हो जाता है। पित्त तथा बाई (बाय) का रोग होजाता है। हुक्का पीने वाले का बैठने का स्टाईल बताया है कि हुक्का पीने वालेएक-दो तो हुक्के के निकट बैठेंगे। एक कुछ दूरी पर बैठेगा और कहेगा किसरकाइये थोड़ा-सा। दूसरे उसकी ओर हुक्का देंगे। फिर नै (नली जिससे धुँआखींचते हैं) गुरड़-गुरड़ बाजैगी। आप तो हुक्का पीकर डूबे हैं और छोटे बच्चे भीउनको देखकर वही पाप करके नरक की काली धार में डूबेंगे, जो तम्बाकू पीते हैं,उनके तो भाग फूटे ही हैं। अन्य को तम्बाकू पीने के लिए उत्प्रेरक बनकर डुबोतेहैं। उपरोक्त बुराई करने वाले तो अपना जीवन ऐसे व्यर्थ कर जाते हैं जैसे भड़भूजाबालु रेत को आग से खूब गर्म करके चने भूनता है। फिर सारा कार्य करके रेत कोगली में फैंक देता है। इसी प्रकार जो मानव उपरोक्त बुराई करता है, वह भी अपनेमानव जीवन को इसी प्रकार व्यर्थ करके चला जाता है। उस जीव को नरक तथाअन्य प्राणियों के जीवन रूपी गली में फैंक दिया जाता है। जो व्यक्ति उपरोक्त पापकरते हैं, वे भगवान के दरबार में क्या जवाब देंगे यानि बोलने योग्य नहीं रहेंगे।फिर कहा है कि गाय अपनी माता के तुल्य है जिसका सब धर्म-जाति वालेदूध-घी पीते-खाते हैं। इसलिए गाय को मत मारो। विषय तम्बाकू का चल रहा हैः-भक्ति मार्ग में तम्बाकू सबसे अधिक बाधा करता है। जैसे अपने दोनों नाकोंके मध्य में एक तीसरा रास्ता है जो छोटी सूई के नाके जितना है। जो तम्बाकू काधुँआ नाकों से छोड़ते हैं, वह उस रास्ते को बंद कर देता है। वही रास्ता ऊपर कोत्रिकुटी की ओर जाता है जहाँ परमात्मा का निवास है। जिस रास्ते से हमनेपरमात्मा से मिलना है, उसी को तम्बाकू का धुँआ बंद कर देता है। हुक्का पीनेवालों को देखा है, प्रतिदिन हुक्के की नै (नली) में लोहे की गज (एक पतला-सासरिया) घुमाते हैं जिनमें से धुँए का जमा हुआ मैल निकलता है। वह नै रूक जातीहै। मानव जीवन परमात्मा प्राप्ति के लिए ही मिला है। परमात्मा को प्राप्त करनेवाले मार्ग को तम्बाकू का धुँआ बंद कर देता है। इसलिए भी तम्बाकू भक्त के लिएमहान शत्र है। वैसे भी हुक्का पीने वाले भी मानते हैं कि तम्बाकू अच्छी चीज नहींहै। जब कोई छोटा बच्चा अपने दादा-ताऊ, पिता-चाचा को हुक्का पीते देखता हैतो वह भी नकल करता है। हुक्के को पीने लगता है तो बड़े व्यक्ति जो स्वयं हुक्कापीते हैं, उस बच्चे को धमकाते हैं कि खबरदार! अगर हुक्का पीया तो। यह अच्छानहीं है। यदि आप जी इसे अच्छा पदार्थ मानते हैं तो बच्चों को भी पीने दो।

आप मना करते हैं तो मानते हो कि यह अच्छा नहीं है, हानिकारक है। सर्दियों में एकमकान में छोटे बच्चे भी सो रहे होते हैं। उसी में हुक्का पीने वाला हुक्का पी रहाहोता है। वह स्वयं तो पाप कर ही रहा है, अपने परिवार को धुँआ पिलाकर पापका भागी बना रहा है। छोटे बेटा-बेटी को दादा-पिताजी अपने हिस्से के दूध सेपिलाने की कोशिश करता है कि ले, थोड़ा ओर पी ले, देख तेरी चोटी बढ़ रहीहै, और पी जा। इस प्रकार उसे दूध का गिलास पिलाकर दम लेता है क्योंकि दूधबच्चे के लिए लाभदायक है। हुक्का-बीड़ी पीने से मना करता है तो दिल तो कहता है कि तम्बाकू पीना बुरा है, परंतु समाज में यह बुराई आम हो चुकी है। इसलिए पाप नहीं लगता। जैसे कई कबीले माँस खाते हैं, उनके बच्चों के लिए वह पाप आमबात है। इसी प्रकार तम्बाकू पीना भी महापाप है, परंतु परम्परा पड़ गई है, पाप नहींलगता। इसे त्याग देना चाहिए। भक्त हरलाल जी ने उसी दिन हुक्का तोड़ दिया।चिलम फोड़ दी। सर्व परिवार को वे सब बातें सुनाई। नाम-दीक्षा दिलाई। कई पीढ़ीतक बेरी के उन परिवारों में हुक्का नहीं था।

अधिक जानकारी के लिए साधना टीवी देखे शाम 7:30 से 8:30 तक

Wednesday 5 August 2020

रोग मुक्ति, असाध्य रोग निवारण

   रोग मुक्ति।

कई बार देखा गया है कि कोई अत्यंत बीमार हो गया है लेकिन सभी चिकित्सीय परिक्षण किसी बीमारी का कोई लक्षण नहीं बताते तो हो सकता हो कि जातक प्रेत बाधा से पीड़ित हो।

वेदों में बताए गए मंत्रों और यज्ञों में असाध्य रोग दूर करने की शक्ति भी होती है। अगर कोई रोग अनुसार उचित मंत्रों का जाप-पाठ और यज्ञ करें तो मृत्यु भी टल सकती है। अगर हमारी भक्ति साधना सही है। तो

प्राणी की जीवन की यात्रा जन्म से प्रारम्भ हो जाती है। उसकी मंजिलनिर्धारित होती है। यहाँ से मानव जीवन की यात्रा के मार्ग परविस्तारपूर्वक वर्णन है। मानव (स्त्री/पुरूष) की मंजिल मोक्ष प्राप्ति है। उसके मार्गमें पाप तथा पुण्य कर्मों के गढ्ढ़े तथा काँटे हैं। आप जी को आश्चर्य होगा कि पापकर्म तो बाधक होते हैं, पुण्य तो सुखदाई होते हैं। इनको गढ्ढे़ कहना उचित नहीं।इसका संक्षिप्त वर्णन :-पाप रूपी गढ्ढ़े व काँटे :- मानव जीवन परमात्मा की शास्त्राविधि अनुसारसाधना करके मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्राप्त होता है। पाप कर्म का कष्ट भक्तिमें बाधा करता है। उदाहरण के लिए पाप कर्म के कारण शरीर में रोग हो जाना,पशु धन में तथा फसल में हानि हो जाना। ऋण की वृद्धि करता है। ऋणी व्यक्तिदिन-रात चिंतित रहता है। वह भक्ति नहीं कर पाता। पूर्ण सतगुरू से दीक्षा लेनेके पश्चात् परमेश्वर उस भक्त के उपरोक्त कष्ट समाप्त कर देता है। तब भक्तअपनी भक्ति अधिक श्रद्धा से करने लगता है। परमात्मा पर विश्वास बढ़ता है, दृढ़होता है। परंतु भक्त को परमात्मा के प्रति समर्पित होना चाहिए। जैसे पतिव्रता स्त्रीअपने पति के अतिरिक्त किसी अन्य पुरूष को कामपूर्ति (Sexual Satisfaction) के लिए स्वपन में भी नहीं चाहती चाहे कोई कितना ही सुंदर हो। उसका पति अपनीपत्नी को हरसंभव कोशिश करके सर्व सुविधाऐं उपलब्ध करवाता है। विशेष प्रेमकरता है। इसी प्रकार दीक्षा लेने के पश्चात् आत्मा का संयोग परमात्मा से होताहै। गुरू जी आत्मा का विवाह परमात्मा से करवा देता है। यदि वह मानवशरीरधारी आत्मा अपने पति परमेश्वर के प्रति पतिव्रता की तरह समर्पित रहती हैयानि पूर्ण परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी देवी-देवता से मनोकामना की पूर्तिनहीं चाहती है तो उसका पति परमेश्वर उसके जीवन मार्ग में बाधक सब पाप कर्मोंके काँटों को बुहार देता है। उस आत्मा की जीने की राह सुगम व बाधारहित होजाती है। उसको मंजिल सरलता से मिल जाती है।
इसलिए हम शास्त्र अनुकूल साधना हमारे सभी धर्म ग्रंथों से बताई गई है उसी के मार्ग पर चलें और परमात्मा की भक्ति करें तो कितनी भी बुरी बीमारी हो किसी भी प्रकार का रोग हो परमात्मा सब ठीक है कर सकता है

आज पूरे भारतवर्ष में हजारों धर्मगुरु है लेकिन किसी के पास यथार्थ भक्ति मार्ग नहीं है और उनकी दी गई भक्ति से कोई पाप कोई भी बीमारी नहीं कर सकती जो हमारे धर्म ग्रंथों में प्रमाणित है हमारे धर्म ग्रंथों में वेदों में ऐसा प्रमाण है कि साधक परमात्मा की सही भक्ति करता है शास्त्र अनुकूल तो उनके पाप कर्म कट जाते हैं जो किसी भी धर्म गुरु के पास वह भक्ति नहीं है
संत रामपाल जी महाराज पूरे भारतवर्ष में पूर्ण गुरु है जो यथार्थ भक्ति मार्ग देते हैं उस परमेश्वर की भक्ति देते हैं जो कैंसर हो चाहे लाईलाज बीमारी हो किसी भी प्रकार की बीमारी हो उनकी दी गई भक्ति से सब बीमारी मिट जाती है और साधक सुखी जीवन जीता है

Wednesday 15 July 2020

बकरा ईद का कितना सबाब मिलता है।

                           बकरा ईद


इस्लाम मज़हब में दो ईदें त्योहार के रूप में मनाई जाती हैं। ईदुलब फ़ित्र जिसे मीठी ईद भी कहा जाता है और दूसरी ईद है बक़र ईद। इस ईद को आम आदमी बकरा ईद भी कहता है। शायद इसलिए कि इस ईद पर बकरे की क़ुर्बानी की जाती है। वैसे इस ईद को ईदुज़्ज़ोहा औए ईदे-अज़हा भी कहा जाता है। इस ईद का गहरा संबंध क़ुर्बानी से है।

पैग़म्बर हज़रत इब्राहीम को ख़ुदा की तरफ़ से हुक्म हुआ कि क़ुर्बानी करो, अपनी सबसे ज़्यादा प्यारी चीज़ की क़ुर्बानी करो। हज़रत इब्राहीम के लिए सबसे प्यारी चीज़ थी उनका इकलौता बेटा इस्माईल। ‍लिहाज़ा हज़रत इब्राहीम अपने बेटे को क़ुर्बानी करने के लिए तैयार हो गए। इधर बेटा इस्माईल भी ख़ुशी-ख़ुशी अल्लाह की राह में क़ुर्बान होने को तैयार हो गया।

मुख़्तसर ये कि ऐन क़ुर्बानी के वक़्त हज़रत इस्माईल की जगह एक दुम्बा क़ुर्बान हो गया। ख़ुदा ने हज़रत इस्माईल को बचा लिया और हज़रत इब्राहीम की क़ुर्बानी क़ुबूल कर ली। तभी से हर साल उसी दिन उस क़ुर्बानी की याद में बक़र ईद मनाई जाती है और क़ुर्बानी की जाती है।

इस दिन आमतौर से बकरे की क़ुर्बानी की जाती है। बकरा तन्दुरुस्त और बग़ैर किसी ऐब का होना चाहिए। यानी उसके बदन के सारे हिस्से वैसे ही होना चाहिए जैसे ख़ुदा ने बनाए हैं। सींग, दुम, पाँव, आँख, कान वग़ैरा सब ठीक हों, पूरे हों और जानवर में किसी तरह की बीमारी भी न हो। क़ुर्बानी के जानवर की उम्र कम से कम एक साल हो।

अपना मज़हबी फ़रीज़ा समझकर क़ुर्बानी करना चाहिए। जो ज़रूरी बातें ऊपर बताई गई हैं उनका ख़्याल रखना चाहिए। लेकिन आजकल देखने में आ रहा है कि इसमें झूठी शान और दिखावा भी शामिल हो गया है। 15-20 हज़ार से लेकर लाख, दो लाख का बकरा ख़रीदा जाता है, उसे समाज में घुमाया जाता है ता‍कि लोग उसे देखें और उसके मालिक की तारीफ़ करें। इस दिखावे का क़ुर्बानी से कोई तआल्लुक़ नहीं है। क़ुर्बानी से जो सवाब एक मामूली बकरे की क़ुर्बानी से मिलता है वही किसी महँगे बकरे की क़ुर्बानी से मिलता है। अगर आप बहुत पैसे वाले हैं तो ऐसे काम करें जिससे ग़रीबों को ज़्यादा फ़ायदा हो।

अल्लाह का नाम लेकर जानवर को क़ुर्बान किया जाता है। इसी क़ुर्बानी और गोश्त को हलाल कहा जाता है। इस गोश्त के तीन बराबर हिस्से किए जाते हैं, एक हिस्सा ख़ुद के लिए, एक दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा ग़रीबों और मिस्कीनों के लिए। मीठी ईद पर सद्क़ा और ज़कात दी जाती है तो इस ईद पर क़ुर्बानी के गोश्त का एक हिस्सा ग़रीबों में तक़सीम किया जाता है। हर त्योहार पर ग़रीबों का ख़्याल ज़रूर रखा जाता है ताक‍ि उनमें कमतरी का एहसास पैदा न हो।

इस तरह यह ईद जहाँ सबको साथ लेकर चलने का पैग़ाम देती है वहीं यह भी बताती है के इंसान को ख़ुदा का कहा मानने में, सच्चाई की राह में अपना सब कुछ क़ुर्बान करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। आज जो हमारे मुल्क के हालात हैं उनको देखते हुए किसी ने क्या ख़ूब कहा है,

इसी का प्रमाण पवित्र बाईबल में तथा पवित्र कुरान शरीफ में भी है।कुरान शरीफ में पवित्र बाईबल का भी ज्ञान है, इसलिए इन दोनों पवित्र सद्ग्रन्थोंने मिल-जुल कर प्रमाणित किया है कि कौन तथा कैसा है सृष्टी रचनहार तथा उसकावास्तविक नाम क्या है।पवित्र बाईबल (उत्पत्ति ग्रन्थ पृष्ठ नं. 2 पर, अ. 1ः20 - 2ः5 पर)छटवां दिन :- प्राणी और मनुष्य :अन्य प्राणियों की रचना करके 26. फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूपके अनुसार अपनी समानता में बनाएं, जो सर्व प्राणियों को काबू रखेगा। 27. तब परमेश्वर नेमनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर नेउसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टी की।29. प्रभु ने मनुष्यों के खाने के लिए जितने बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीजवाले फल होते हैं वे भोजन के लिए प्रदान किए हैं, (माँस खाना नहीं कहा है।)सातवां दिन :- विश्राम का दिन :परमेश्वर ने छः दिन में सर्व सृष्टी की उत्पत्ति की तथा सातवें दिन विश्राम किया।पवित्र बाईबल ने सिद्ध कर दिया कि परमात्मा मानव सदृश शरीर में है, जिसनेछः दिन में सर्व सृष्टी की रचना की तथा फिर विश्राम किया।पवित्र कुरान शरीफ (सुरत फुर्कानि 25, आयत नं. 52, 58, 59)आयत 52 :- फला तुतिअल् - काफिरन् व जहिद्हुम बिही जिहादन् कबीरा(कबीरन्)।।52।इसका भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी का खुदा (प्रभु) कह रहा है कि हे पैगम्बर !आप काफिरों (जो एक प्रभु की भक्ति त्याग कर अन्य देवी-देवताओं तथा मूर्ति आदि कीपूजा करते हैं) उस का कहा मत मानना, क्योंकि वे लोग कबीर को पूर्ण परमात्मा नहीं मानते।आप मेरे द्वारा दिए इस कुरान के ज्ञान के आधार पर अटल रहना कि कबीर ही पूर्ण प्रभु हैतथा कबीर अल्लाह के लिए संघर्ष करना (लड़ना नहीं) अर्थात् अडिग रहना।

आयत 58 :- व तवक्कल् अलल् - हरिल्लजी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिही व कफाबिही बिजुनूबि िअबादिही खबीरा (कबीरा)।।58।

 भावार्थ कि हजरत मुहम्मद जी जिसे अपना प्रभु मानते हैं वह अल्लाह (प्रभु)किसी और पूर्ण प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है कि ऐ पैगम्बर उस कबीर परमात्मा परविश्वास रख जो तुझे जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिला था। वह कभी मरने वालानहीं है अर्थात् वास्तव में अविनाशी है। तारीफ के साथ उसकी पाकी (पवित्र महिमा)का गुणगान किए जा, वह कबीर अल्लाह (कविर्देव) पूजा के योग्य है तथा अपने उपासकों का सर्व पापों का विनाश करने वाला है।

आयत 59 :- अल्ल्जी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन्सुम्मस्तवा अलल्अर्शि अर्रह्मानु फस्अल् बिही खबीरन्(कबीरन्)।।59
।।
भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कहरहा है कि वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भीविद्यमान है सर्व सृष्टी की रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपनेसत्यलोक में सिंहासन पर विराजमान हो (बैठ) गया। उसके विषय में जानकारी किसी(बाखबर) तत्वदर्शी संत से पूछोउस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति कैसे होगी तथा वास्तविक ज्ञान तो किसी तत्वदर्शीसंत (बाखबर) से पूछो, मैं नहीं जानता।उपरोक्त दोनों पवित्र धर्मों (ईसाई तथा मुसलमान) के पवित्र शास्त्रों ने भीमिल-जुल कर प्रमाणित कर दिया कि सर्व सृष्टी रचनहार, सर्व पाप विनाशक, सर्वशक्तिमान, अविनाशी परमात्मा मानव सदृश शरीर में आकार में है तथा सत्यलोक मेंरहता है। उसका नाम कबीर है, उसी को अल्लाहु अकबिरू भी कहते हैं।आदरणीय धर्मदास जी ने पूज्य कबीर प्रभु से पूछा कि हे सर्वशक्तिमान ! आजतक यह तत्वज्ञान किसी ने नहीं बताया, वेदों के मर्मज्ञ ज्ञानियों ने भी नहीं बताया।इससे सिद्ध है कि चारों पवित्र वेद तथा चारों पवित्र कतेब (कुरान शरीफ आदि)झूठे हैं। पूर्ण परमात्मा ने कहा :-कबीर, बेद कतेब झूठे नहीं भाई, झूठे हैं जो समझे नाहिं।भावार्थ है कि चारों पवित्र वेद (ऋग्वेद - अथर्ववेद - यजुर्वेद - सामवेद) तथापवित्र चारों कतेब (कुरान शरीफ - जबूर - तौरात - इंजिल) गलत नहीं हैं। परन्तुजो इनको नहीं समझ पाए वे नादान हैं।

Wednesday 8 July 2020

नशा करना तेजी से क्यों फैलता है।

   
            तम्बाकू सेवन करना महापाप है"।

नशा ऐसी बीमारी है जो हमें हमारे समाज को हमारे देश को तेजी से निगलते जा रही है
आज शहर और गावों में पढ़ने खेलने की उम्र में स्कूल और कॉलेज के बच्चे एवं युवा वर्ग मादक पदार्थों के बाहुपाश में जकड़ते जा रहे हैं ।

इस बुराई के कुछ हद तक जिम्मेदार हम लोग भी हैं हम अपने काम धंधों में इतना उलझ गए हैं कि हमें फुर्सत ही नहीं है ये जानने की कि हमारा बच्चा कहाँ जा रहा है । क्या कर रहा है कोई परवाह नहीं, बस बच्चों की मांगे पूरी करना ही अपनी जिम्मेदारी समझ बैठे हैं ।

क्यों करते हैं लोग नशा
कभी शौक के नाम पर तो कभी दोस्ती की आड़ में , कभी दुनियाँ के दुखों का बहाना करके तो कभी कोई मज़बूरी बताकर, कभी टेंशन तो कभी बोरियत दूर करनेके लिए लोग शराब , सिगरेट, तम्बाकू आदि अनेक प्रकार के मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं लेकिन नशा कब उनकी जिंदगी का हिस्सा बन जाता है उन्हें पता ही नहीं चलताए जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ।

नशे से शरीर को हानी
हिंसा, बलात्कार, चोरी, आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे नशा एक बहुत बड़ी वजह है । शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए एक्सीडेंट करनाए शादी शुदा व्यक्तियों द्वारा नशे में अपनी पत्नी से मारपीट करना आम बात है। मुँह , गले व फेफड़ों का कैंसर, ब्लड प्रैशर, अल्सर, यकृत रोग, अवसाद एवं अन्य अनेक रोगों का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार का नशा है ।


‘तम्बाकू सेवन करना महापाप है’’संत गरीबदास जी ने भक्त हरलाल जी से कहा कि आप (जो भी दीक्षा लेताहै) तम्बाकू का (हुक्का, बीड़ी, सिगरेट, चिलम आदि में डालकर भी) कभी सेवननहीं करना और अन्य नशीली वस्तुओं का प्रयोग न करना। भक्त ने कहा कि हेमहाराज जी! तम्बाकू तो लगभग सब किसान पीते हैं। इसमें क्या हानि है?उत्तर :- संत गरीबदास जी ने बताया कि आपने रामायण तथा महाभारत कीकथा तो सुनी होंगी। उसमें हुक्का सेवन का कहीं वर्णन नहीं है। तम्बाकू की उत्पत्तिबताऊँ कैसे हुई है, सुन!
एक ऋषि तथा एक राजा साढ़ू थे। एक दिन राजा की रानी ने अपनी बहनऋषि की पत्नी के पास संदेश भेजा कि पूरा परिवार हमारे घर भोजन के लिएआऐं। मैं आपसे मिलना भी चाहती हूँ, बहुत याद आ रही है। अपनी बहन का संदेशऋषि की पत्नी ने अपने पति से साझा किया तो ऋषि जी ने कहा कि साढ़ू सेदोस्ती अच्छी नहीं होती। तेरी बहन वैभव का जीवन जी रही है। राजा को धन तथाराज्य की शक्ति का अहंकार होता है। वे अपनी बेइज्जती करने को बुला रहे हैंक्योंकि फिर हमें भी कहना पड़ेगा कि आप भी हमारे घर भोजन के लिए आना।हम उन जैसी भोजन-व्यवस्था जंगल में नहीं कर पाऐंगे। यह सब साढ़ू जी काषड़यंत्र है। आपके सामने अपने को महान तथा मुझे गरीब सिद्ध करना चाहता है।आप यह विचार त्याग दें। हमारे न जाने में हित है। परंतु ऋषि की पत्नी नहींमानी। ऋषि तथा पत्नी व परिवार राजा का मेहमान बनकर चला गया। रानी नेबहुमूल्य आभूषण पहन रखे थे। बहुमूल्य वस्त्र पहने हुए थे। ऋषि की पत्नी के गलेमें राम नाम जपने वाली माला तथा सामान्य वस्त्र साध्वी वाले जिसे देखकर दरबारके कर्मचारी-अधिकारी मुस्कुरा रहे थे कि यह है राजा का साढ़ू। कहाँ राजा भोज,कहाँ गंगू तेली। यह चर्चा ऋषि परिवार सुन रहा था। भोजन करने के पश्चात् ऋषिकी पत्नी ने भी कहा कि आप हमारे यहाँ भी इस दिन भोजन करने आईएगा।निश्चित दिन को राजा हजारों सैनिक लेकर सपरिवार साढ़ू ऋषि जी कीकुटीया पर पहुँच गया। ऋषि जी ने स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र से निवेदन करके एककामधेनु (सर्व कामना यानि इच्छा पूर्ति करने वाली गाय, जिसकी उपस्थिति मेंखाने की किसी पदार्थ की कामना करने से मिल जाता है, यह पौराणिक मान्यताहै।) माँगी। उसके बदले में ऋषि जी ने अपने पुण्य कर्म संकल्प किए थे। इन्द्र देवने एक कामधेनु तथा एक लम्बा-चौड़ा तम्बू (ज्मदज) भेजा और कुछ सेवादार भीभेजे। टैण्ट के अंदर गाय को छोड़ दिया। ऋषि परिवार ने गऊ माता की आरतीउतारी। अपनी मनोकामना बताई। उसी समय छप्पन (56) प्रकार के भोग चांदीकी परातों, टोकनियों, कड़ाहों में स्वर्ग से आए और टैण्ट में रखे जाने लगे। लड्डू,जलेबी, कचौरी, दही बड़े, हलवा, खीर, दाल, रोटी (मांडे) तथा पूरी, बुंदी, बर्फी,रसगुल्ले आदि-आदि से आधा एकड़ का टैण्ट भर गया। ऋषि जी ने राजा से कहाकि भोजन जीमो। राजा ने बेइज्जती करने के लिए कहा कि मेरी सेना भी साथमें भोजन खाएगी। घोड़ों को भी चारा खिलाना है। ऋषि जी ने कहा कि प्रभु कृपासे सब व्यवस्था हो जाएगी। पहले आप तथा सेना भोजन करें। राजा उठकर भोजनकरने वाले स्थान पर गया। वहाँ भी सुंदर कपड़े बिछे थे। राजा देखकरआश्चर्यचकित रह गया। फिर चांदी की थालियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के भोजनला-लाकर सेवादार रखने लगे। अन्नदेव की स्तुति करके ऋषि जी ने भोजन करनेकी प्रार्थना की। राजा ने देखा कि इसके सामने तो मेरा भोजन-भण्डारा कुछ भी
नहीं था। मैंने तो केवल ऋषि-परिवार को ही भोजन कराया था। वह भी तीन-चारपदार्थ बनाए थे। राजा शर्म के मारे पानी-पानी हो गया। खाना खाते वक्त बहुतपरेशान था। ईर्ष्या की आग धधकने लगी, बेइज्जती मान ली। सर्व सैनिक खाऐंऔर सराहें। राजा का रक्त जल रहा था। अपने टैण्ट में जाकर ऋषि को बुलायाऔर पूछा कि यह भोजन जंगल में कैसे बनाया? न कोई कड़ाही चल रही है, नकोई चुल्हा जल रहा है। ऋषि जी ने बताया कि मैंने अपने पुण्य तथा भक्ति केबदले स्वर्ग से एक गाय उधारी माँगी है। उस गाय में विशेषता है कि हम जितनाभोजन चाहें, तुरंत उपलब्ध करा देती है। राजा ने कहा कि मेरे सामने उपलब्धकराओ तो मुझे विश्वास हो। ऋषि तथा राजा टैण्ट के द्वार पर खड़े हो गए। अन्दरकेवल गाय खड़ी थी। द्वार की ओर मुख था। टैण्ट खाली था क्योंकि सबने भोजनखा लिया था। शेष बचा सामान तथा सेवक ले जा चुके थे। गाय को ऋषि जी कीअनुमति का इंतजार था। राजा ने कहा कि ऋषि जी! यह गाय मुझे दे दो। मेरेपास बहुत बड़ी सेना है। उसका भोजन इससे बनवा लूंगा। तेरे किस काम की है?ऋषि ने कहा, राजन! मैंने यह गऊ माता उधारी ले रखी है। स्वर्ग से मँगवाई है।मैं इसका मालिक नहीं हूँ। मैं आपको नहीं दे सकता। राजा ने दूर खड़े सैनिकोंसे कहा कि इस गाय को ले चलो। ऋषि ने देखा कि साढ़ू की नीयत में खोट आगया है। उसी समय ऋषि जी ने गऊ माता से कहा कि गऊ माता! आप अपने लोकअपने धनी स्वर्गराज इन्द्र के पास शीघ्र लौट जाऐं। उसी समय कामधेनु टैण्ट कोफाड़कर सीधी ऊपर को उड़ चली। राजा ने गाय को गिराने के लिए गाय के पैरमें तीर मारा। गाय के पैर से खून बहने लगा और पृथ्वी पर गिरने लगा। गायघायल अवस्था में स्वर्ग में चली गई। जहाँ-जहाँ गाय का रक्त गिरा था, वहीं-वहींतम्बाकू उग गया। फिर बीज बनकर अनेकों पौधे बनने लगे। संत गरीबदास जीने कहा है कि :-तमा $ खू = तमाखू।खू नाम खून का तमा नाम गाय। सौ बार सौगंध इसे न पीयें-खाय।।भावार्थ :- भावार्थ है कि फारसी भाषा में ‘‘तमा’’ गाय को कहते हैं। खू =खून यानि रक्त को कहते हैं। यह तमाखू गाय के रक्त से उपजा है। इसके ऊपरगाय के बाल जैसे रूंग (रोम) जैसे होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंद हैकि इस तमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू का सेवन गाय काखून पीने के समान पाप लगता है।

अगर आप को नशे की लत से छुटकारा पाना है"! अपने जीवन को स्वछ रखना है। आप नशे को अलविदा करना चाहते हो तो
आज के समय में। संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेवे और उनका ज्ञान सुने संत रामपाल जी महाराज की दी गई भक्ति से सब प्रकार के नशे छूट जाते हैं।

अधिक जानकारी के लिए साधना टीवी देखें शाम 7:30 से 8:30 तक

Wednesday 1 July 2020

दहेज प्रथा एक सामाजिक कुरीति हैं।

दहेज प्रथा एक सामाजिक कुरीति हैं।

दहेज प्रथा विवाह के समय दुल्हन के माता-पिता द्वारा दूल्हे के परिवार को भारी मात्रा में नकद, गहने और अन्य उपहार देने की अनुमति देती है। यह व्यवस्था भारत में एक कारण के कारण रखी गई थी और वह यह थी कि कुछ दशक पहले तक बालिकाओं को पैतृक संपत्ति और अन्य अचल संपत्तियों पर कोई अधिकार नहीं था और उन्हें नकदी, आभूषण और अन्य सामान जैसे तरल संपत्ति दी गई थी उसे उचित हिस्सा देने के लिए। हालांकि, यह वर्षों में एक बुरी सामाजिक व्यवस्था में बदल गया है।

माता-पिता अपनी बेटी को दहेज के रूप में देने का इरादा रखते हैं, ताकि वह नई जगह पर आत्मनिर्भर बन सकें। दुर्भाग्य से, ज्यादातर मामलों में, सभी मामलों में दूल्हे के परिवार द्वारा लिया जाता है। इसके अलावा, जबकि पहले यह दुल्हन के माता-पिता का एक स्वैच्छिक निर्णय था, यह इन दिनों उनके लिए एक दायित्व बन गया है।

पर्याप्त दहेज नहीं लाने के लिए शारीरिक और भावनात्मक रूप से प्रताड़ित होने वाली दुल्हनों के कई मामले सामने आए हैं। कई मामलों में, दुल्हन अपने परिवार से अपने ससुराल वालों की मांगों को पूरा करने के लिए मुड़ जाती है, जबकि अन्य लोग यातना को समाप्त करने के लिए अपनी जान दे देते हैं। समय आ गया है कि भारत सरकार को इस कुप्रथा को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए।

सवाल यह है कि दहेज को दंडनीय अपराध बनाने और कई अभियानों के माध्यम से इस प्रणाली के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के बाद भी लोग अभी भी इसका अभ्यास क्यों करते हैं? यहाँ कुछ मुख्य कारण हैं कि दहेज प्रणाली जनता द्वारा निंदा किए जाने के बावजूद बरकरार है:
ससुराल वाले अक्सर अपनी बहू द्वारा लाए गए उपहारों की तुलना अन्य लड़कियों द्वारा अपने आसपास के क्षेत्र में लाए जाते हैं और व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हैं, जिससे उन्हें पीड़ा होती है। लड़कियां अक्सर इसके कारण भावनात्मक रूप से तनाव महसूस करती हैं और कुछ अवसाद से भी गुजरती हैं।


एक बालिका को परिवार के लिए बोझ के रूप में देखा जाता है। यह दहेज प्रथा है जिसने कन्या भ्रूण हत्या को जन्म दिया है। कई जोड़ों द्वारा महिला भ्रूण का गर्भपात कराया जाता है। बालिकाओं को छोड़ दिए जाने के मामले भारत में भी आम हैं।

विवाह में प्रचलित वर्तमान परंपरा का त्याग :-

हमारे देश भारत में धीरे धीरे दहेज प्रथा बढ़ते ही चले जा रहा है। आज के इस आधुनिक युग में भी दहेज प्रथा देश में एक अभिशाप के रूप में फैल चुका है। आज भी इस 21वीं सदी में बेटी के जन्म लेते ही ज्यादातर माता-पिता के सिर पर चिंता सवार हो जाता है।


चिंता इस बात की नहीं होती है की लड़की की पढ़ाई कैसे करवाएंगे? चिंता तो इस बात की होती है की विवाह कैसे करवाएंगे, विवाह के लिए दहेज कैसे इकट्ठा करेंगे? यही सोच दहेज़ प्रथा जैसी सामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।


पुराने जमाने में है दहेज की प्रथा नहीं थी

विवाह में व्यर्थ का खर्च त्यागना पड़ेगा। जैसे बेटी के विवाह में बड़ी बारातका आना, दहेज देना, यह व्यर्थ परंपरा है। जिस कारण से बेटी परिवार पर भारमानी जाने लगी है और उसको गर्भ में ही मारने का सिलसिला शुरू है जोमाता-पिता के लिए महापाप का कारण बनता है। बेटी देवी का स्वरूप है। हमारीकुपरम्पराओं ने बेटी को दुश्मन बना दिया। श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाणहै कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथाश्री शिव जी) का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोईबाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे
बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्माजी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दीजाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्रश्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहाकि ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनोंअपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व काविस्तार हुआ।






Wednesday 24 June 2020

Vade

                        Vade       

   “पवित्र ऋग्वेद में सृष्टी रचना का प्रमाण”

मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्रा 1सहòशीर्षा पुरूषः सहòाक्षः सहòपात्।स भूमिं विश्वतों वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।। 1।। सहòशिर्षाµपुरूषःµसहòाक्षःµसहòपात्µसµभूमिम्µविश्वतःµवृत्वाµअत्यातिष्ठत्µदशंगुलम्।अनुवाद :- (पुरूषः) विराट रूप काल भगवान अर्थात् क्षर पुरूष (सहस्रशिर्षा) हजारसिरों वाला (सहस्राक्षः) हजार आँखों वाला (सहस्रपात्) हजार पैरों वाला है (स) वह काल(भूमिम्) पृथ्वी वाले इक्कीस ब्रह्मण्डां को (विश्वतः) सब ओर से (दशंगुलम्) दसों अंगुलियोंसे अर्थात् पूर्ण रूप से काबू किए हुए (वृत्वा) गोलाकार घेरे में घेर कर (अत्यातिष्ठत्) इस सेबढ़कर अर्थात् अपने काल लोक में सबसे न्यारा भी इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में ठहरा है अर्थात्रहता है।भावार्थ :- इस मंत्र में विराट (काल/ब्रह्म) का वर्णन है। (गीता अध्याय 10-11में भी इसी काल/ब्रह्म का ऐसा ही वर्णन है अध्याय 11 मंत्रा नं. 46 में अर्जुन ने कहाहै कि हे सहस्राबाहु अर्थात् हजार भुजा वाले आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शनदीजिए)जिसके हजारों हाथ, पैर, हजारों आँखे, कान आदि हैं वह विराट रूप कालप्रभु अपने आधीन सर्व प्राणियों को पूर्ण काबू करके अर्थात् 20 ब्रह्मण्डों को गोलाकारपरिधि में रोककर स्वयं इनसे ऊपर (अलग) इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में बैठा है।


मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्रा 2पुरूष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम्।उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति।। 2।।पुरूषµएवµइदम्µसर्वम्µयत्µभूतम्µयत्µचµभाव्यम्µउतµअमृतत्वस्यµइशानःµयत्µअन्नेनµअतिरोहतिअनुवाद :- (एव) इसी प्रकार कुछ सही तौर पर (पुरूष) भगवान है वह अक्षर पुरूषअर्थात् परब्रह्म है (च) और (इदम्) यह (यत्) जो (भूतम्) उत्पन्न हुआ है (यत्) जो (भाव्यम्)भविष्य में होगा (सर्वम्) सब (यत्) प्रयत्न से अर्थात् मेहनत द्वारा (अन्नेन) अन्न से(अतिरोहति) विकसित होता है। यह अक्षर पुरूष भी (उत) सन्देह युक्त (अमृतत्वस्य) मोक्षका (इशानः) स्वामी है अर्थात् भगवान तो अक्षर पुरूष भी कुछ सही है परन्तु पूर्ण मोक्ष दायकनहीं है।भावार्थ :- इस मंत्र में परब्रह्म (अक्षर पुरुष) का विवरण है जो कुछ भगवान वालेलक्षणों से युक्त है, परन्तु इसकी भक्ति से भी पूर्ण मोक्ष नहीं है, इसलिए इसेसंदेहयुक्त मुक्ति दाता कहा है। इसे कुछ प्रभु के गुणों युक्त इसलिए कहा है कियह काल की तरह तप्तशिला पर भून कर नहीं खाता। परन्तु इस परब्रह्म के लोकमें भी प्राणियों को परिश्रम करके कर्माधार पर ही फल प्राप्त होता है तथा अन्न सेही सर्व प्राणियों के शरीर विकसित होते हैं, जन्म तथा मृत्यु का समय भले ही काल(क्षर पुरुष) से अधिक है, परन्तु फिर भी उत्पत्ति प्रलय तथा चौरासी लाख योनियोंमें यातना बनी रहती है।मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र3एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पुरूषः।पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।। 3।।एतावान्µअस्यµमहिमाµअतःµज्यायान्µचµपुरूषःµपादःµअस्यµविश्वाµभूतानिµत्रिµपाद्µअस्यµअमृतम्µदिविअनुवाद :- (अस्य) इस अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म की तो (एतावान्) इतनी ही(महिमा) प्रभुता है। (च) तथा (पुरूषः) वह परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर तो(अतः) इससे भी (ज्यायान्) बड़ा है (विश्वा) समस्त (भूतानि) क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूषतथा इनके लोकों में तथा सत्यलोक तथा इन लोकों में जितने भी प्राणी हैं (अस्य) इस पूर्णपरमात्मा परम अक्षर पुरूष का (पादः) एक पैर है अर्थात् एक अंश मात्रा है। (अस्य) इसपरमेश्वर के (त्रि) तीन (दिवि) दिव्य लोक जैसे सत्यलोक-अलख लोक-अगम लोक(अमृतम्) अविनाशी (पाद्) दूसरा पैर है अर्थात् जो भी सर्व ब्रह्मण्डों में उत्पन्न है वहसत्यपुरूष पूर्ण परमात्मा का ही अंश या अंग है।

भवार्थ ऊपर के मंत्र 2 में वर्णित अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की तो इतनीही महिमा है तथा वह पूर्ण पुरुष कविर्देव तो इससे भी बड़ा है अर्थात् सर्वशक्तिमानहै तथा सर्व ब्रह्मण्ड उसी के अंश मात्रा पर ठहरे हैं। इस मंत्रा में तीन लोकों का वर्णनइसलिए है क्योंकि चौथा अनामी (अनामय) लोक अन्य रचना से पहले का है। यहीतीन प्रभुओं (क्षर पुरूष-अक्षर पुरूष तथा इन दोनों से अन्य परम अक्षर पुरूष) काविवरण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक संख्या 16.17 में है {इसी का प्रमाणआदरणीय गरीबदास साहेब जी कहते हैं कि :- गरीब, जाके अर्ध रूम पर सकलपसारा, ऐसा पूर्ण ब्रह्म हमारा।।

गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजनहार।।

इसी का प्रमाण आदरणीय दादू साहेब जी कह रहे हैं 

जिन मोकुं निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोए नहीं, कबीर सृजनहार।।


 


Tuesday 23 June 2020

क्या गीता जी का नित्य पाठ करने का कोई लाभ नहीं ?

क्या गीता जी का नित्य पाठ करने का या दान करने का कोई लाभ नहीं

धार्मिक सद्ग्रन्थों के पठन-पाठन से ज्ञान यज्ञ का फल मिलता है। यज्ञ का फल कुछ समय स्वर्ग या जिस उद्देश्य से किया उसका फल मिल जाता है, परन्तु मोक्ष नहीं। नित्य पाठ करने का मुख्य कारण यह होता है कि सद्ग्रन्थों में जो साधना करने का निर्देश है तथा जो न करने का निर्देश है उसकी याद ताजा रहे। कभी कोई गलती न हो जाए। जिस से हम वास्तविक उद्देश्य त्याग कर गफलत करके शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) न करने लग जाऐं तथा मनुष्य जीवन के मुख्य उद्देश्य की याद बनी रहे कि मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य आत्म कल्याण ही है जो शास्त्र अनुकूल साधना से ही संभव है।

जैसे एक जमींदार को वृद्धावस्था में पुत्र की प्राप्ति हुई। किसान ने सोचा जब तक बच्चा जवान होगा, अपने खेती-बाड़ी के कार्य को संभालने योग्य होगा, कहीं मेरी मृत्यु न हो जाए। इसलिए किसान ने अपना अनुभव लिख कर छोड़ दिया तथा अपने पुत्र से कहा कि पुत्र जब तू जवान हो, तब अपने खेती-बाड़ी के कार्य को समझने के लिए इस मेरे अनुभव के लेख को प्रतिदिन पढ़ लेना तथा अपनी कृषि करना। पिता जी की मृत्यु के उपरान्त किसान का पुत्र प्रतिदिन पिता जी के द्वारा लिखे अनुभव के लेख को पढ़ता। परन्तु जैसा उसमें लिखा है वैसा कर नहीं रहा है। वह किसान का पुत्र क्या धनी हो सकता है ? कभी नहीं। वैसे ही करना चाहिए जो पिता जी ने अपना अनुभव लेख में लिखा है। ठीक इसी प्रकार पवित्र गीता जी के पाठ को तो श्रद्धालु नित्य कर रहे हैं परन्तु साधना सद्ग्रन्थ के विपरीत कर रहे हैं। इसलिए गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 के अनुसार व्यर्थ साधना है।

जैसे तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की पूजा गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में मना है तथा श्राद्ध निकालना अर्थात् पितर पूजा, पिण्ड भरवाना, फूल (अस्थियां) उठा कर गंगा में क्रिया करवाना, तेरहवीं, सतरहवीं, महीना, छःमाही, वर्षी आदि करना गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में मना है। व्रत रखना गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में मना है। लिखा है कि हे अर्जुन ! योग (भक्ति) न तो बिल्कुल न खाने वाले (व्रत रखने वाले) का सिद्ध होता है, ... अर्थात् व्रत रखना मना है।
भूखों को भोजन देना, कुत्तों आदि जीव-जन्तुओं व पशुओं को आहार कराना आदि बुरा नहीं है, परन्तु पूर्ण संत के माध्यम से उनकी आज्ञा अनुसार दान तथा यज्ञ आदि करना ही पूर्ण लाभदायक है।

जैसे एक कुत्ता कार के अंदर मालिक वाली सीट पर बैठकर यात्रा करता है। कुत्ते का ड्राईवर मनुष्य होता है। उस पशु को आम मनुष्य से भी अधिक सुविधाऐं प्राप्त होती हैं। अलग से कमरा, पंखा तथा कुलर लगा होता है आदि-आदि।


जब वह नादान प्राणी मनुष्य शरीर में था, दान भी किया परन्तु मनमाना आचरण (पूजा) के माध्यम से किया जो शास्त्र विधि के विपरीत होने के कारण लाभदायक नहीं हुआ। प्रभु का विधान है कि जैसा भी कर्म प्राणी करेगा उसका फल अवश्य मिलेगा। यह विधान तब तक लागू है जब तक तत्वदर्शी संत पूर्ण परमात्मा का मार्ग दर्शक नहीं मिलता।

जैसा कर्म प्राणी करता है वैसा ही फल प्राप्त होता है। इस विद्यान के अनुसार वह तीर्थों तथा धामों पर या अन्य स्थानों पर भण्डारे द्वारा तथा कुत्ते आदि को रोटी डालने के कर्म के आधार पर कुत्ते की योनी में चला गया। वहाँ पर भी किया कर्म मिला। कुत्ते के जीवन में अपनी पूर्व जन्म की शुभ कर्म की कमाई को समाप्त करके गधे की योनी में चला जाएगा। उस गधे के जीवन में सर्व सुविधाऐं छीन ली जायेंगी। सारा दिन मिट्टी, कच्ची-पक्की ईंटे ढोएगा। तत्पश्चात् अन्य प्राणियों के शरीर में कष्ट उठाएगा तथा नरक भी भोगना पड़ेगा। चैरासी लाख योनियों का कष्ट भोग कर फिर मनुष्य शरीर प्राप्त करता है। फिर क्या जाने भक्ति बने या न बने। जैसे धाम तथा तीर्थ पर जाने वाले के पैरों नीचे या जिस सवारी द्वारा जाता है उसके पहियों के नीचे जितने भी जीव जंतु मरते हैं उनका पाप भी तीर्थ व धाम यात्री को भोगना पड़ता है। जब तक पूर्ण संत जो पूर्ण परमात्मा की सत साधना बताने वाला नहीं मिले तब तक पाप नाश (क्षमा) नहीं हो सकते, क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, ब्रह्म (क्षर पुरुष/काल) तथा परब्रह्म (अक्षर पुरुष) की साधना से पाप नाश (क्षमा) नहीं होते, पाप तथा पुण्य दोनों का फल भोगना पड़ता है। यदि वह प्राणी गीता ज्ञान अनुसार पूर्ण संत की शरण प्राप्त करके पूर्ण परमात्मा की साधना करता तो या तो सतलोक चला जाता या दोबारा मनुष्य शरीर प्राप्त करता। पूर्व पुण्यों के आधार से फिर कोई संत मिल जाता है। वह प्राणी फिर शुभ कर्म करके पार हो जाता है।

इसलिए उपरोक्त मनमाना आचरण लाभदायक नहीं है।

Thursday 4 June 2020

Kabir prakat Diva's

(सुक्ष्म वेद से निष्कर्ष रूप सृष्टी रचना का वर्णन)प्रभु प्रेमी आत्माऐं प्रथम बार निम्न सृष्टी की रचना को पढेंगे तो ऐसे लगेगाजैसे दन्त कथा हो, परन्तु सर्व पवित्रा सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़कर दाँतों तलेउँगली दबाऐंगे कि यह वास्तविक अमृत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथपढ़ते रहिए तथा इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखिए। आप की एक सौ एक पीढ़ीतक काम आएगा। पवित्रात्माऐं कृप्या सत्यनारायण (अविनाशी प्रभु/सतपुरुष) द्वारारची सृष्टी रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़ें।1. पूर्ण ब्रह्म :- इस सृष्टी रचना में सतपुरुष-सतलोक का स्वामी (प्रभु), अलखपुरुष-अलख लोक का स्वामी (प्रभु), अगम पुरुष-अगम लोक का स्वामी (प्रभु) तथाअनामी पुरुष-अनामी अकह लोक का स्वामी (प्रभु) तो एक ही पूर्ण ब्रह्म है, जोवास्तव में अविनाशी प्रभु है जो भिन्न-2 रूप धारण करके अपने चारों लोकों में रहताहै। जिसके अन्तर्गत असंख्य ब्रह्मण्ड आते हैं।2. परब्रह्म :- यह केवल सात संख ब्रह्मण्ड का स्वामी (प्रभु) है

। यह अक्षर पुरुषभी कहलाता है। परन्तु यह तथा इसके ब्रह्मण्ड भी वास्तव में अविनाशी नहीं है।3. ब्रह्म :- यह केवल इक्कीस ब्रह्मण्ड का स्वामी (प्रभु) है। इसे क्षर पुरुष,ज्योति निरंजन, काल आदि उपमा से जाना जाता है। यह तथा इसके सर्व ब्रह्मण्डनाशवान हैं।(उपरोक्त तीनों पुरूषों (प्रभुओं) का प्रमाण पवित्रा श्री मद्भगवत गीता अध्याय15 श्लोक 16.17 में भी है।)4. ब्रह्मा :- ब्रह्मा इसी ब्रह्म का ज्येष्ठ पुत्रा है, विष्णु मध्य वाला पुत्रा है तथा शिवअंतिम तीसरा पुत्रा है। ये तीनों ब्रह्म के पुत्रा केवल एक ब्रह्मण्ड में एक विभाग (गुण)के स्वामी (प्रभु) हैं तथा नाशवान हैं। विस्तृत विवरण के लिए कृप्या पढ़ें निम्नलिखित सृष्टी रचना :- {कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने सुक्ष्म वेद अर्थात् कबिर्बाणी में अपने द्वारा रचीसृष्टी का ज्ञान स्वयं ही बताया है जो निम्नलिखित है}सर्व प्रथम केवल एक स्थान ‘अनामी (अनामय) लोक‘ था। जिसे अकह लोकभी कहा जाता है, पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था। उसपरमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है। सभी आत्माऐं उसपूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी। इसी कविर्देव का उपमात्मक (पदवी का) नामअनामी पुरुष है (पुरुष का अर्थ प्रभु होता है। प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरूपमें बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है।) अनामी पुरूष के एकरोम कूप का प्रकाश संख सूर्यों की रोशनी से भी अधिक है।विशेष :- जैसे किसी देश के आदरणीय प्रधान मंत्रा जी का शरीर का नाम तोअन्य होता है तथा पद का उपमात्मक (पदवी का) नाम प्रधानमंत्रा होता ह

Monday 1 June 2020

कबीर साहेब के चमत्कार

कबीर साहेब के चमत्कार

परमेश्वर कबीर साहेब द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे मुर्दे को जीवित करना यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त भैंसों से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना तथा काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना इसके अतिरिक्त भी कई प्रमाणिक जानकारियां हमें मिलती है।
1. कबीर साहेब द्वारा सिकंदर राजा का जलन का रोग ठीक करना
कबीर साहेब जब 600 वर्ष पूर्व आए तब उन्होंने अनेको करिश्में दिखाऐ, उनमें से एक है दिल्ली के राजा सिकंदर लोदी की जलन का रोग आशिर्वाद मात्र से ठीक करना। राजा जलन जैसे आसाध्य रोग से पीड़ित था और सब तरफ से ईलाज आदि करवाकर थक चुका था लेकिन कोई आराम नहीं था। तब बादशाह को किसी ने कबीर साहेब के बारे में बताया कि वे महापुरुष ही ये रोग ठीक कर सकते हैं तभी सिकंदर को भी याद आया कि यह तो वही हैं जिन्होंने मरी हुई गाय को जीवित कर दिया था। जब खुद पर आपदा आती है तो कोई जाति व अमीरी गरीबी नहीं देखता उसे सिर्फ अपनी जान बचाने की सूझती है। इसी प्रकार दिल्ली नरेश भी काशी पहुंचा औऱ वहाँ के राजा वीरदेव सिंह बघेल तो कबीर जी को पूर्ण परमात्मा के रूप में पहचान चुके थे। सिकंदर लोदी ने सब व्यथा वीरदेव सिंह बघेल को बताई तो उन्होंने भी कहा कि कबीर जी ही उन्हें रोग मुक्त कर सकते है और वे आश्रम की ओर चल पड़े। वहां राजा सिकंदर लोदी ने अहंकार वश रामानंद जी (जो कबीर साहेब को परमात्मा रूप में पहचान चुके थे लेकिन सबके सामने कबीर जी के गुरू का अभिनय कर रहे थे) का  किसी बात की कहासुनी पर वध कर दिया राजा बहुत घबरा गया कि एक पाप का बोझ तो उतरा भी नहीं कि एक बडा़ पाप और इकट्ठा कर लिया। राजा को डर था कि कबीर जी उन्हें माफ करेंगे भी या नहीं लेकिन फिर भी कबीर परमात्मा ने राजा को सांत्वना देते हुए आशिर्वाद दिया जिससे पल भर में ही उनका जलन का रोग गायब हो गया तथा कबीर साहेब जी ने अपने गुरुदेव स्वामी रामानंद जी को भी वापस जीवित कर दिया। उसके पश्चात् रामानंद जी ने कभी हिंदू-मुसलमान मे भेदभाव नही किया तथा सिकंदर लोदी ने कहा की:-

कबीर दर्शन दीन्हा जबै, तपन भई सब दूर ।
शाह कहा तुम साँच हो, औ अल्लाहका नूर ।।