Thursday 14 May 2020

इस शिक्षा से परमात्मा को नही पहचाना तो शिक्षा का क्या उदेश्य

साधक लोकवेद अर्थात् दन्त कथा के आधार से भक्ति कर रहाथा। उस शास्त्राविरूद्ध साधना के मार्ग पर चल रहा था। रास्ते में अर्थात् भक्ति मार्गमें एक दिन तत्वदर्शी सन्त मिल गए। उन्होंने शास्त्राविधि अनुसार शास्त्रा प्रमाणितसाधना रूपी दीपक दे दिया अर्थात् सत्य शास्त्रानुकूल साधना का ज्ञान कराया तोजीवन नष्ट होने से बच गया। सतगुरू द्वारा बताये तत्वज्ञान की रोशनी में पताचला कि मैं गलत भक्ति कर रहा था। श्री मद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23.24 में कहा है कि शास्त्रा विधि को त्यागकर जो साधक मनमाना आचरण करते हैं,उनको न तो सुख होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है और न ही गति अर्थात् मोक्षकी प्राप्ति होती है अर्थात् व्यर्थ साधना

है। फिर गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में कहाहै कि अर्जुन! इससे तेरे लिए कृर्तव्य और अकृर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्रा ही प्रमाण हैं।जो उपरोक्त साधना यह दास (संत रामपाल दास) किया करता था तथापूरा हिन्दू समाज कर रहा है, वह सब गीता-वेदों में वर्णित न होने से शास्त्रा विरूद्धसाधना हुई जो व्यर्थ है।कबीर, गुरू बिन काहु न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुस छडे़ मूढ़ किसाना।कबीर, गुरू बिन वेद पढै़ जो प्राणी, समझै न सार रहे अज्ञानी।।इसलिए गुरू जी से वेद शास्त्रों का ज्ञान पढ़ना चाहिए जिससे सत्य भक्तिकी शास्त्रानुकूल साधना करके मानव जीवन धन्य हो जाए



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